सोचा था, तुम्हारे दर्द में मैं
और मेरे दर्द में तुम जागो सारी रात..
मैं तो आज भी जाग रहा हूं,
सोचकर कि तुम्हें कोई तकलीफ़ तो नहीं?
क्या तुम भी जागती हो?
सोचा था कि तुम्हारी खुशियों
में तुमसे ज्यादा मैं खुश होउंगा..
इसी भ्रम में आज भी खुश रहने की कोशिश करता हूं..
बिछड़कर मुझसे क्या तुम भी खुश रहती हो?
सुना था समय हर दर्द को भुला देता है..
मैं अब इसी भ्रम में हूं
कि मेरे घाव भी भर गये हैं..
क्या तुम्हें भी अब दर्द नहीं होता है?
आज कुछ भी लिखने का मन नहीं है सो आज मैं अपनी पिछली पोस्ट को पूरा नहीं कर रहा हूं.. और आपके सामने ये लेकर आया हूं..
badhiya hai
ReplyDeleteक्या बात है. आजकल एक के बाद एक अच्छा लिखे जा रहें हैं?
ReplyDeletesundar
ReplyDeleteये घाव कहाँ लगा? बांट लो, दर्द कम हो जाएगा।
ReplyDeleteसँवेदना महसूस कर सकता हूं मैं।
ReplyDeleteबहुत अच्छा है भाई. क्या बात है. कुछ बातें सिर्फ़ महसूस ही की जा सकती हैं. शब्द कुछ एहसासों से वफ़ा नहीं कर पाते.
ReplyDeleteऔर पोस्ट करते करते ऊपर ये टिपण्णी दिख गई :
ये घाव कहाँ लगा? बांट लो, दर्द कम हो जाएगा।
तो अपनी ही लिखी ये बात याद आ गई :
http://kisseykahen.blogspot.com/2007/10/blog-post_2284.html
यही ख्याल था हमारा. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति है. भाव हमारे भी बहुत निकट हैं.
ReplyDeleteबंधु, कविता भी लिखते हो वह भी इतनी बढ़िया!!
ReplyDeleteजियो जियो!!
soch kar to pichli adhoori post padne aaya tha par khair kai bar "bekhayaali "bhi ho jati hai..
ReplyDeletekavita kahi andar se aayi hai.
बड़ी कशिश है भाई!!
ReplyDeletebhai laazawaab
ReplyDeleteमैं तो आज भी जाग रहा हूं,
ReplyDeleteसोचकर कि तुम्हें कोई तकलीफ़ तो नहीं?
क्या तुम भी जागती हो?
behtarin...bahut hi acchi abhivyakti hai