Thursday, December 19, 2013

देवयानी पर उठे बवाल संबंधित कुछ प्रश्न

हमारे कई मित्र इस बात पर आपत्ति जता रहे हैं कि देवयानी मामले में भारत सरकार इतनी आक्रामक क्यों है? जबकि दुसरे अन्य मामलों में ऐसा नहीं था. मेरे कुछ अमेरिका में रहने वाले मित्र भी इस बात को हमारी बातचीत में उठा चुके हैं. कुछ मित्र यह भी कह रहे हैं कि "सुनील जेम्स" जो छः महीनों से टोगो के जेल में बंद हैं, उनके मामले में भारत सरकार इतनी तीव्रता से कोई कदम क्यों नहीं उठा रही है? कई लोग आधे-अधूरी जानकारी होने के कारण से भी भ्रम में हैं.

जहाँ तक मेरी जानकारी और समझ है, देवयानी भारत का प्रतिनिधित्व कर रही है. इसलिए यह मसला इतना संजीदा हो चुका है. सुनील जेम्स का मामला हो या अन्य कोई मामला, वे सभी भारत का सीधे तौर पर प्रतिनिधित्व नहीं कर रहे थे. मगर यह सीधा भारत की प्रतिष्ठा से जुड़ा मामला है. यहाँ तक कि मेरे वे सभी मित्र भी भारत का प्रतिनिधित्व नहीं कर रहे हैं जो भारत के बाहर हैं. अभी के भारतीय राजनीति के संबंध में भी देखें तो एक और आयाम दिखता है इस मुद्दे को इतनी हवा मिलने का. कांग्रेस सरकार कई जगहों पर अपनी असफलता से उबरने के लिए और खुद को एक सख्त एवं भारतीय प्रतिष्ठा के प्रति जागरूक दिखाने के लिए भी इस मुद्दे को हाथों-हाथ ली है.

कई जगह वियेना समझौते कि बात हो रही है, जिसके तहत इस मुद्दे को
वियेना संधि के उल्लंघन का मामला भी बताया जा रहा है. तो आईये जानते हैं कि वियेना  संधि आखिर है क्या? और कैसे अमेरिकी सरकार उसका उल्लंघन कर रही है?

"अमेरिका का व्यवहार वियना समझौते के अनुच्छेद 40 और 41 का खुला उल्लंघन है. मूलत: यह एक प्रोटोकाल है, लेकिन इसने अनेक अर्थों में एक कानून का रूप ले लिया है. इस संधि के मूलत: दो भाग हैं और दूसरे भाग का संबंध दूतावास में काम करने वाले अधिकारियों और काउंसलर पोस्ट के अन्य सदस्यों को मिलने वाले अधिकार, सुविधाओं और रियायतों से है.

अनुच्छेद 40 के अनुसार कोई देश अपने यहां कार्य करने वाले दूसरे देशों के राजनयिकों के साथ यथोचित सम्मानजनक व्यवहार करेगा और उन्हें एक राजनयिक को मिलने वाली सुविधाओं से वंचित नहीं किया जाएगा तथा उनके व्यक्तित्व, स्वतंत्रता और गरिमा पर होने वाले किसी हमले से उनकी रक्षा करेगा. अनुच्छेद 41 के अनुसार केवल गंभीर प्रकृति के अपराधों के मामलों को छोड़कर दूतावास के अधिकारियों और कर्मचारियों की गिरफ्तारी नहीं की जाएगी अथवा उन्हें हिरासत में नहीं लिया जाएगा. इसी तरह अनुच्छेद 42 गिरफ्तारी, हिरासत अथवा अभियोजन की नोटिफिकेशन से संबंधित है. कुल मिलाकर ऐसी व्यवस्था की गई है कि दूतावास के किसी अधिकारी और कर्मचारी के साथ इस तरह बर्ताव किया जाएगा कि उनके सम्मान, स्वतंत्रता , गरिमा पर कोई आंच न आए. देवयानी के मामले में अमेरिका ने यह कसौटी पूरी नहीं की. तीनों आधार पर अमेरिका ने वियना संधि का उल्लंघन किया. देवयानी खोबरागडे को जिस तरह गिरफ्तार किया गया उससे उनके सम्मान पर आंच आई, जिस तरह तलाशी ली गई उससे उनकी निजता प्रभावित हुई और उन्हें जिस तरह कुख्यात अपराधियों के साथ जेल में रखा गया उससे उनकी गरिमा को आघात लगा. भारत की आपत्ति का यही आधार है और सख्त जवाबी कार्रवाई की यही वजह."


कुछ लोग यह कह रहे हैं, यहाँ तक कि मैं भी जानता हूँ की देवयानी गलत थी. मगर इसके बरअक्स यह भी सवाल मन में आता है कि जब 23 जून से ही उनकी नौकरानी लापता हैं, उनका पासपोर्ट भी इस वजह से भारत सरकार निलंबित कर चुकी है, तो अमेरिकी सरकार उस पर संज्ञान उतनी ही तीव्रता से क्यों नहीं ली जितनी कि देवयानी पर ली?

इसमें भी कोई शक नहीं कि हमारी भारतीय व्यवस्था सामंतवादी व्यवस्था है. और देवयानी ने उसी के अनुरूप कार्य करके अमेरिकी क़ानून का उल्लंघन की है. भले भारत में यह शान की बात है मगर वहां के लिए यह जुर्म है इस बात को भी अच्छी तरह समझती रही होंगी. मगर यह मामला इतना भी आसान नहीं है जितना दिखता है. क्योंकि संगीता इतनी भी बेचारी प्रतीत नहीं हो रही जितनी एक आम भारतीय के घर में कार्य करने वाले सेवक-सेविकाएँ. इसका सबसे बड़ा उदहारण यह है कि दस दिसंबर को संगीता के पति एवं पुत्र अमेरिका के लिए निकले थे और बारह दिसंबर को देवयानी कि गिरफ़्तारी हुई. एक आम भारतीय के पास अमेरिका यात्रा से पहले अनेक अर्थ संबंधी प्रश्न मुंह बाए खड़े होते हैं यह हम सभी जानते हैं. और अगर उनके टिकट का इंतजाम अमेरिकी सरकार की है तो यह और भी रोचक षड्यंत्र के तौर पर सामने आती है.

फिलहाल तो भारतीय सरकार द्वारा अमेरिकी विदेश मंत्रालय से पूछे गए वे चार सवाल मेरे मन में भी है जिसका उत्तर अभी तक नहीं दिया गया है.

1. देवयानी की घरेलू सहायक और भारतीय नागरिक संगीता रिचर्ड की खोज के बारे में क्या हुआ? संगीता भारतीय पासपोर्ट पर अमरीका पहुंची थीं और वो 23 जून से ही लापता हैं. इस बात की जानकारी तत्काल न्यूयॉर्क स्थित विदेशी मिशन विभाग को दे दी गई थी.

2. इसके अलावा इस बात की भी जानकारी मांगी गई कि पासपोर्ट और वीज़ा स्टेटस में बदलाव करने और अमरीका में कहीं भी काम करने की छूट देने संबंधी संगीता रिचर्ड की मांग के ख़िलाफ़ अमरीका ने क्या कार्रवाई की, क्योंकि ये अमरीकी नियमों के प्रतिकूल है.

3. तीसरा सवाल पूछा गया कि चूंकि संगीता का पासपोर्ट आठ जुलाई 2013 को रद्द कर दिया गया था और वो अभी भी वहां ग़ैरक़ानूनी तरीक़े से रह रही है, तो अमरीकी सरकार ने संगीता को वापस भेजने में किस तरह की मदद की?

4. संगीता की गिरफ़्तारी के बारे में क्या क़दम उठाए गए क्योंकि वो देवयानी के घर से नगद पैसे, मोबाइल फ़ोन और कई ज़रूरी दस्तावेज़ उठाकर ले गई थी. यहाँ चोरी का भी मामला बनता है.


एक सवाल जो भारत सरकार ने नहीं पूछा मगर मेरे मन में है उसे भी इन सवालों कि सूची में शामिल कर रहा हूँ.

5. अमूमन अमेरिका सरकार किसी भी छोटी सी भूल अथवा किसी छोटी सी इन्फोर्मेशन कि कमी के कारण भी वीजा देने से इनकार कर देती है. मसलन अगर आप दसवीं कि अंक सूची संलग्न करना भूल गए हों मगर आपने PHd. तक कि जानकारी दे रखी है फिर भी वे वीजा रिजेक्ट कर देते हैं. मगर भारत में सुनीता पर और उसके पति के ऊपर केस चलने के बावजूद वह उन्हें वीजा के लिए उपयुक्त मानते हुए वीजा कैसे प्रदान कर दी?

जो भी इस मामले को इतनी तूल दिए जाने के विरोध में बातें कर रहे हैं उन्हें यह अच्छी तरह समझना चाहिए कि यह भार कि प्रतिष्ठा से जुड़ा प्रश्न पहले है और भारत के लिए किसी भारतीय नागरिक के पक्ष में खड़ा होते दिखाना बाद में. वैसे भी हम सभी अच्छी तरह जानते हैं कि एक पश्चिमी देश जितना अधिक अपने नागरिकों के विदेश में सुरक्षा के प्रश्न पर उनके साथ होता है उतनी तत्परता भारत जैसे विकासशील देश यदा-कदा ही दिखता हैं.

Monday, December 09, 2013

हम लड़ेंगे साथी

आज बस एक पुरानी कविता आपके सामने -

हम लड़ेंगे साथी

हम लड़ेंगे साथी,उदास मौसम के लिए
हम लड़ेंगे साथी,गुलाम इच्छाओं के लिए
हम चुनेंगे साथी,जिन्दगी के टुकड़े

हथौड़ा अब भी चलता है,उदास निहाई पर
हल अब भी बहते हैं चीखती धरती पर
यह काम हमारा नहीं बनता,प्रश्न नाचता है
प्रश्न के कन्धों पर चढ़कर
हम लड़ेंगे साथी

कत्ल हुए जज्बों की कसम खाकर
बुझी हुई नजरों की कसम खाकर
हम लड़ेगे साथी
हम लड़ेंगे तब तक
जब तक वीरू बकरिहा
बकरियों का मूत पीता है
खिले हुए सरसों के फूल को
जब तक बोने वाले खुद नहीं सूँघते
कि सूजी आँखो वाली
गाँव की अध्यापिका का पति जब तक
युद्ध से लौट नहीं आता
जब तक पुलिस के सिपाही
अपने ही भाइयों का गला घोंटने को मजबूर हैं
कि दफ्तर के बाबू
जब तक लिखते हैं लहू से अक्षर....
हम लड़ेंगे जब तक
दुनिया में लड़ने की जरूरत बाकी है....
जब बन्दुक न हुई,तब तलवार होगी

जब तलवार न हुई,लड़ने की लगन होगी
कहने का ढंग न हुआ,लड़ने की जरूरत होगी
और हम लड़ेंगे साथी....

हम लड़ेंगे
कि लड़े बगैर कुछ नहीं मिलता
हम लड़ेंगे
कि अब तक लड़े क्यों नहीं
हम लड़ेंगे
अपनी सजा कबूलने के लिए
लड़ते हुए जो मर गए
उनकी याद जिन्दा रखने के लिए
हम लड़ेंगे साथी.....

- पाश