Wednesday, September 28, 2011

हार-जीत : निज़ार कब्बानी

आजकल निज़ार कब्बानी जी की कविताओं में डूबा हुआ हूँ. अब उर्दू-अरबी तो आती नहीं है, सो उनकी अनुवादित कविताओं का ही लुत्फ़ उठा रहा हूँ जो यहाँ-वहाँ अंतरजाल पर बिखरी हुई है. उनकी अधिकांश कवितायें अंग्रेजी में अंतरजाल पर ढूंढ कर पढ़ी और कुछ कविताओं का हिंदी अनुवादित संस्करण सिद्धेश्वर जी के कर्मनाशा एवं कबाड़खाना पर पढ़ने को मिली. एक प्रयास मैंने भी किया अनुवाद करने का, यह संभव है की यह पहले से ही अनुवादित हो हिंदी में, मगर ढूँढने पर भी मेरी नजर में नहीं आया. फिलहाल आप सब से इसे साझा कर रहा हूँ. यहाँ शीर्षक भी मेरा ही दिया हुआ है. मूल कविता का शीर्षक I conquer the world था. अगर कहीं कुछ खोट हो तो आप विद्वजनों से सुधार की उम्मीद भी करता हूँ.

हार-जीत

मैंने जीता है दुनिया को
अपने शब्दों से
जीता है अपनी मातृभाषा को
संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण एवं वाक्यविन्यासो से.
मैंने मिटा दिया अस्तित्व
उन शुरुवाती क्षणों का
और धारण किया शरीर, एक नई भाषा का
जिसमें सम्मिलित हैं -
जल-संगीत एवं अग्नि का दस्तावेज
मैंने प्रकाशित किया है, अगली पीढ़ी को
और रोक दिया है समय को उन आँखों में
और मिटा दिए हैं उन सब लकीरों को,
जो हमें जुदा ना कर सकें
आज, इसी क्षण से...

Tuesday, September 06, 2011

दादू बन्तल, दादू बन्तल, छू

पापा ने करीब ३ महीने पहले केशू को एक खेल सिखाया बच्चों वाला जिससे वो किसी भी चीज़ को गायब कर सकता था और उसे फिर वापिस भी ला सकता था, बस उसके लिए उसे आँख बंद करके और हाथों की अँगुलियो को शक्तिमान के स्टाईल में घुमाते हुए ये बोलना था..."गायब करने के लिए 'जादू मंतर जादू मंतर blah blah गायब', और फिर उसे वापिस लाने के लिए 'जादू मंतर जादू मंतर blah blah आ जाओ'"|

उसके भोले मन और विश्वास का एक और उदाहरण कल देखने को मिला, जब वो shoe rack पर अपने जूते ढूँढ रहा था तो उसके एक पैर का जूता उसे मिल गया और दूसरे का नहीं मिला तो उसने कहा

"दादू बन्तल दादू बन्तल केतू का दूता आ दा"

मगर जूता वहाँ होता तब तो आता तो उसने कहा

"अले नहीं आया",

फिर उसने वही दोहराया

"दादू बन्तल दादू बन्तल केतू का दूता आ दा",

फिर जब नहीं आया तो उसने फिर से कहा

"अले नहीं आया"

३ बार बोलने के बाद भी जब जूता उसका नहीं आया तो वो मेरे पास आकर बोला,

"डाईडी केतू का दादू नहीं हो लहा है"

मुझे उसकी मासूमियत पर बहुत प्यार आया और मैंने कहा,

"केशू ने जरूर आँख बंद नहीं किया होगा"

अबकी बार केशू ने पूरे विश्वास से आँख बंद करके कहा

"दादू बन्तल दादू बन्तल केतू का दूता आ दा"

और आँख खुलते ही सामने जूता दिखा, तो वो बहुत खुश हुआ और बोला

"डाईडी केतू का दूता आ गया"

(मैंने चुपके से उसका जूता वहाँ ला कर रख दिया था, आखिर उसके मासूमियत से भरे भरोसे को कैसे टूटने देता).................................


भैया की कलम से