Sunday, April 27, 2008

अकेलापन और यायावरी मनुष्य का सच्चा साथी

आज फिर मैं अपनी यायावरी पर निकल गया.. मेरा सोचना है की यायावरी का असली मजा अकेले ही यायावरी करने में आता है.. अगर आपको भरोसा ना हो तो कभी आप भी करके देखिये, मेरा दावा है की आप भी मुझसे सहमत होंगे.. हर बात पर आप बारीक नजर डालेंगे जितना आप उस समय कभी नहीं डाल सकते हैं जब कोई आपके साथ हो.. हर चीज को एक अलग ही नजरिये से देखेंगे..

मेरा सोचना है की अगर आप अकेले जीवन के मजे लेना सिख लिए हैं तो आपको इस दुनिया से कोई शिकायत नहीं रह जायेगी.. अकेलापन ही आपका सच्चा साथी है जो कभी आपका साथ नहीं छोड़ता है..

आज जो मैंने देखा उसे आप मेरी नजर से देखिये..

1. ढेर सारे लोग नए-नए फैसनेबल कपडे पहने हुए और दूसरों को ऐसे देखना जैसे उसकी साडी मेरी साडी से सफेद क्यों? (आज मैं चेन्नई के सबसे बड़े शौपिंग मॉल स्पेंसर प्लाजा गया था)

2. एक देहाती जोड़े को एस्केलेटर पर चढ़ते हुए देखना.. शायद महिला के लिए ये पहला अनुभव था एस्केलेटर पर चढ़ना.. पति उसका हाथ पकर कर चढ़ने लगे तो वो महिला घबरा कर वापस आ गयी और पति देव ऊपर चढ़ गए.. वो महिला सीढ़ी से ऊपर चढ़ना चाह रही थी मगर पति जी वापस आकर फिर से उसका हाथ पकर कर ऊपर ले जाना चाहे और वो महिला घबरा कर अपने पति से लिपट गयी मगर तभी उसे ध्यान आया की वो एक भीड़ भरे जगह पर है और ये जान कर उसका शर्म से दोहरा होते जाना..
उसके बगल से एक व्यक्ति जो टी-शर्ट और थ्री-फोर्थ पहने हुए था उन्हें देखकर ऐसे तन कर उतर रहा था जैसे वो बिना डरे एस्केलेटर पर चढ़ कर कोई बहुत ही महान काम कर रहा है.. :)

3. एक डार्ट से निशाने लगाने का कम्पीटिशन होना जिसे एक बच्चे ने पूरा कर दिखाया और बांकी सारे बरे लोग उसका मुंह देखते रह गए.. क्योंकि कोई भी बड़ा आदमी उसे पूरा नहीं कर पाया..

4. एक बहुत बड़े किताब की दूकान में जाने पर वहां एक भी हिंदी की किताब का ना दिखना.. अधिकतर अंग्रेजी की किताब का होना और कुछ तमिल की किताबें.. बस.. ऊपर से सभी किताब कम से कम २५० रूपये का होना..

5. उसी दूकान में हिंदी सिनेमा की ज्यादा सीडी होना.. जो ये साफ दिखाता है की हिंदी सिनेमा का चलन तमिलनाडू में भी बहुत है.. और दूसरी बात ये की लोग हिंदी नहीं पढना चाहते हैं पर हिंदी सिनेमा देखना चाहते हैं..

नोट : मेरी अगली पोस्ट में यूनुस जी ने मुझसे ज्यादा मेहनत की है जो अभी मेरे ड्राफ्ट में परा है.. उसके बाद मैं कब लिखूंगा मुझे पता नहीं.. जब अपनी बात नहीं कह पाने की कुंठा से ग्रस्त हो जाऊँगा तब लिखूंगा.. या फिर उस कुंठा की वजह से अवसाद ग्रस्त हो जाऊं और फिर से ना लिखूं.. देखिये.. मैं चिट्ठाकारों की दुनिया को अलविदा भी नहीं कह रहा हूँ.. बस अवकाश पर जा रहा हूँ.. पर मैं यहाँ सारे चिट्ठों को पढता भी रहूँगा और उन पर टिपियाता भी रहूँगा.. ज्ञान जी की भाषा में कहूं तो "मेरे होने का दस्तावेजी प्रमाण बन रहा है यह ब्लॉग" क्योंकि जो मैं किसी से नहीं कह पाता हूँ उसे अपने ब्लौग पर डाल देता हूँ..

Keyword : Yayavari, Human Mind, Chennai spencer plaza

12 comments:

  1. यायावरी अकेले ही होती है, बिना किसी स्थाई साथ के। जब तक मन रमा किसी के साथ रहे, मन हुआ तो छोड़ कर चल दिए। बड़ी खतरनाक चीज है। पर कभी कभी खतरे उठाना चाहिए। मैं पिछले हफ्ते अपने जन्मनगर में इसी तरह हो कर आया हूँ बस में पचास किलोमीटर खड़े खड़े और फिर बोनट के पास के पार्टीशन पर बैठ कर 22 किलोमीटर का सफर गर्मी और भीड़ में। जो देखा वहा किसी दिन पोस्ट में।

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  2. खुशकामनायें! यायावरी के लिये!

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  3. चेन्नई के सबसे बड़े शौपिंग मॉल स्पेंसर प्लाजा में यायावरी करें तो अकेले क्या और साथ में क्या, मजा तो आएगा ही. जरा गाँधी की तरह रेल के तीसरे (अब दूसरे) दर्जे में हिंदुस्तान की यात्रा पर निकल लें, तो सच्ची यायावरी होगी. ..... खैर छोडिये.

    घर वालों की बात मान ही लीजिये. शादी कर डालिए फटाफट. स्वतंत्र सोच वालों से हमें बड़ी ईर्ष्या रहती है. ;-)

    पोस्ट अच्छी लगी.

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  4. घोस्ट बस्टर जी, यायावरी तो कहीं भी की जा सकती है.. वो शौपिंग मॉल क्या और तीसरे दर्जे का डिब्बा क्या.. मैं हर जगह इसका लुत्फ़ उठाता रहता हूं.. आपने जब से मेरा चिट्ठा पढना शुरू किया है उससे पहले भी मैं 1-2 बार अपनी यायावरी के किस्से लिख चूका हूं.. और उस समय मैं चेन्नई के स्लम में घूम रहा था.. :)

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  5. पोस्ट अच्छी लगी।
    पर ये ना लिखने की बात क्यों। छुट्टी पर ही तो जा रहे है ना।

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  6. नहीं ममता जी.. मैं कहीं छुट्टी पर नहीं जा रहा हूं.. वैसे तो मैं 24X7 आनलाईन रहता हूं और इस बीच भी रहूंगा.. बस कुछ दिनों के लिये ब्लौगिंग से अवकाश ले रहा हूं..

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  7. यायावरी का तो मज़ा है ही... कभी किसी समुद्र तट पर जाकर अकेले घंटे बैठे रहने का अनुभव हो या फिर मुम्बई के किसी भीड़ भाड़ वाली जगह पर यू ही किसी बेंच पर बैठे रहना..

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  8. यही तो जीवन है हमारे आस पास बिखरा हुआ बहुत कुछ है ..फ़िर भी यायावरी के अलग मजे है ..आपकी किस्मत पे रश्क होता है......

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  9. एक बहुत बड़े किताब की दूकान में जाने पर वहां एक भी हिंदी की किताब का ना दिखना.. अधिकतर अंग्रेजी की किताब का होना

    ये सिर्फ़ तमिलनाडु के नही जयपुर के भी हालत है.. क्रॉसवर्ड नामक बड़े बुक स्टोर में भी हिन्दी की चन्द किताबे ही मिलती है

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  10. कुश जी बात से पूरी तरह सहमत। जयपुर में क्रासवर्ड में हमारा भी अनुभव ऐसा ही रहा। केवल इनहैरिटैन्स आफ लास और फाइव पाइंट समवन ही खरीद पाए।
    मजेदार बात ये थी कि उद्घाटन के लिए गुलजार आए थे और उनका भी पूरा कलेक्शन वहां नहीं है।

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  12. ascelerator waala incident aur hindi books ki non availability ke baare mein aapne jo bataya usse bahut touch huaa main.....
    as things are workin out,there is a fair chance ki mera bhi future down south ki galiyon ein kahin bane....mere jaisa insaan aisi jagah pata nahi kaise survive kar paayega(if needed) jahaan hindi literature ki na koi respect hai na usme koi ineterest hai....in fact aapne pehle bhi aise kuchh posts likhe hai...which points towards total ignorance towards all this :(

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