Friday, February 20, 2015

पापा जी का पैर - दो बजिया बैराग्य

पापा जी को पैर दबवाने की आदत रही है. जब हम छोटे थे तब तीनों भाई-बहन उनके पैरों पर उछालते-कूदते रहते थे. थोड़े बड़े हुए तो पापा दफ्तर से आये, खाना खाए और उनके लेटते ही तीनों भाई-बहन उनके पास से गुजरने से कतराते थे, कहीं पापा जी देख लिए तो पैर दबाना पड़ेगा. मगर फिर भी कोई ना कोई चपेट में आ ही जाता था. ऐसा भी नहीं की हर रोज कोई एक ही पकड़ाता था, तीनों ही को अलग-अलग शिफ्ट में पैर दबाने का काम मिल ही जाता था. जब हमें पापा जी के खर्राटे से लगता था की पापा सो गए हैं और हम चुपके से निकलने ही वाले होते थे की पापा जी का पैर हिलने लगता था, जो यह दिखाता था की "सोये नहीं हैं, और दबाओ."

पापा जी तलवे पर चढ़ कर एक ख़ास जगह पर थोडा जोर देते ही 'कट' से आवाज़ आती थी. अब भैया-दीदी ये ट्रिक जानते थे या नहीं ये वो ही जाने, मगर मैं जब भी पैर दबाता था तो उस जगह से 'कट' की आवाज़ के बिना मजा नहीं आता था. अगर आवाज़ नहीं आती थी तो कई बार उस जगह कूदने लगता था आखिर सेल्फ सटीस्फैक्शन भी कोई चीज होती है, और पापा जी डांटते, "दबाना नहीं तो 'ऐड़' क्यों रहा है?"

उन दिनों पापा जी के सर पर इक्के-दुक्के ही पके बाल थे, अगर कोई एक पैर दबा रहा हो तो बाकी दोनों का काम उनके उन सफ़ेद बालों को तोड़ने का भी मिलता था...बाद में हम लालच में सर के सफ़ेद बाल तोड़ें उसके लिए पापा जी हमारा मेहनताना भी तय कर दिए. एक सफ़ेद बाल के दस पैसे. सन उन्नीस सौ नब्बे के आस-पास की बात है ये. हम रोज बाल उखाड़ते थे और रोज पिछले सारे पैसों का हिसाब रखते थे. ये बात दीगर है की वे पैसे शायद ही कभी हमें मिले. हाँ! एक बार मुझे मिला था..पूरे पांच रुपये, और उससे मैंने पेंटिंग करने वाला कलर बॉक्स ख़रीदा था. पिछले साल यूँ ही मजाक में पापा जी मैंने कहा, अब भी पैसे देंगे तो आपके सफ़ेद बाल सारे उखाड़ दूंगा.. अब तो चुनने कि भी झंझट नहीं है, लगभग सारे के सारे सफ़ेद हो चुके हैं. :-)

पापा जी के पैर दबाने का एक फायदा भी मिलता था. पापा जी गाँव-जवार के किस्से-कहानियों और मुहावरों के पूरे खान थे और हैं, तो वे सब उनसे सुनते जाना. अब चूँकि मैं और भैया आपस में बहुत लड़ते थे तो इसी पैर दबाने को लेकर एक किस्सा सुनाये थे जो यहाँ सुनाता जाता हूँ.
एक गुरूजी थे, उनके दो चेले. दोनों ही उनको बहुत मान देते थे. अब गुरूजी की एक आदत थी, रोज दोपहर में खाना खाने के बाद दोनों चेलों से पैर दबवाने की. बस यही पैर दबाना दोनों चेलों के बीच झगड़े की जड़ थी. दोनों ही इस बात पर लड़ते थे की आज पैर मैं दबाऊंगा तो मैं दबाऊंगा. झगड़े का हल गुरूजी ने कुछ यूँ निकाला की, बायाँ पैर चेला १ का और दायाँ पैर चेला २ का. एक दिन चेला १ बीमार पड़ गया तो गुरूजी ने चेला २ से कहा की आज बायाँ पैर भी तुम ही दबा दो. चेला २ गुस्से में सोचा की मैं चेला १ का पैर क्यों दबाऊं? गुस्से में उसने एक पत्थर उठाया और गुरूजी का बायाँ पैर तोड़ दिया. अगले दिन चेला १ वापस आया और देखा की गुरूजी बिस्तर पर पड़े हुए हैं और उनका बायाँ पैर चेला २ ने तोड़ दिया.. अब गुस्से में आने की बारी उसकी...उसने भी एक पत्थर उठाया और चेला २ का पैर, यानी गुरूजी का दायाँ पैर भी तोड़ दिया.
 हम बच्चों  से यह कथा कह कर पापा जी दो निशाने साधते थे. पहला यह की हम खूब खुश हो जाएँ ये मजेदार कहानी सुन कर. और दूसरा यह की खूब मन लगा कर पैर दबाएँ. :-)

इधर पिछले दो-तीन साल से देख रहा हूँ, पापा जी का पैर दबाते समय ऐसा लगता है जैसे मांसपेशियां हड्डियों से कुछ अलग होती जा रही हैं..इधर कुछ सालों से देख रहा हूँ, पापा जी पैर भी उतने मन से नहीं दबवाते जिद करके.. शायद पापा जी अब यही मान कर चलने लगे हैं की हर समय कोई बच्चा साथ तो रहेगा नहीं पैर दबाने के लिए..

पिछले दो-तीन महीनों से पापा जी का पैर दबाने का बहुत मन कर रहा है...किसी तलब की हद्द तक...

7 comments:

  1. हम तरक्की की ओर ऐसे भागेगे ये सोचा न था कि अपने भी पीछे छूट जायेगे..

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    1. हाँ दोस्त.. लगभग छूट ही चुके हैं.. :(

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  2. ये पैर दबाना अब कहाँ बच्चे करते हैं, हम तो बचपन में पापा, मामा, और मौसियों के भी निशाने पर रहते थे...जहाँ देखा नहीं...ऐ अप्पू ऐ मोना, आओ तो पैर दबाओ तो....इसी पर सुधा मौसी ने कहा था कि अब के बच्चे को बोल सकते हैं क्या ऐसे? भाग जायेंगे, लेकिन तुम लोग से कितना पैर दबवाते थे, एक बार भी नखरा नहीं करते थे. :)

    मस्त पोस्ट रे लड़के...एकदम सुबह सुबह मन रिफ्रेश हो गया :)

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    1. और भी कई किस्से हैं दोस्त.. वो फिर कभी :)

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  3. अंत की पंक्ति भावुक कर गयी....सच मे !

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  4. हा हा हा
    हम भी जब हम चुपके से निकलने लगते थे तो ऐसे ही पैर हिलने लगता था

    'बैराग्य' इत्ती जल्दी क्यों जी?

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  5. हम तो बचपन में बङे भाई के पैर दबाते थे। पर मेरे बच्चे कभी मेरा पैर नहीं दबाये शायद उस समय यह काम आउट आफ डेट था ।

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