Friday, December 28, 2007

मेरी कम्पनी में बम विस्फोट की अफवाह

आज मैं थोडी देर से लगभग 10:30 AM में आफिस पहूंचा। जैसे ही अंदर दाखिल हुआ तो मेरे एक साथी ने बताया कि थोडी देर पहले हमारे कम्पनी के एक दूसरे ब्रांच में बम रखे जाने की धमकी मिली है और उस पूरी इमारत को खाली करा लिया गया है। मैं पहले तो चौंका कि अभी तक चेन्नै बस जयललिता और करूणनिधि के हाथों ही परेशान रहता था लेकिन अब ये भी सुनना पड़ेगा? मैंने अभी तक चेन्नई को छोटे-मोटे अपराधों के मामले में सबसे सुरक्षित शहर पाया है सो थोड़ा आश्चर्य होना जायज था।

खैर हम सभी दिल थाम कर इस घटना के पटापेक्ष होने का इंतजार करने लगे। लगभग 12 बजे मेरे एक मित्र ने, जो उसी ब्रांच में काम करते हैं, फोन पर बताया कि वो बस एक अफवाह थी और कोई भी बम नहीं मिला। मगर आज दिन भर के लिये उस ब्रांच को बंद कर दिया गया।

असल में मेरी कम्पनी के 15-16 ब्रांच हैं चेन्नई में जिसमें से सबसे बड़े ब्रांच में मैं काम करता हूं जिसे साउथ विंग के नाम से जाना जाता है और इसमें लगभग 1600 कर्मचारी कार्यरत है। दूसरा सबसे बरा ब्रांच, जिसमें बम मिलने कि अफवाह आयी थी, को इस्ट विंग कहते हैं और उसमें लगभग 1200 लोग काम करते हैं।

हां बाद में ये अफसोस जरूर हुआ कि मेरे ब्रांच में ऐसी अफवाह क्यों नहीं आयी। कम-से-कम आज कि छुट्टी तो मिलती। :D

Thursday, December 27, 2007

कुछ चीजें अजब-गजब ब्लौगवाणी पर

आज मैं फिर आया हूं कुछ अजब-गजब चीजें लेकर। मैं एग्रीगेटर के रूप में ब्लौगवाणी को सबसे ज्यादा प्रयोग में लाता हूं सो नित्य दिन इसकी खूबियों के साथ-साथ इसकी खामियों पर भी नजर परती रहती है।

अब ये तो स्पष्ट है कि अगर मैं इसे प्रयोग में लाता हूं तो जरूर मुझे इसमें कुछ खूबी नजर आती होगी। आज जो मैंने इसकी तकनीकी खामी ढूंढी है वो इस चित्र से आपको स्पष्ट हो जायेगा।

इसमें दो पोस्ट जिसे मैंने लाल रंग से घेर रखा है उसे आप गौर से देखेंगे तो आप पायेंगे कि वे दोनों पोस्ट जितनी बार पढे भी नहीं गये हैं उससे कई ज्यादा बार पसंद किये गये हैं। अब बिना पढे लोग कैसे उसे पसंद कर लिये ये मैं नहीं समझ पाया, अगर आप लोग समझ गये हों तो मुझे भी समझा दें।

वैसे मेरी नजर में ये ब्लौगवाणी कि खामी नहीं है क्योंकि आप एक सर्वर से एक ही बार किसी पोस्ट को अपनी पसंद का बता सकते हैं। जो कि खामी नहीं खूबी है। और इसका मतलब ये हुआ कि ब्लौगवाणी सर्वर का आई पी अड्रेस को अपने डेटाबेस में सुरक्षित रखता है। मेरे ख्याल से अगर ब्लौगवाणी उस आई पी पते का इस्तेमाल करते हुये ये भी करे कि जिस आई पी पते से कोई पोस्ट देखा गया हो बस उसी आई पी पते से ही उसे पसंद वाले सूची में डाला जा सकता है तो इस समस्या का हल हो सकता है। और इसके लिये ब्लौगवाणी को अपना कोई मेमोरी स्पेस खर्च भी नहीं करना परेगा।

आपके विचार इस पर आमंत्रित हैं। धन्यवाद।

Wednesday, December 26, 2007

पापा एक चौपाया जानवर होते हैं

"पापा एक चौपाया जानवर होते हैं। उनके दो कान, दो आंख, एक नाक, एक मुह, दो सींग, चार पैर और एक पूंछ होती है। पापा दूध देती है। पापा लाल, काला, सफेद और पीले रंगों में पाये जाते हैं।" ये निबंध मैंने कब लिखा था ये मुझे याद भी नहीं है पर मेरे पापा मम्मी बताते हैं कि जब मैं बहुत छोटा था तब एक दिन मैं विद्यालय से घर आया और बहुत खुश होकर बताया कि आज हमें गाय पर निबंध लिखना सिखाया गया है। मेरे पापाजी ने कहा कि ठीक है जब निबंध लिखना सीख गये हो तो पापा के उपर निबंध लिखो, और मैंने जो लिखा था वो आप सबों के सामने है।

आज मेरे पापाजी का जन्मदिन है और आज मुझे उनसे जुड़ी कई बातें याद आ रही है, और् उन यादों की पिटारी में से कुछ चुनिंदा यादें मैं आज यहां आप लोगों के साथ बांट रहा हूं।

मुझे याद है एक बार एक योगा कक्षा में जब कहा गया था कि आंखे बंद करके उस चीज के बारे में सोचो जो तुम्हें सबसे अधिक खुशी देती है और बस डूब जाओ उन क्षणों में, मानों वो सजीव हों। सभी लोगों कि तरह मैंने भी अपनी आंखें बंद की और सबसे अधिक खुशी के क्षणों को ढूंढने लगा। बहुत मुश्किल था ये सब, कई दृश्य आंखों के सामने आये और गये मगर अंततः मैंने ढूंढ ही लिया। मैंने पाया कि जब कभी मैं घर लौटता हूं तो मेरे पापाजी मुझे अपने सीने से लगाकर आशीर्वाद देते हैं और वही क्षण मेरे लिये सबसे खुशी का क्षण होता है।

पापाजी से मुझे घर में सबसे ज्यादा दुलार मिला है। मैं तो उनके गोद में 15-16 साल के उम्र तक बैठा हूं। वो बचपन में मुझे "पुछड़ू" कह कर बुलाते थे। इस नाम से बुलाना उन्होंने कब छोड़ा ये तो पता नहीं पर वे यादें तो अब शायद मेरे साथ ही जायेगी।

मेरे पिताजी एक प्रशासनिक अधिकारी हैं, और लाल-फितासाही नामक काजल की कोठरी से बेदाग निकलते हुये उन्होंने हम सभी भाई-बहनों को नैतिकता, ईमानदारी और मनुष्यता का अच्छा पाठ पढाया है। उन्होंने मुझे एक बार कभी एक बात कही थी जो शायद उन्हें भी आज याद ना हो। उन्होंने कहा था की "मनुष्य कि पहचान इससे नहीं होती है कि वो अपने से उपर वालों से कैसा व्यवहार करता है, बल्की इससे होता है की वो अपने से नीचे वालों से कैसा व्यवहार करता है।" शायद ये उनका सिखाया हुआ पाठ ही है कि बचपन से घर में सरकारी नौकरों की फौज होते हुये भी हम सभी भाई-बहन आज भी व्यवसायिक तौर पर कोई बहुत निचले स्तर के व्यक्ति से मिलते हैं तो इंसानों कि तरह ही मिलते हैं।

अगर आज कोई मुझसे पूछे कि बड़े होकर क्या बनना चाहोगे तो मेरा जवाब होगा कि अपने पापाजी कि तरह अच्छा इंसान बनना चाहूंगा।

Tuesday, December 25, 2007

ईसाई भारतीय नहीं हैं क्या?

मैं जब से हिंदी चिट्ठाजगत में आया हूं तब से लेकर अभी तक एक बात मैंने पाया है, वो ये कि हिंदी चिट्ठाजगत कुछ विभिन्न ध्रुवों में बंटा हुआ है। जिनमें से दो प्रमुख ध्रुव कम्यूनिस्म और भगवाधारीयों का है। पर एक बात तो जरूर है कि चाहे जो भी मतभेद अलग विचारधाराओं में हों लेकिन एक बात पर दोनों के विचार एक हो जाते हैं। वे सभी भारतीयता और राष्ट्रभाषा के नाम पर एक ही तरह की बातें कहते हैं चाहे तर्क जो भी दें।

ये बहुत ही अच्छी बात है, लेकिन कभी-कभी कुछ ऐसी बातें पढने को मिल जाती है जिससे लगता है कि सिर्फ हिंदू और मुसलमान ही भारतीय हैं ईसाई नहीं, जो भी पाश्चात्य शैली को अपनाता है या फिर विदेशी त्योहारों में भाग लेता है वे सभी देशद्रोहीयों की कतार में शामिल है।

जैसे एक उदाहरण मैं देना चाहूंगा। अभी 2-3 दिन पहले ही मैंने कहीं पर अपने किसी ब्लौगिये मित्र की टिप्पणी पढी थी, उनका कहना था कि हमने होली-दिपावली मना लिया, ईद भी मना लिया, क्रिसमस भी मना लेंगे। लेकिन नववर्ष हम क्यों मनाये?

मेरा उनसे पूछना है कि क्या हिंदूओं और मुसलमानों का पर्व और नववर्ष ही भारतीयता है, ईसाइयों का पर्व और नववर्ष नहीं?

मैं ना तो भगवान को मानता हूं, ना अल्लाह को, ना तो ईशू को और ना ही उनकी तरह के किसी और चीजों को। मगर जो मानते हैं, मैं उनकी भावनाओं का पूरा सम्मान भी करता हूं। मैं कभी उनसे ये अपेक्षा नहीं करता हूं कि वो भी मेरी तरह सोचने लगें। मेरा सोचना है कि जब तक आपको किसी से कोई व्यक्तिगत परेशानी ना हो तब-तक आप किसी को कोई भी त्योहार मनाने से क्यों रोकें? चाहे वो नया वर्ष हो, या वेलेंटाईन डे हो, या रोस डे या फिर कुछ और ही क्यों ना। इस तरह के दिवस और भारतीयता में कोई संबंध नहीं है, हां अगर कोई इस तरह के दिवस मना कर ये सोचता है कि जो इस तरह के दिवस नहीं मनाते हैं वो छोटे हैं तो उनकी यही मानसिकता बहुत कुछ कह जाती है।

खैर आज के इस शुभ पावन अवसर पर मैं भी क्या लेकर बैठ गया। आज तो मुझे याद करना चाहिये था अपने उन दोस्तों को जिनके घर पर बैठकर हम सारे दोस्त "जिंगल बेल" गाते थे। उनकी मां के हाथ का बना हुआ केक खाते थे। और जिंगल बेल के बाद शिक्स स्ट्रिंग (गिटार) पर कुछ ब्रायन एडम्स और कर्लोस संटाना के गीत को अपनी आवाजों से सजाते थे। हमलोगों का सबसे पसंदिदा गीत "Summer of 69" हुआ करता था। अगर आपने नहीं सुना है तो मैं आपसे कहूंगा कि आप इसे एक बार जरूर सुने, आप इसे सुनकर अपने पूराने दिनों में जरूर लौट जायेंगे।

summer of 69.mp3


"Merry Chrismas"

Sunday, December 23, 2007

औरकुट प्रोफाइल अब गूगल पर भी

अब आप किसी का औरकुट प्रोफाइल गूगल पर भी देख सकते हैं. इसके लिए आपको कुछ और नहीं बस अपने औरकुट के सेटिंग में जाकर "show my orkut information when my orkut friends search for me on Google.com" को आन करना परेगा. वरना आपको गूगल पर कोई सर्च नहीं कर सकेगा.



ये ख़बर मुझे आज अपने एक मित्र के ब्लौग पर पढने को मिला और आप लोगों की जानकारी के लिए मेरे ब्लौग शुरू करने के पीछे मेरा प्रेरणा श्रोत वही मित्र है. पूरी जानकारी के लिए आप उनके ब्लौग पर जाएं. मेरे मित्र का नाम रूपेश मंडल है और उनके ब्लौग पर जाने के लिए आप यहाँ चटखा दबाएँ.

मगर अभी भी एक परेशानी है, अगर आप कोई अपने नाम के जगह पर ASCII Character या कुछ और इस्तेमाल में ला रहें हैं तो आपको कोई सर्च नहीं कर पाएगा. अब ये आपके ऊपर है की आप क्या चाहते हैं? गूगल पर दिखना या नहीं दिखना.

Friday, December 21, 2007

ब्लौगवाणी हैक हो सकता है

मेरे इस पोस्ट का ये अर्थ कदापि नहीं है कि मैं ब्लौगवाणी को हैक करना चाहता हूं, मैं तो बस इतना चाहता हूं की ब्लौगवाणी अपनी तकनीकी खामियों को सुधारे वरना वो दिन दूर नहीं है जब आपको सुनने को मिलेगा कि प्रसिद्ध एग्रीगेटर साइट ब्लौगवाणी हैक हो गया है।

आप इस चित्र पर ध्यान दें जो मुझे तब मिला जब मैंने ये देखना चाहा कि पिछले 30 दिनों में सबसे ज्यादा पढे जाने वाला पोस्ट कौन-कौन सा है। (अब भाई लोग, उसमें मेरे जैसा छोटा-मोटा चिट्ठाकार का भी 2-3 पोस्ट शुरू के 30-40 में आज-कल दिख रहा है तो देख-देख कर खुश हो लेता हूं :D ।)





इस तरह का ERROR साधारणतया ASP.NET से कि गई प्रोग्रामिंग पर ही आता है। इस चित्र में web.config फ़ाइल के अन्दर का कुछ हिस्सा दिख रहा है, जिसमें साइट से संबंधित बहुत सी गुप्त जानकारियां होती है। इस ERROR PAGE में जो महत्वपूर्ण गुप्त जानकारी है मैंने उसे लाल रंग से घेर रखा है। मुझे पहले भी ब्लौगवाणी में इस तरह का ERROR मिल चुका है जिसमें web.config फ़ाइल का हिस्सा दिखता रहता है।

इसका उपाय कोई नवसिखुआ प्रोग्रामर भी बता सकता है और वो ये की वहां पर Exception Handle करके अपना मनचाहा संदेश प्रेषित कर दिया जाये।


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मैं जब ये पोस्ट लिखने के बाद पोस्ट करने जा रहा था तो मैंने एक बार कंफर्म करने के लिये फिर से ब्लौगवाणी को खोला जिसमें मुझे फिर से एक नया ERROR MESSAGE मिला। शायद उसमें कुछ और ही समस्या है या फिर उसमें कुछ बदलाव के लिये काम चल रहा है। खैर जो भी हो, मैं यही उम्मीद करता हूं कि ये जल्दी से जल्दी ठीक हो जाये।

इंटरनेट और बढती दूरियां

मुझे आज भी वो दिन याद है जब मेरे पापाजी की घड़ी का समय कुछ आगे-पीछे हो जाता था तो वो बीबीसी के समाचार सेवा का लाभ उठा कर अपनी घड़ी का समय मिलाते थे। फिर वो दिन भी आया जब घर में बुद्धु बक्से का आगमन हो गया और दूरदर्शन के समाचार सेवा का लाभ उठाया जाने लगा।

पर अब तो जमाना है गूगल देव का। मैं हर दिन सुबह-सुबह नेट पर बैठते ही सबसे पहले गूगल महाराज का आशीर्वाद लेता हूं और उस पर सर्च करता हूं "Indian Time" और मुझे बिलकुल सही समय मिल जाता है। और ऐसा बस मैं ही नहीं करता हूं, मेरे साथ बैठ कर काम करने वाले मेरे कई मित्र भी यही करते हैं।

फिर दूसरा कदम होता है Sametime और Lotus Notes पर Login करके अपने ठीक बगल में बैठने वाले अपने मित्र को गुड मार्निंग बोलने का। जबकि वो मेरे इतना पास बैठता है कि मैं बस अपनी कुर्सी को घुमा कर फ़ुसफ़ुसा कर भी उसे कुछ कहूं तो वो उसे सुन सकता है। अगर मैं उससे पहले पहूंच गया हूं तो ये काम उसका होता है। अब जैसे आज जो हमारे बीच कुछ बाते हुई हैं उसका ब्योरा मैं यहां दे रहा हूं।

Sherin Iranimosh : hi, gm..
Prashant Priyadarshi : gm.. hru? wats up there?
Sherin Iranimosh : f9 buddy.. nothin much more.. wat bout u?
Prashant Priyadarshi : same here.. :) wat we have to do today?
Sherin Iranimosh : i don't know, lets check it with our PL.. ping him and let me know..
Prashant Priyadarshi : sure yar.. ok then bfn..


ठीक इसी तरह दोपहर के भोजन के समय हम फिर से बाते करते हैं, और उस समय हमारी बातें कुछ ऐसे होती है।

Prashant Priyadarshi : lunchhh???????
Sherin Iranimosh : after 10 minutes..
Prashant Priyadarshi : ok.. i'll wait..


अब आपके क्या विचार हैं इस नेट सभ्यता पर? आप लोग भी अपनी कुछ यादों को जीवंत करते हुये बतायें कि आप अपने नौकरी के शुरुवाती दिनों में अपने साथी का कैसे अभिवादन करते थे।

Wednesday, December 19, 2007

मैं, मौसी, बसंती और चंदन

मौसी : अरे बेटा बस इतना समझ लो कि घर में जवान बेटी सिने पर पत्थर कि शील की तरह होती है, बसंती का ब्याह हो जाये तो चैन कि सांस लूं।

मैं : हां, सच कहा मौसी आपने, बड़ा बोझ है आप पर।

मौसी : लेकिन बेटा इस बोझ को कोई कुंवे में तो फेंक नहीं देता। बुरा नहीं मानना, इतना तो पूछना ही पड़ता है कि लड़के का खानदान क्या है? उसके लक्षण कैसे हैं? कमाता कितना है?

मैं : कमाने का तो ये है मौसी कि एक बार बीबी-बच्चो की जिम्मेवारी सर पे आ गई तो विद्यार्थी का काम छोड़ कर नौकरी पेशा भी हो ही जायेगा और कमाने भी लगेगा।

मौसी : हें! तो क्या अभी कुछ भी नहीं कमाता?

मैं : नहीं-नहीं ये मैने कब कहा मौसी। कमाता है लेकिन, अब रोज-रोज तो छात्रवृति का इनाम नहीं जीत सकता है ना? साल में एक ही बार तो मिलता है।

मौसी : हें !! एक ही बार मिलता है?

मैं : हां, मौसी, ये कम्बख्त कंप्यूटर चीज ही ऐसी है, अब मैं VIT में टाप करने के बारे में क्या कहूं।

मौसी : हें, राम-राम !!! तो क्या वो VIT में पढता है?

मैं : छी! छी! छी! मौसी, वो और पढता है?? ना ना, वो तो बहुत अच्छा और नेक लड़का है। लेकिन मौसी, एक बार कोई सुंदर क्लासमेट मिल जाये ना फिर अच्छे-बुरे का कहां होश रहता है। हाथ पकड़कर बैठा लिया किसी कन्या ने पढने के लिये। अब इसमें बेचारे चंदन का क्या दोष।

मौसी : ठीक कहते हो बेटा, VITian वो, क्लास टापर वो, लेकिन उसका कोई दोष नहीं है।

मैं : मौसी आप तो मेरे दोस्त को गलत समझ रही हैं, वो तो इतना सीधा और भोला है, अरे बसंती से उसकी शादी करके तो देखिये। ये स्टुडेंट गिरी और क्लास में टाप करने कि आदत, सब खत्म हो जायेगा।

मौसी : अरे बेटा, मुझ बुढिया को समझा रहे हो?? ये पढने कि और क्लास में टाप करने की आदत किसी की छुटी है आज तक?

मैं : मौसी, आप चंदन को नहीं जानती। विश्वास कीजिये वो इस तरह का लड़का नहीं है। एक बार शादी हो गयी तो उस बैंगलोर वाली से चैट करना भी बंद कर देगा, बस चैटिंग की आदत अपने आप छूट जायेगी।

मौसी : हाये हाये !!! बस यही एक कमी रह गयी ती? वो क्या किसी बैंगलोर वाली से चैट भी करता है?

मैं : तो इस में कौन सी बुरी बात है मौसी? अरे, चैटिंग-सैटिंग तो राजा-महाराजा, उंचे-उंचे खानदान के लोग करते हैं।

मौसी : अच्छा!! तो बेटा ये भी बताते जाओ की तुम्हारा ये गुणवान दोस्त किस शहर में पढता है?

मैं : बस मौसी, VIT Vellore का पता मिलते ही हम आपको खबर कर देंगे।

मौसी : एक बात की दाद दूंगी बेटा, भले सौ बुराइयाँ हैं तुम्हारे दोस्त में, फिर भी तुम्हारे मूंह से उसके लिये तारीफ ही निकलती है।

मैं : हा हा (हल्का मुस्कुराते हुये), क्या करूं मौसी, मेरा तो दिल ही कुछ ऐसा है।



ये सारी चीजें मैंने चंदन के लिये तब लिखी थी जब मैं कालेज में था और इसे लिखने का प्रेरणा श्रोत और्कुट था। आज चंदन छात्रवृति नहीं पा रहा है, बल्कि नौकरी कर रहा है और वो भी एक अच्छे कंपनी में। पैसा भी अच्छा कमा रहा है, मगर बेचारे को बसंती अभी तक नहीं मिली है। इसके पास काम से इतना समय भी नहीं रहता है कि ये किसी से भी चैट कर सके, मगर फिर भी मौसी का दिल नहीं पसीजता। अब आप लोग् ही मौसी से आग्रह करें, शायद आपकी दुआ ही रंग ला दे। :)


esnips से करें mp3/wma फाइल डाउनलोड

ज्ञानजी की टिप्पणी पढकर मैंने सोचा कि क्यों ना पहले यही पोस्ट पोस्ट किया जाये। तो चलिये मैं आपको बताता हूं कि esnips से MP3/WMA फ़ाइल कैसे डाउनलोड करते हैं।

सबसे पहले मैं आपको बताना चाहूंगा कि ये विधि IE(Internet Explorer) वालों के लिये नहीं है, ये FIREEFOX वालों के लिये है। मगर ये बहुत बड़ी परेशानी कि बात नहीं है, FIREFOX को आप यहां से डाउनलोड कर सकते हैं :

http://www.mozilla.com/en-US/firefox/

सबसे पहले तो आप www.esnips.com पर अपना रजिस्ट्रेसन करा लें ये फ्री में उपलब्ध है, अगर नहीं करेंगे तो कुछ परेशानी आ सकती है, और LOGIN कर लें। अब मान लें कि आप www.esnips.com पर मरहूम नुसरत फ़तेह अली खान का अंखियां नु चैन ना आवे सुन रहें है तो उसका URL कुछ ऐसा होगा :

http://www.esnips.com/doc/c550cf4e-16c4-4c4a-b1a9-b89d1452f61b/NFAK---Akhian-Nu-Chain-Na-Aave

अब एक काम करें इस पते में से हरे रंग वाले भाग को मिटा दें फिर आपके पास बचेगा :

http://www.esnips.com/doc/c550cf4e-16c4-4c4a-b1a9-b89d1452f61b/

अब लाल रंग वाले हिस्सा जो doc है उसे बदल कर nsdoc कर दें। और फिर आपको ये URL पता मिलेगा :

http://www.esnips.com/nsdoc/c550cf4e-16c4-4c4a-b1a9-b89d1452f61b/

अब बस इंटर मारने भर की देरी है और आपका मनपसंद गाना डाउनलोड के लिये तैयार मिलेगा। आप बस इसे SAVE ON DISK पर सेलेक्ट कर लें।

अगली कड़ी में गूगल विडियो से डाउनलोड। धन्यवाद..

Tuesday, December 18, 2007

YOUTUBE से विडियो डाउनलोड हुआ आसान

आप अकसर youtube पर विडियो देखते होंगे और आप हमेशा ये सोचते होंगे कि काश इन्हें हम डाउनलोड कर पाते। मगर ये समझ में नहीं आता होगा कि इसे डाउनलोड करें तो कैसे करें क्योंकि वहां तो कोई लिंक रहता ही नहीं है डोउनलोड करने के लिये।

आपकी समस्या का समाधान लेकर मैं आ गया हूं।

आप जब भी www.youtube.com पर कोई विडियो देखते होंगे तो उस समय जो भी पता आपको अड्रेस बार में दिखे बस उसके आगे आपको kiss जोड़ देना है और फिर आपको उसे डाउनलोड करने का लिंक दिख जायेगा।

उदाहरण के तौर पर मान लिजीये कि आप मेरे द्वारा किया हुआ ट्रेकिंग वाल विडियो देख रहें हैं जिसका लिंक नीचे है :

www.youtube.com/watch?v=mkcCn8G5BPU

आप इसके आगे बस kiss जोड़ दें। जैसे :

www.kissyoutube.com/watch?v=mkcCn8G5BPU

बस आपको एक डाउनलोड करने का लिंक दिख जायेगा और आप उसे वहां से डाउनलोड कर लें।

मगर अभी भी एक समस्या का सामना आपको करना परेगा। वो ये कि इस विडियो फ़ाइल का EXTENSION कुछ भी नहीं होगा, जिसे आपको बदल कर .FLV करना होगा।

जैसे, मान लिजीये आपने abc नाम से डाउनलोड किये हुये फ़ाइल को सेव किया है, तो आपको इसे बदल कर abc.flv करना होगा।

"FLV का पूरा नाम फ़्लैश विडियो होता है।"

इस फ़ाइल को चलाने के लिये या तो आपको कोडेक्स इंस्टाल करना होगा या फिर कोई साफ़्टवेयर डाउनलोड करना होगा। आप इस फ़ाइल को चलाने के लिये यहां से साफ़्टवेयर डाउन्लोड कर सकते हैं।

http://www.download.com/3000-2139_4-10769546.html

मैं कल फिर आउंगा ये लेकर कि गूगल विडियो कैसे डाउनलोड करते हैं। अगर आप कोई और साइट से विडियो देखते हैं और यही समस्या आपके साथ है तो कृपया उस साइट का नाम बतायें, मैं यथासंभव आपकी मदद करने की प्रयत्न करूंगा। धन्यवाद..

Monday, December 17, 2007

दैनिक मजदूर और कम्प्यूटर इंजिनियर

जमाने पहले की बात है...बगल के घर कि सिढी ढलने वाली थी..Uncle ने कहा की उनके बेटे के साथ जा कर Station के पास से कुछ मजदूर ले आऊँ...

मैनें पुछा "किसी को भी कैसे रख सकते हैं? किसी को भी कैसे ले आऊँ? कितने मजदूर ले आऊँ?"

Uncle ने समझाते हुए कहा.. "1 राजमिस्त्री ले लेना..2-3 कारीगर और 4-5 मजदूर ले लेना.."

मैने पुछा "ऐसा क्यों?"



ये लेख मेरे एक मित्र ने लिखा है अपने ब्लौग पर और वो भी बहुत ही आकर्षक ढंग से। अब चूंकि वो अभी चिट्ठाकारों कि दुनिया में नये हैं और किसी अग्रीगेटर से भी नहीं जुड़े हैं सो उनके चिट्ठे तक पहूंच बहुत कम लोगों की है। पूरा लेख पढने के लिये इनके चिट्ठे पर जायें, इनके चिट्ठे पर जाने के लिये यहां खटका दबायें और इस नवोदित चिट्ठाकार को बधाईयां भी देते जायें।

Thursday, December 13, 2007

अविनाश जी और उनका सामंती भोजन

आज हिंदी ब्लौगिये संसार में अविनाश जी को लगभग सभी जानते हैं, सो मैं उनका परिचय दिये बगैर सीधे अपनी बातों पर आता हूं।

अभी का तो मुझे पता नहीं है कि कितने लोग उन्हें 'लौटकर अविनाश' के नाम से जानते हैं पर बात उन दिनों की है जब अविनाश जी कि पहचान 'लौटकर अविनाश' के नाम से होती थी। और हम बच्चे उन्हें प्यार से मुन्ना भैया कह कर बुलाते थे और आज भी बुलाते हैं।

एक परंपरागत पत्रकार कि तरह खादी का झोला कंधे पर लटकाये, खादी का कुर्ता जिंस पर चढाये हुये, पैरों में कोई सा भी एक सादा सा चप्पल डाले हुये, दुबला-पतला छड़हरा सा बदन, चेहरे पर हमेशा बढी हुई दाढियां मानों अभी-अभी किसी के कैद से छूटकर भागे हुये हों। वे जब भी हमारे घर आते थे तो उनका हुलिया ऐसा ही होता था।

उन दिनों घर में जब कभी भी पर्व-त्योहार या कोई उत्सव होता था और मुन्ना भैया पटना में होते थे तो उनका आना अनिवार्य होता था। पर भैया के आने का कोई समय नहीं होता था। साधारनतया वो रात के 10 बजे के बाद ही आते थे, और मैं उन्हें कभी-कभी निशाचर कह कर चिढाया भी करता था।

अब घर में कोई उत्सव हो या किसी का जन्मदिन हो तो कई बार खाने में "पलाव" भी बनता था, जो मुन्ना भैया को पसंद नहीं था। जब भी ऐसी स्तिथि का सामना उन्हें करना परता था तो वो सीधे-सीधे कभी नहीं कहते थे कि उन्हें पलाव पसंद नहीं है, वो बोलते करते थे की "ये सामंती भोजन है, मैं सामंती भोजन नहीं खाता हूं"। और जब बात जन्मदिन का केक खाने कि होती थी तो मुन्ना भैया केक को बड़े चाव से खाते थे। हमलोग जब उनको चिढाते हुये पूछते थे कि क्या केक सामंती भोजन ना होकर जन-साधारण का भोजन है? तो उनका उत्तर होता था कि नही केक सामंती भोजन नहीं है। इसका कारण पूछने पर वो अपना तर्क(तर्क या कुतर्क जो भी कह लें :)) देते थे कि, "पलाव इसलिये सामंती भोजन है क्योंकि जब पलाव भारत में प्रचलन में मुगलों के साथ आया था तब भारत में सामंती व्यवस्था का बोल-बाला था, पर जब केक भारत में प्रचलन में आया तब तक भारत आजाद हो चुका था और सामंती व्यवस्था खत्म हो चुकी थी।"

अब आप ही कहिये आपके क्या विचार हैं इस तर्क(कुतर्क) पर? :D



मुन्ना भैया अपनी बिटिया के साथ

Monday, December 10, 2007

मानवाधिकार दिवस और मेरी दीदी

आज 10 दिसम्बर है, आज मानवाधिकार दिवस है, आज मेरी दीदी का जन्मदिन है। अब चूंकि आज मानवाधिकार दिवस के दिन मेरी दीदी का जन्म हुआ है तो ये स्वभाविक है की जब भी अपने अधिकारों को लेकर दीदी कुछ कहती तो बस हम दोनों छोटे भाई चिढाना चालू कर देते कि मानवाधिकार दिवस के दिन पैदा हुई है सो हर समय उसी की बातें करती रहती है।

बात उन दिनों कि है जब भैया अपनी पढाई के लिये घर से बाहर निकल गये थे, पापाजी भी पटना से बाहर पदस्थापित थे और घर में बस मम्मी, दीदी और मैं था। दीदी को हर दिन मैं मैनेजमेंट क्लास के लिये छोड़ने जाता था और घर लौटने पर एक दूसरे को घंटो बैठ कर अपने-अपने कालेज के किस्से सुनाते थे। दीदी को कालेज छोड़ने का मेरा यह क्रम लगातार दो सालों तक चलता रहा, चाहे कितनी भी ठंड हो या वर्षा हो रही हो, या फिर हम दोनों के बीच झगड़ा ही हुआ हो। मगर मेरा यह क्रम कभी भी नहीं टूटा।

किसी भी समझदार परिवार की तरह मेरे घर में भी दीदी की इच्छाओं का सबसे ज्यादा ख्याल रखा जाता था और जब तक हम दोनों भाई छोटे थे तब तक हम दोनो ही इससे बहुत ज्यादा चिढते थे। और उस पर भी कभी-कभी जब दीदी महिला अधिकारों की बाते करती थी तो लगता था की पुरूष अधिकार की रक्षा संबंधी कोई संघटन क्यों नहीं बनाया जाता है। :)

दीदी के भीतर बौद्धिक क्षमता कूट-कूट कर भरी हुई है। उनमें तार्किक शक्ति और बौद्धिक क्षमता का सामंजस्य अद्भुत है।

मैं कभी भी पाप-पून्य और भूत-भगवान को नहीं माना हूं, पर मुझे लगता है कि मैं सच में बहुत नसीब वाला हूं जो मुझे ऐसी दीदी मिली। दीदी मुझसे 3 साल बड़ी है और जब मैं छोटा था तब हमारे बीच जब कभी भी झगड़ा होता था तो मैं दीदी को बहुत मारता भी था। पर दीदी उस समय भी, जब उनमें शारीरिक शक्ति मुझसे बहुत ज्यादा थी, कभी मुझपर हाथ तक नहीं उठाया। उल्टा जब दीदी को रोता देख कर पापाजी मुझे मारने आते थे तब मुझे उनसे मुझे बचाती ही थी।

आज दीदी जयपूर में मेरे जीजाजी और मेरी दो भांजीयों के सथ रह रही है। और उनका गृहस्थ जीवन बहुत सुखी है। और मैं इतनी दूर हूं उनसे की वहां जाने का सोचने के लिये भी दो महिने पहले से ही योजना बनानी पड़ती है।

मैं इस चिट्ठे से अपनी दीदी को बस इतना ही कहना चाहूंगा कि, "दीदी, आप मेरा मार्गदर्शन हमेशा करते रहना। जब भी मैं कहीं भटकने लगूं तो मुझे सही राह दिखाना। और अगर अगले जन्म जैसी कोई चीज भी होती है तो हर जन्म में मेरी दीदी बन कर मुझपर अपनी ममता बिखेरते रहना।"



सन् 2002 का पटना संजय गांधी जैविक उद्यान में लिया गया चित्र.. जिसमें पापा, मम्मी, दीदी और मैं हूं..

Sunday, December 09, 2007

जिंदगी किसी के बिना रूकती नहीं

अक्सर यादें आया करती थी,
यादों में एक चेहरा था..
चेहरे पे एक मासूमियत,
और उस मासूमियत में थी मेरी जिंदगी..
आज ना वो यदें हैं,
ना ही वो चेहरा,
और ना ही वो मासूमियत..
ऐसा लगता है जैसे वो मासूमियत,
कहीं गुम हो गई हो,
जीवन के इस वस्तविकता में..

उस मासूमियत को,
तलाशता फिर रहा हूं हर जगह..
पर वि इन प्लस्टिक के चेहरों में,
कहीं गुम सी नजर आती है..
पर जिंदगी किसी के बिना रूकती नहीं,
वो तो निर्बाध गति से चलती जाती है..

Wednesday, December 05, 2007

आज भी फिरंगियों की गुलामी में इंडिया

कल मैं अपने एक मित्र को छोड़ने चेन्नई हवाई अड्डे गया था। मैं अपने मित्रों से थोड़ा पहले ही पहूंच गया था सो मुझे थोड़ा समय मिल गया और मैं उस समय को वहां के लोगों के हाव-भाव को पढने में खर्च करने लग गया। थोड़ी देर इधर-उधर देखने पर मैंने पाया की एक विदेशी महिला और एक विदेशी पुरूष हवाई अड्डे के प्रांगण में सुट्टे पर सुट्टा उड़ाये जा रहें हैं और बगल में ही स्पष्ट रूप से एक चेतावनी लिखी हुई थी, "NO SMOKING ZONE." लेकिन वे दोनों ही इस चेतावनी से बेमतलब-बेपरवाह अपना काम किये जा रहे थे। सुरक्षाकर्मी भी वहां से गुजरते हुये उन्हें नजर-अंदाज किये जा रहे थे। और उस समय मैं सोच रहा था कि इनके जगह पर मैं या कोई अन्य भारतीय नागरीक यहां धूम्रपान करता होता तो अभी तक यहां बवाल मच चुका होता।

वहीं पर मैंने एक और बात देखी। मैं वहां अपने जिस मित्र को छोड़ने के लिये गया हुआ था वो इधर कुछ दिनों से बीमार चल रही थी और इसी वजह से उसका चेहरा बुझा हुआ था और उसने लगभग मुड़े-सुड़े वस्त्र पहन रखे थे। जब वो सुरक्षा जांच से गुजर रही थी तब सुरक्षा कर्मी उसे ऐसे देख रहे थे मानो उसके लिये वहां कोई जगह ही ना हो क्योंकि उसे उस समय देखकर ऐसा नहीं लग रहा था की उसकी माली हालत हवाई यात्रा करने के लायक है। ये देखकर तो यही महसूस हुआ कि आदमी की पहचान बस उसके कपड़ों से ही होती है।



चेन्नई हवाई अड्डा गूगल से

इन सब चीजों को देखकर मैंने यही सोचा कि भारत का तो पता नहीं पर इंडिया अभी भी फिरंगियों के हाथों गुलाम है।

Sunday, December 02, 2007

चेन्नई के हिंदी ब्लौगरों सावधान


मैं पिछले 2-3 दिनों से अनीता जी के ब्लौग में ब्लौगर मीट के बारे में पढ रहा था तो बरबस ही ये विचार आया की चेन्नई से कितने लोग हैं जो हिंदी में ब्लौग लिखते-पढते हैं। और अगर कोई है तो क्यों ना हम भी एक चेन्नई ब्लौगर मीट करें? बस उसी सोच ने मुझे ये पोस्ट लिखने को प्रेरित किया।
तो कृपया जो भी हिंदी चिट्ठा जगत के ब्लौगर चेन्नई से हैं वो मुझे इस पोस्ट में टिपियाये या फिर मुझसे इस पते पर संपर्क करें।

prashant7aug@gmail.com

और जो चेन्नई से बाहर के ब्लौगर हैं वो मुझे मेरे विचारों को नये आयम देने के लिये अपनी सलाह दें।

धन्यवाद।