समीर जी का वो पत्र कुछ यूं था(जैसा कि अमूमन वो टिप्पणी में नहीं लिखते हैं:))..
इस तरह ट्रेफिक बुलवाकर आप ठीक नहीं करते वो भी तब, जब आप यूँ भी अपनी लेखनी से सबको आकर्षित करते हैं. मैं आपका हितचिंतक हूँ अतः आपके इस कदम से निराश हुआ हूँ और अफसोस जताने आया था. आशा है भावनाओं को समझते हुए आप इसे अन्यथा न लेंगे/ राह में विचलित करने वाले अनेकों लोग मिलेंगे, क्या सब राहों पर एक साथ चलना आपके लिये संभव होगा?? तब फिर?? यह रास्ता आपका नहीं है भाई..यह काठ की हांडी है, बस एक बार चढ़्ती है.
एक बार फिर से मैं समीर जी को धन्यवाद देता हूं और साथ में ये भी कहना चाहता हूं कि मैंने उसे अन्यथा ही नहीं दिल पर ले लिया :D(Just Kidding) :)..
एक रिकार्ड मेरे नाम भी : ये मेरे चिट्ठे का पहला ऐसा पोस्ट है जिसे मैंने हटाया है..
प्रशांत आप ने बहुत अच्छा किया,फ़िर हम लोग तुम्हे ओर बाकी तुम्हारी उम्र वालो को अपने बच्चो की तरह से मानते हे,शायाद समीर जी ने इसी हक से तुम्हे समझाया हे,ओर आप ने यह कर के हम सब की नजर मे अपनी इज्जत ओर बढा ली हे,
ReplyDeleteउम्मीद है अब आप अपनी कलम की ताकत से 'ट्राफिक' बुलाएँगे न की भूल वश की गयी गलती को दोहरा कर
ReplyDeleteआपके इस व्यवहार ने आपके व्यक्तित्त्व को चार चाँद लगा दिए. आशीर्वाद और ढेरों शुभकामनाएँ
ReplyDeleteमीनाक्षी
अच्छा किया।
ReplyDeleteमैं इस चिट्ठी को फायरफॉक्स, पर लिनेक्स में, देख रहा हूं। आपका यह टेंप्लेट एकदम ठीक दिखायी पड़ रहा है। वैसे यह कौन सा टेंप्लेट है।
ReplyDeleteजिस भावना से मैने कहा, उसी भावना से आपने मेरी बात ग्रहण की. मैने आपको ऐसा ही समझा था और आपके प्रति मेरे मन में आपका स्थान और ऊँचा हो गया.
ReplyDeleteमेहनत करते रहिये, हम सब दिल लगाकर आपको पढ़ते हैं. हाँ, कई बार टिप्पणी करना रह जाता है तो उससे आप जैसे अच्छे लेखकों को क्या फरक पड़ना चाहिये.
अनेकों शुभकामनायें एवं आभार.
ठीक किया। पर नजर जल्दी उतारो।
ReplyDelete'काठ की हाँड़ी' की बात का ध्यान दिलाया समीरजी ने , भला किया।
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