इन मेधावी छात्रों को हम यहाँ कर्मक्षेत्र में भुगत रहे हैं। प्रशासनिक, न्यायिक, शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य सेवाओं में इन्हें जनता भुगत रही है।
हम जब छोटे थे तो रेलें गिनती की थीं, पर लोग भी यात्रा कम करते थे कभी कभी परेशानी होती थी अन्यथा जनरल डब्बे में जगह मिलती थी। एलएलबी करने के समय मैं बाराँ से कोटा रोज यात्रा करता था। रोज मुझे सोने को जगह मिल जाती थी, जनरल डब्बे में। 1978 में बिना रिजर्वेशन के मुम्बई आने जाने की यात्रा की बिना रिजर्वेशन के बड़े मजे में। आज 90 दिन पहले रिजर्वेशन की चिंता लग जाती है। कारण एक ही है। साधन कम हैं। यहाँ भाटिया जी की बात का समर्थन करना होगा। हम साधनों का विकास उतना नहीं कर पाए जितनी आबादी का विस्तार किया। आज कोई भी आबादी को सीमित रखने की बात नहीं करता पिछले छह माह से हिन्दी ब्लॉगिंग में एक भी पोस्ट देखने को नहीं मिली आबादी नियन्त्रण पर। चीन ने कितनी खूबसूरती से अपनी आबादी पर नियन्त्रण पा लिया है। मेरी बेटी जहाँ पढ़ती थी और अब नौकरी में है उस इंस्टीट्यूट आईआईपीएस मुम्बई के द्वार के बाहर लगे आबादी दर्शाने वाले विशाल पट्ट पर नित्य ही आँकड़ो में जो वृद्धि हो रही है। वह दहलाने वाली है।
भारतीय समाज को दोनों ही दिशाओं मे काम करना होगा। माँग घटानी होगी और पूर्ति में वृद्धि करनी होगी।
अब तो सप्ताहांत हो गया। आप की पोस्ट फायरफॉक्स में सही दर्शन नहीं दे रही है। इसे ठीक करो। मेरे विचार में तो आप पोस्ट मेटेरियल को जस्टिफाई कर देते हैं इस से परेशानी है। नहीं तो टेम्पलेट बदल लो। कब तक एमएसवर्ड में ट्रांसफर करके पढ़ते रहेंगे।
दिनेशराय द्विवेदी जी ने मेरे चिट्ठे के इस पोस्ट पर अपने कमेंट के रूप में ये लिखा था और मुझे उनका अपना अनुभव बांटना बहुत पसंद आया.. फिर लगा कि आपको क्यों इससे वंचित रखा जाये? सो मैं उनका लिखा हुआ अपने चिट्ठे पर डाल रहा हूं.. उस पोस्ट पर और भी कई कमेंट आये थे जो मुझे बहुत ही पसंद आयी थी.. जिसमें ज्ञान जी का कमेंट मुझे कुछ ज्यादा ही सकारात्मक और उत्साहवर्धक लगा.. इसे भी आप पढें..
DR.ANURAG ARYA said...
aapki bat bilkul sahi hai ,abhi tak hamare all india ki CBSE medical entrance me us vaqt koi reservation nahi tha ..par ab shayd vaqt badal gaya hai,mera manna hai ki jarurat mand aor vastav me pichde logo ko 12 tak muft shiksha di jaye aor koi aisa pustaklaya ya institute banaya jaye jahan yogya parantu jaruratmand logo ko entrance ke liye muft snasthan chalaye jaye.
राज भाटिय़ा said...
प्रशांत भाई, सारी पढाई ही फ़्रि होनी चहिये,ओर बच्चो को किताबे भी फ़्रि मिलनी चाहिये,स्कुल कालेज इतने होने चहिये की,सभी बच्चे पढ सके.यह बात सपने मे नही इसी दुनिया मे होती हे,युरोप के ९९% देशो मे पढाई मुफ़्त हे ,किताबे मुफ़त हे,जहां विदेशी बच्चे भी इस का लाभ उठाते हे, तो हमारे जहा क्यो नही हो सकता ?
Gyandutt Pandey said...
व्यवस्था को मरने दें। वह फीनिक्स की तरह फिर जी उठ्ठेगी! समाज जीने के तरीके खोज लेता है। अन्तत: काबलियत ही चलेगी। चाहे वह जिसमें हो।
अल्पना वर्मा said...
भारत का दुर्भाग्य है कि अब तक आरक्षण जैसे मुद्दों में शिक्षा को उलझा रखा है.आरक्षण के नाम पर सिर्फ़ जाति वाद को बढावा दे रहे हैं और कुछ नहीं.
क्यों आर्थिक आधार पर आरक्षण नहीं करते???
दुःख होता है सरकार का जाति/क्षेत्र के नाम पर आरक्षण बढाने' जैसे ग़लत फैसलों पर.
यही सब 'कुव्यवस्था 'देख कर कितना चाहो फ़िर भी भारत लौटने की हिम्मत नहीं होती न ही बच्चों को भेजने की.ईश्वर समाज के कथित ठेकेदारों को समय रहते सदबुद्धि दे.
अरुण said...
हम यू ही तो २००० साल गुलाम नही रहे ना,पहले मुगलो,फ़िर अग्रेजो फ़िर इन गधो की गुलामी करमे को अभीशिप्त है हम लोग ,अगर इन्होने गये पचास सालो मे लोगो को पढाया होता तो आज ये ना होते इसी लिये ये सिर्फ़ द्वेश बडाने और अपनी कुर्सी पक्की करने के अलावा कुछ और नही कर रहे हा इन सालो मे इन्होने एक फ़ौज जरूर खडी की है वो है इन के सुर मे सुर मिलाने वाले वाम पंथी विचारो की ..:)
On NDTV [in the we the people' today at 11pm[UAE time],[ Just now] I saw a programme -the caste debate'--I wish people should have seen that.
ReplyDeleteI feel-this debate is never ending till politicians take interest in country's progress-and not work on policy of devide and rule!!!
भैया, ब्लॉग टेम्प्लेट ठीक कर फायरफॉक्स के लिये उपयुक्त कर दें। ब्लॉग यातायात के लिये फायदेमन्द रहेगा।
ReplyDeleteप्रशांत हम तो पढ़ ही नही पा रहे है।सब गड्ड मड्ड है। ज्ञान जी की बात पर जरा गौर फरमाये।
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