आरक्षण अभी फिर से सर उठा कर घूम रहा है, और उधर जातिवाद भी गरमा रहा है.. इसी बीच में जातिवाद से मेरा जब पहली बार पाला परा था उसे मैं आपके पास लेकर आया हूं..
मैं तब 15 साल का था और नया-नया दसवीं पास करके आगे कि पढाई करने के लिये कालेज जाना शुरू किया था.. मैं अक्सर कालेज में अपने गांव के पास के रहने वाले दो लड़कों के साथ जाता था.. चंदन और कुंदन नाम था.. वहां कालेज में हमारे साथ एक और लड़का बैठने लगा था(मुझे उसका नाम याद नहीं है).. वो शायद मेरे साथ रहने वाले चंदन-कुंदन की जाति जानता था सो मुझे भी उसी जाति का समझ कर मेरे पास बैटने से परहेज नहीं करता था..
एक बार उसने मुझसे कहा, "मैं क्षत्रिय हूं, तुम क्या हो?" मुझे थोड़ा झटका सा लगा, इससे पहले मुझसे इस तरह का प्रश्न किसी ने नहीं पूछा था.. मैं थोड़ी देर सोचा कि क्या उत्तर दूं और अंत में मैंने सवर्ण होते हुये भी कहा, "मैं सूद्र हूं, थूक दूं क्या? अगर थूक दूंगा तो तुम भी शूद्र हो जाओगे.." और फिर उसने मेरे साथ उठना-बैठना छोड़ दिया, या यूं कहें कि मैंने छोड़ दिया तो ज्यादा उचित होगा..
ये बात बिक्रमगंज की है, जो कि बिहार में है और सासाराम जिला का एक अनुमंडल है, कि है.. मेरे पिताजी उस समय वहां के अनुमंडल पदाधिकारी थे और अक्सर मुझे छोड़ने और लाने के लिये एक गाड़ी जाती थी.. जो उस छोटे से जगह के लिये कुछ नई बात थी और लड़कों का ध्यान हमेशा मेरे उपर चला ही जाता था.. कुछ दिनों के बाद उस लड़के को पता चल गया कि मैं सवर्ण हूं तो वो फिर से मेरे पास आया और पूछा कि तुम अपनी जाति को बदनाम क्यों कर रहे हो? तुमने उस दिन उस तरह का उत्तर क्यों दिया? मेरा उत्तर था कि मैं जिस जाति से संबंधित हूं वो ना तो ब्राह्मण है और ना ही क्षत्रिय है और ना ही वैश्य है, क्योंकि हमारा खानदानी पेशा व्यापार नहीं है.. तो बस एक ही चीज बचती है और वो है शूद्र.. अगर तुम इसे साबित कर दो कि मैं शूद्र नहीं हूं तो मैं भी मान लूंगा कि मैं शूद्र नहीं हूं.. उसके पास कोई जवाब नहीं था.. फिर पापाजी का वहां से तबादला हो गया और मैं पटना आ गया मगर एक नये अनुभव के साथ..
यहां से लिया हुआ
mera to isse bhi km umr me jb 6th me thi.maine bhi kuchh aapke jaisa hi jwab diya tha
ReplyDeleteप्रशांत जी,
ReplyDeleteऐसी ही सोच और अंतरजातीय विवाह से हमारे यहां जाति व्यवस्था खत्म होगी। लेकिन देखिए न, निहित राजनीतिक स्वार्थ वाले लोग इसे आरक्षण के जरिए जिंदा किए हुए हैं। इन लोगों को दलितों के मसीहा अंबेडकर की भी बातों से कोई मतलब नहीं।
बहुत अच्छा जवाब दिया आप ने उस जाति पूछने वाले चिरकुट कुमार को ।
ReplyDeleteबहुत अच्छा जवाब दिया आप ने उस जाति पूछने वाले चिरकुट कुमार को ।
ReplyDeleteकुछ चीजे हम कभी नही बदल सकते ,हैरानी ये है की कुछ खास प्रान्त ओर राज्यों मी ज्यादा है ,मैंने अपनी mbbs ओर M.D गुजरात से की है ,मुझसे १०सलो मी किसी ने मेरी जाट नही पूछी,लेकिन जब भी छुट्टियों मे घर आता था टू ट्रेन से उतरकर ,मेरठ के लिए बस पकड़ता था देल्ही से ,बस मे बैठते ही अमूमन यही सवाल होता की कौन जात के हो.....चाहे वो पुरूष हो या स्त्री....
ReplyDeleteWe should respect our 'dharam and jaati' in which we are born ,as our birth is in god's hands---thats my view.
ReplyDeletethough I do not blv in caste and religion issues But I am proud of my caste and religion' I am born in to.becoz I always got respect and priority becoz of it,whenever i was in my birth place[in india].
-Not only in India, it is 'an issue at times- even abroad and matters ''who you are??''
-Not caste wise but 'here in UAE local people are differentiated as ''belong to which Kabila'..
=So I feel--why to feel shy to talk abt ur caste even if u are swarn or not.
Thanks
@ अल्पना वर्मा : 100% agree with you.. But here my question is something diff. My ques is- why we select our frnds from only our caste, like that guy?
ReplyDeleteok--then you are right--baaat sahi hai--friendship on that'caste and religion' basis??? -no no--thats totally wrong and bad.
ReplyDeleteI remember now a story'Topi Shukla'.Which had somewhwat similar issue.
[sorry for not writing in hindi]
@ अल्पना वर्मा : कोई बात नहीं अल्पना जी.. यहां लोग जिस किसी भी भारतीय भाषा में लिखना चाहते हैं या लिखते हैं उसका स्वागत है.. और अगर विदेशी भाषा में लिखते हैं तो भी मुझे कोई दिक्कत नहीं है.. मैं उसे अनुवाद करके पढ लूंगा.. :)
ReplyDeleteबहुत अच्छा जवाब दिया भाई !
ReplyDeleteपर इस आरक्षण का तो नाम न लो, अब तो बस एक ही बात की खुशी है कि अपनी पढ़ाई पहले हो गई.... और अब जो आगे की पढ़ाई करनी भी है... वो शायद अब अपने देश में कभी न करूं.
अर्जुन सिंह को क्या पड़ी है... मरने वाले दिन तक वोट चाहिए... यहाँ ऐसे भी लोग हैं जो अमेरिका की नागरिकता छोड़कर पिछले साल वापस आए... उनकी सबसे बड़ी प्राथमिकता थी कि उनके बच्चे अपने देश में पढेंगे, यहाँ का संस्कार पायेंगे....
कल ही उनसे बात हुई तो उन्होंने बस इतना ही कहा... 'शुक्र है मेरे बच्चों के पास अभी भी अमेरिकन पासपोर्ट है !' खैर बहुत लम्बी चर्चा हो जायेगी... फिर कभी !
छुवाछुत पर अच्छी चोट है , अपनी जाति,धर्म व खानदान पर सभी गर्व होना चाहिए लेकिन जातिवाद व छुवाछुत का आज कोई मायना नही रह गया
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