Wednesday, May 27, 2009

बाऊ भैया अंततः बाऊ पप्पा बन ही गये

हमारे एक भैया हैं(बड़े चाचा के लड़के).. यूं तो उनका पूरा नाम प्रभाष रंजन है मगर हम उन्हें बाऊ भैया के नाम से ही जानते हैं.. हम सभी भाई-बहनों में सबसे बड़े, और मुझसे छः साल बड़े हैं.. अभी भारतीय जल सेना, मुंबई में कर्यरत हैं..

मैंने जब से होश संभाला है तब से उन्हें घर में देखा था, वो हमलोगों के साथ ही रहते थे.. फिर एक दिन अचानक से दरभंगा(जहां मेरा गांव है) के लिये निकल गये.. स्वभाव के सीधे-साधे, महाआलसी(इतना कि अगर एक जगह पसर जायें तो बस! उन्हें उठाना असंभव).. आम तौर पर गुस्साते नहीं हैं मगर जब गुस्सा आया तो आगे-पीछे कुछ भी नहीं समझते हैं.. फौजी होते हुये भी स्वभाव में बहुत कोमलता है इनके..

अक्सर जब कभी भी हम गांव में होते थे तो इन्हें मैं अक्सर देखता था कि अपने भतिजों(गांव वाले रिश्तों से) को अक्सर धमकाते रहते थे कि मुझे बाऊ चच्चा नहीं, बाऊ पप्पा बोलो.. और जब वे बाऊ पप्पा बोलते तो बस भाभी को चिढ़ाना शुरू..

कल रात मुझे भैया फोन किये और बोले, "एक खुशखबरी है, बाऊ भैया की तरफ से.."
मेरे मुंह से सीधा निकला, "बेटा या बेटी?"
भैया बोले, "बेटी.." और आगे बोले "बेटा तो है ही, बेटी कि चाहत भी पूरी हो गयी.."
मैंने कहा, "आपसे बाद में बात करता हूं, पहले बाऊ भैया को फोन कर लूं.."

फिर बाऊ भैया को फोन लगाकर उनसे कहा, "तो फाईनली आप बाऊ पप्पा बन ही गये ना?" उनके मुंह से खुशी से कुछ निकल नहीं रहा था.. वह लगभग आह्लादित सी मुद्रा में थे..

मेरे घर में मेरी पीढ़ी के अगर सिर्फ भाईयों कि बात की जाये तो बाऊ भैया सबसे बड़े हैं, उसके बाद मुन्ना भैया आते हैं, उसके बाद मेरे भैया और फिर मेरा नंबर है..

Friday, May 22, 2009

अथ श्री रजिस्टर कथा

सुबह-सुबह पूजा कि बक-बक में आप सभी ने पढ़ा होगा "दास्ताने लेट रजिस्टर(पढ़ना ना भूलें, नहीं तो इस कथा का पुण्य पुरा नहीं मिलेगा)".. तो एक रजिस्टर कथा मेरी तरफ से भी सुन ही लें.. इसे सुनने वाले को 10 दिनों तक किसी भी प्रकार के रजिस्टर से छुटकारा मिल जाता है.. ना तो उसे किसी रजिस्टर पर हस्ताक्षर करने पड़ते हैं और ना ही किसी अन्य प्रकार के रजिस्टर को लेकर इधर-उधर भटकना पड़ता है.. इसे जोर-जोर से उच्चारण समेत पढ़कर दूसरों को सुनाने पर 100 दिनों तक रजिस्टर नामक कष्ट से मुक्ति मिल जाती है..

बहुत समय पहले कि बात है.. चेन्नई नामक शहर में प्रशान्त नाम का एक मनुष्य निवाश करता था.. उसे रजिस्टर देव पर कोई आस्था नहीं थी.. वह अपना हर कार्य कंप्यूटर नामक दानव कि सहायता से करता था.. वह हर दिन घर से ऑफिस के लिये निकलने से पहले ध्यानपूर्वक अपने ऑफिस जाने वाले फौर्मल कपड़े पहनता था और ध्यान से अपना आई.डी.कार्ड साथ में रखता था.. जिससे कि उसे रजिस्टर पर सही ड्रेस कोड में ना आने का कारण या फिर अल्पकालिक आई.डी.कार्ड जारी करवाने के लिये रजिस्टर में कुछ ना लिखना पड़े..

इसी तरह दो साल गुजर गये और उसे कभी भी रजिस्टर पर कुछ भी नहीं लिखना पड़ा.. इससे उसमें अहं कि भावना जागने लगी.. धीरे-धीरे वह समझने लगा कि वह रजिस्टर डेवता से भी ऊपर उठ गया है.. वो जिस किसी के गले में अल्पकालिक आई.डी.कार्ड देखता उसका मन ही मन मजाक उड़ाता.. किसी को जूते में नहीं देखता तब भी उसकी वही मनोदशा होती..

उसके इस व्यवहार से एक दिन रजिस्टर देवता रूष्ट हो उठे और उन्होंने श्राप दे डाला.. उनके श्राप के कारण एक रात दुर्घटना में उसके पैर टूट गया और अगले दिन से वो भी बिना जूते के चप्पल में जाने लगा.. 10-15 दिन तो यूं ही गुजर गये, उससे किसी गार्ड ने चप्पल में आने का कारण रजिस्टर में लिखने को नहीं कहा और इससे उसे लगने लगा कि ड्रेस कोड वाला रजिस्टर यूं ही फालतू का रखा हुआ है..

रजिस्टर देव फिर कुपित हो उठे.. और अगले ही दिन एक गार्ड ने उसे रोक कर बोला कि "चप्पल में आये हैं आप, रजिस्टर पर इसका कारण लिखो".. प्रशान्त ने कहा,"मैं अगले 2 महिनों तक ऐसे ही आने वाला हूं, क्या हर दिन कारण लिखूंगा?" गार्ड ने बोला, "हां, लिखना होगा.." प्रशान्त ने उत्तर दिया, "हर दिन एक ही चीज लिखना ठीक नहीं है, मैं तुम्हारे हेड से बात करना चाहता हूं.." गार्ड ने बहाना बनाया और बोला, "मेरे बॉस अभी यहां नहीं हैं.. सो आपको तो लिखना ही होगा.. यही तो हमारी ड्यूटी है.." प्रशान्त ने कहा, "जब यही तुम्हारी ड्यूटी है तो यह ड्यूटी आज 20 दिनों के बाद याद आ रहा है?" बेचारे प्रशान्त को पता नहीं था कि यहां गार्ड कि कोई गलती नहीं थी.. यह सब तो रजिस्टर देवता का कोप था जो उसे भुगतना पर रहा था.. आगे प्रशान्त ने अपने बैठने कि जगह का पता और फोन नंबर देते हुये कहा, "मैं अभी नहीं लिख रहा हूं, जब तुम्हारे बॉस आ जायें तब मुझे फोन कर लेना.."

5 मिनट के बाद ही फोन आया, उसके बॉस ने कहा कि गार्ड कि गलती थी कि उसने पिछले 20 दिनों में एक बार भी नहीं रजिस्टर में लिखने को नहीं पूछा.. मगर आपको उसमें तो लिखना ही होगा..

अब तक वत्स प्रशान्त को रजिस्टर देवता कि महिमा का ज्ञान हो चुका था.. उस दिन से लगातार वह 5 दिनों तक रजिस्टर देवता का गुण गाया और हर दिन गार्ड के बिना पूछे ही खुद से मांग कर रजिस्टर में अपने चप्पल और कारण वाले भाग में "लेग फ्रैक्चर" के बारे में लिखता रहा..

अंततः एक दिन रजिस्टर देव खुश हुये और उन्होंने एडमिन वालों कि आंखें खोल दी.. उस दिन से एक नया नियम बन गया कि अगर किसी के साथ ऐसी दिक्कत हो तो वह एक ही बार में अपनी दिक्कत के बारे में ऑनलाईन इंट्रानेट वाले साईट पर इंटर कर दे..

इसी के साथ कथा समाप्त होती है.. तो सभी लोग एक साथ बोलें.. "रजिस्टर देवता कि?.......जय!!!!!"

Thursday, May 21, 2009

वोट कटुवा के रोल में Knight Riders

यूं तो राजनीति तो हर जगह होती है, चाहे वो कोई खेल हो या नौकरी करने वाली जगह हो या फिर आम जिंदगी में आस-पड़ोस के लोगों के साथ मिलकर रहना हो या फिर रिश्तों को निभाना हो.. मगर यहां आई.पी.एल. में तो वोट कटुवा वाली स्थिती भी पैदा हो गई है..

अपने शुरूवाती सभी मैच(एक को छोड़कर, वह जीत तो ऊपर वाले कि दया थी जो पानी बरसा दिया था) हारकर शाहरूक(फेक आईपीएल प्लेयर के शब्दों में डिल्डो) कि टीम कोलकाता नाईट राईडर इस टूर्नामेंट से बाहर हो चुकी है.. मगर अंत में लगातार दो मैच जीतकर वह अन्य टिमों में हड़कंप भी मचा चुकी है..

एक के बाद एक मैच हारने के बाद सबसे पहले उसने चेन्नई को धोया और बाद में राजस्थान को.. चेन्नई वह मैच हारने के बाद भी टूर्नामेंट में तो बना रहा, मगर राजस्थान को कल कि हार बहुत महंगी पड़ी और वह टूर्नामेंट से ही बाहर हो गया..

"पिछले आई.पी.एल. का विजेता इस बार सेमीफाईनल में भी जगह नहीं बना सका, शायद यही क्रिकेट कि अनिश्चितता है.."

आई.पी.एल. कि शुरूवाती दिनों से लेकर अभी तक मैं कोलकाता की जीत के खिलाफ ही रहा.. कारण सिर्फ और सिर्फ शाहरूक के घमंडी स्वभाव के कारण.. उन दिनों में गवास्कर को मिडिया के सामने बेईजत्त करते समय उसे पता नहीं था कि यह कोई मुंबईया सिनेमा नहीं है जहां अंत में अचानक से हारता हुआ हिरो अचानक से चैंपियन बन जाता है.. यह रील लाईफ नहीं रियल लाईफ है.. यहां सभी कुछ खिलाड़ियों के मनोबल और मेहनत से होता है.. जिसे शाहरूक और बेकनन (फेक आईपीएल प्लेयर के शब्दों में भोखा नान) शुरू से ही तोड़ते नजर आये.. अब यहां किसी देश कि इज्जत तो दांव पर लगी नहीं थी जो खिलाड़ी अपना जी-जान लगाते.. सो वैसे हालात में जो होना था वही हुआ भी..


पिछले 3-4 मुकाबलों में अचानक से कोलकाता कि यह टीम हर मैच को आखिरी ओवरों तक पहूंचाने में कामयाब रही.. एक कहावत है, "नंगा भगवान से भी नहीं डरता है".. लगभग यही हालात शायद कोलकाता के साथ रही हो.. उसके पास खोने को कुछ भी नहीं था और सभी खिलाड़ी अपना स्वभाविक खेल दिखाने लगे..

"जब भी किसी क्रिकेट मैच को आखिरी ओवर तक खिंचता देखता हूं तो मुझे लौंस क्लूजनर की याद आने लगती है.. आखिरी ओवरों के खेल में वह मेरा हीरो हुआ करता था.."


लौंस क्लूजनर

अभी तक सभी फिल्मी सितारों कि टीम इस प्रतियोगिता से बाहर हो चुकी है.. सबसे ज्यादा चर्चे में भी उन्हीं कि टीम रही थी, खेल या सितारों के कारण नहीं.. बल्की अपने तरिकों से इस खेल को ढ़ालने कि कोशिश करने के कारण.. शायद वे यह भूल गये थे कि वह किसी फिल्म के सेट पर नहीं हैं जहां डायरेक्टर उनके हर नखरे को सहता है.. यहां डायरेक्टर कि भूमिका में वे खुद थे फिर भी उन्हीं के नखरे ज्यादा थे..

अगर खिलाड़ियों कि बात की जाये तो मुझे कोलकाता नाईट रायडर से अगरकर का खेल अच्छा लगा.. राजस्थान और पंजाब एलेवन से पठान भाईयों का प्रदर्शन भी अच्छा रहा है अब तक.. जब सफल खिलाड़ियों कि बात करें तो हेडेन को कैसे भुलाया जा सकता है? वैसे सबसे ज्यादा निराश किया है हमारे वीरू ने अभी तक.. और भी कई नाम हैं सफल-असफल खिलाड़ियों कि जमात में, किन-किन का नाम गिनाऊं?

Monday, May 18, 2009

प्रभाकरण कि मौत तमिल लोगों कि नजर से

थोड़ी देर पहले ही यह खबर मिली कि प्रभाकरण मारा गया.. मुझे यह खबर एक तमिल मित्र द्वारा मिली.. उसके चेहरे पर कोई खुशी नहीं थी, सो मैं संकोच में आ गया कि इन लोगों के सामने मुझे किस तरह कि प्रतिक्रिया व्यक्त करनी चाहिये? अगर सिर्फ मेरी बात की जाये तो मुझे खुशी ही हुई यह खबर सुन कर मगर यह खुशी उन लोगों के सामने व्यक्त करना मुझे ठीक नहीं लगा जो मेरे शुभचिंतक भी हैं और साथ ही इस खबर पर उदास भी..

मैंने उन्हीं से जानना चाहा कि आप ही बतायें कि इस खबर पर तमिल लोगों कि क्या प्रतिक्रिया आयेगी?

उनका कहना था कि प्रभाकरण का भारत के प्रति बस एके ही गलती थी जिसके कारण उसे भारत का समर्थन नहीं मिल सका.. और वो थी राजीव गांधी कि हत्या.. अगर इस बात को हटा दिया जाये तो तमिल टाईगर किसी भी नजर से किसी अन्य आतंकवादी संघटन जैसी नहीं थी.. जब वह अपने चरम पर थी तब उसकी श्रीलंका में एक अलग सरकार जैसी चलती थी जिसने वहां के तमिल लोगों के भले के लिये बहुत सारे काम किये.. इसी तरह की कई बाते उसने मुझसे कही जो भावनात्मक रूप से जुड़ा हुआ कोई इंसान ही बोल सकता है.. साथ ही साथ उसने एक बात और कही, "जो भी तमिल नहीं है वह इस भावनात्मक पहलू को कभी नहीं समझ सकता है.." जो एक हद तक सही भी है..

मेरे मित्र को एक उम्मीद यह भी है कि शायद अभी प्रभाकरण जिंदा हो.. उसका कहना है कि प्रभाकरण हमेशा अपने दो हमशक्लों को रखता है(जिसकी पुष्टी कई समाचार साईट पर भी कि गई है), और शायद उन्हीं हमशक्लों में से कोई मारा गया हो शायद.. ये कुछ-कुछ ऐसी ही उम्मीद है जैसे कि किसी परी कथा का नायक दुश्मनों के लिये मर चुका होता है मगर असल में वह अचानक हमला करके सभी दुश्मनों को धराशायी कर देता है..

मैं तमिल बनाम सिंघल के बहस में नहीं पड़ना चाहता हूं, मगर यहां के तमिल लोग भावनात्मक रूप से तमिल टाईगर से बहुत जुड़े हुये हैं.. प्रभाकरण भले ही मारा गया हो मगर वह एक मिथक के रूप में तमिल लोगों के जेहन में हमेशा जिंदा रहने वाला है..

नोट - इस लेख को प्रभाकरण के पक्ष में लिखा गया लेख ना माना जाये.. जो भी बातें लिखी गई हैं वे सभी तमिलनाडु के निवाशियों से ली गई राय के बाद लिखी गई है..

Saturday, May 16, 2009

एक कहानी जिंदगी कि अटपटी सी, चटपटी सी

"तुम्हारा ड्राईविंग नहीं सीखने को लेकर विकास, वाणी और मैं एक ही बात से सहमत हैं, वो ये कि तुम गाड़ी चलाना सीखना ही नहीं चाहते हो.." मैंने शिव से बोला.. यूं तो उसका पूरा नाम शिवेन्द्र है मगर सभी उसे शिव के नाम से बुलाते हैं.. छोटा नाम करके बुलाने का फायदा यह होता है कि समय तो बचता ही है साथ में जुबान को भी कम शब्द बोलने के कारण कम मेहनत करनी पड़ती है.. शायद इसलिये कभी संजीव "संजू" बन जाता है तो कभी चंदन "चंदू" तो कभी अर्चना "अर्चू"..

शिव ने भी इसी में अपनी सहमती जतायी, "हां भाई, जब तुम्हारे, विकास और वाणी जैसे इतने अच्छे ड्राईवर मिले ही हैं तो मैं भला ड्राईविंग क्यों सीखूं?"

"अच्छा! हम लोग कब तक तुम्हारे साथ रहेंगे?"

"जब तुम लोग नहीं रहोगे तो कोई और रहेगा.. क्या फर्क पड़ता है?"

"अच्छा? और जब तुम्हारी शादी हो जायेगी तब?"

इस प्रश्न पर उसके पास कोई कुतर्क नहीं था सो बस गूं गूं करके इतना ही बोला कि "तुम्ही लोग तब भी काम आओगे.."

मैं अब मजाक के मूड में आ गया था.. सो बोला, "मतलब कि भाभी जी को भी मेरे ही पीछे बैठाओगे?"

"हां.." एक सपाट सा उत्तर उसने दिया..

"ठीक है.. फिर रूपेश वाला किस्सा तुम्हारे साथ हो जाये तो मुझे मत कहना.." मेरा इतना कहना था कि हम दोनों ठहाके लगा कर हंसने लग गये.. कुछ पुरानी बातें याद हो आयी.. कालेज की..





तब हम नये नये वेल्लोर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में प्रवेश लिये थे और हमारी दोस्तों का दायरा ज्यादा बड़ा नहीं था.. लेकिन जानपहचान सभी से हो चुकी थी.. एक दिन विकास, शिव, रूपेश और मैं सुबह के नाश्ते के लिये होस्टल के मेस में बैठे हुये थे.. रूपेश बहुत कम बोलने वाला प्राणी तब भी हुआ करता था और अब भी वैसा ही है.. अचानक से मेरे मन में पता नहीं क्या आया और मैं रूपेश की खिंचाई करना शुरू कर दिया..

बिलकुल सीरीयस होकर मैंने रूपेश से बोला, "तुम भाई पढ़ने में बहुत तेज हो.. मैं तो कहीं भी तुम्हारे सामने नहीं टिकता हूं.. तुम्हारा तो कैंपस सेलेक्शन भी जल्दी हो जायेगा.. मेरा होगा या नहीं इस पर भी प्रश्न चिन्ह लगा हुआ है.."

रूपेश कुछ बोला नहीं बस एक हल्की सी मुस्कुराहट के साथ मेरी ओर देखता रहा..

"अब जरा आज से दस साल बाद के बारे में सोचो.. मैं शायद तब भी खाली ही बैठा रहूंगा.. मगर तुम्हारे पास अच्छी सी नौकरी होगी.. एक बहुत संदर सी बीबी होगी.. एक बच्चा भी होगा जो इतना प्यारा कि उसे देखते ही कोई भी उसे प्यार करने को मचल जाये.."

अब तक रूपेश की आंखें फैल कर गोल हो चुकी थी.. वह सोच में था कि मैं क्या बोलने जा रहा हूं या फिर क्या बताना चाह रहा हूं!

मैंने आगे बात जारी रखी, "एक दिन मैं तुम्हारे घर आऊंगा और कॉल बेल बजाऊंगा.. तुम्हारा बच्चा दौड़ा-दौड़ा आयेगा और दरवाजा खोलेगा.. मुझे देख कर वापस तुम्हारे पास भागा-भागा जायेगा और बोलेगा "पापा, पापा.. अंकल आये हैं.." तुम पूछोगे, "बेटा कौन अंकल आये हैं?" बच्चा बोलेगा, "पापा वही अंकल आये हैं जिनकी शक्ल मुझसे मिलती है.."

अभी तक रूपेश बहुत उत्सुकता से मेरी पूरी बात सुन रहा था.. लेकिन जैसे ही मेरी पूरी कहानी खत्म हुई तो वह बुरी तरह से मुझे घूर रहा था.. लेकिन ना तो पहले वह कुछ बोल रहा था और ना ही अब वह कुछ बोल रहा था.. बस चुपचाप ब्रेड-बटर खाये जा रहा था..

बाद में जब हम अच्छे मित्र हो गये तब मैंने उससे पूछा कि क्या सोच रहे थे उस समय तुम? उसका कहना था कि वह सोच रहा था कि क्या उत्तर दे इसका.. मगर उसे कुछ सूझ नहीं रहा था..

थोड़ी देर मैं और शिव इसे याद करके हंसते रहे और फिर से मैं शिव के लिये ड्राईवर के काम पर निकल पड़ा.. एक बार फिर से मैं गाड़ी चला रहा था और शिव पीछे बैठा हुआ था.. :)

इस किस्से के सभी पात्र जिवंत हैं और इनका इस दुनिया में जिवित किसी ना किसी व्यक्ति से संबंध है.. ;)

Friday, May 15, 2009

टूटो तो यूं टूटो कि खबर बन जाये

जी हां! मेरे पैर के टूटने का अनुभव कुछ-कुछ ऐसा ही रहा.. और तो और ये एक छुवाछूत की तरह फैलता ही चला जा रहा है.. मैं जहां काम करता हूं वहां मेरे फ्लोर पर सबसे पहले मेरा पैर टूटा.. उसके बाद तो जैसे सभी मेरा ही अनुसरण करने निकल पड़े.. एक के बाद एक अभी तक पूरे छः लोग अपनी टांगों को कुर्बान कर चुके हैं.. हर तीसरे दिन कोई ना कोई मेरे पास आकर मुझे गरिया कर जाता है कि ये सब तुम्हारा ही किया धरा है.. शुरूवात तुमने ही कि थी.. और मैं मन ही मन खुश होता हूं कि चलो इस एलाईट ग्रुप में एक और शामिल हुआ है..


चलते-चलते एक चव्वनी छाप शायरी -
पैर टूटे तो यूं टूटे कि खबर बन जाये,
ऐसे टूटे सभी का पैर जैसे जिंदगी जहर बन जाये..
तोड़ने को तो लोग दिल भी तोड़ा करते हैं,
मगर तोड़ो सभी का पैर ऐसा कि कहर बन जाये... ;)


वैसे मेरे पैर की हालत दिन ब दिन ठीक होती जा रही है.. उम्मीद करता हूं कि 1-2 महिने में पूरी तरह चंगा हो जायेगा.. :)

जब शहर हमारा सोता है

एक बकत कि बात बतायें,
एक बकत कि..
जब शहर हमारो सो गयो थो,
वो रात गजब की..
चहुंओर, सब ओर दिशा से,
लाली छाई रे..
जुगनी नाचे, चुनरी ओढ़े,
खून नहाई रे..
सब ओरों गुल्लाल पुत गयो,
सब ओरों में..
सब ओरों गुल्लाल पुत गयो,
विपदा छाई रे..
जिस रात गगन से,
खून की बारिश आयी रे..
जिस रात शहर में,
खून कि बारिश आयी रे..

सराबोर हो गयो शहर,
और सराबोर हो गई धरा..
सराबोर हो गई रे जत्था,
इंसानों का पड़ा-पड़ा..
सभी जगत ये पुछे था,
जब इतना सब कुछ हो रह्यो थो..
तब शहर हमारो कांय-बांय सा,
आंख मूंद के सो रह्यो थो..
शहर ये बोल्यो,
नींद गजब कि ऐसी आयी रे..
जिस रात गगन से,
खून की बारिश आयी रे..
जिस रात शहर में,
खून कि बारिश आयी रे..

सन्नाटा वीराना..
खामोशी अनजानी..
जिंदगी लेती है..
करवटें तूफानी..
घिरते हैं साये घनेरे से..
रूखे बालों को बिखेरे से..
बढ़ते हैं अंधेरे पिशाचों से..
कांपे है जी उनके नाचों से..
कहीं पे वो जूतों कि खट खट है..
कहीं पे अलावों कि चट पट है..
कहीं पर है झिंगुर कि आवाजें..
कहीं पे वो नल के कि टप टप है..
कहीं पे वो खाली सी खिड़की है..
कहीं वो अंधेरी सी चिमनी है..
कहीं हिलते पेड़ों का जत्था है..
कहीं कुछ मुंडेरों पे रक्खा है..

सुनसान गली के नुक्कड़ पर जब
कोई कुत्ता चीख-चीख कर रोता है..
जब लैंप पोस्ट कि गंदली पिली घ्प्प रोशनी
में कुछ-कुछ सा होता है..
जब कोई साया, थोड़ा बचा-बचा कर
उन सायों में खोता है..
जब पुल के खंभों को गाड़ी का गरम उजाला,
धीमे-धीमे धोता है..
तब शहर हमारा, सोता है..
तब शहर हमारा, सोता है..
तब शहर हमारा सोता है,
तब मालूम तुमको वहां पे क्या-क्या होता है?
इधर जागती हैं लाशें,
जिंदा हो मुर्दा उधर जिंदगी खोता है..
इधर चीखती है एक हौव्वा,
खैराती सी उस अस्पताल में बिफरी सी..
हाथ में उसके अगले ही पल,
गरम मांस का नरम लोथड़ा होता है..

इधर उगी है तकरारें,
जिस्मों के झटपट लेन देन में,
ऊंची सी.....
उधर गांव से रिश्ते फूंको,
दूर गुजरती आंखे डेखो,
रूखी सी.....
लेकिन उसको लेके रंग-बिरंगे,
महलों में गुंजाईश,
होती है.....
नशे में डूबे सेहन से,
खूंखार चुटकुलों कि पैदाईश,
होती है.....
अधनंगे जिस्मों कि देखो,
लिपी-पुती सी लगी नुमाईश,
होती है.....
लार टपकते चेहरों को,
कुछ शैतानी करने कि ख्वाहिश,
होती है.....
वो पुछे है हैरान होकर,
ऐसा सब कुछ होता है कब?
तो बतलाओ उनको तब-तब-तब
ऐसा होता है.....

जब शहर हमारा सोता है..
जब शहर हमारा सोता है..
जब शहर हमारा सोता है..


एक गीत गुलाल सिनेमा से..

Thursday, May 14, 2009

ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है?

सुरमयी आंखों के प्यालों की,
दुनिया ओ दुनिया..
सतरंगी रंगों गुलालों की,
दुनिया ओ दुनिया..
अलसायी सेजों सी फूलों की,
दुनिया ओ दुनिया रे..
अंगराई तोड़े कबूतर की,
दुनिया ओ दुनिया रे..
करवट ले सोई हकीकत की,
दुनिया ओ दुनिया..
दिवानी होती तबियत की,
दुनिया ओ दुनिया..
ख्वाहिश में लिपटी जरूरत की,
दुनिया ओ दुनिया रे..
इंसा के सपनों के नियत की,
दुनिया ओ दुनिया..

ओ री दुनिया...

ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है?
ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है?

ममता कि बिखरी कहानी की,
दुनिया ओ दुनिया..
बहनों कि सिसकी जवानी की,
दुनिया ओ दुनिया..
आदम के हौव्वा से रिश्ते की,
दुनिया ओ दुनिया रे..
शायर के फीके लफ़्ज़ों की,
दुनिया ओ दुनिया..

गालिब के, मोमिन के ख्वाबों की दुनिया..
मजाजों के उन इंकलाबों की दुनिया..
फ़ैज, फ़िराकों, साहिर, मखदुम,
मीर, की ज़ौक, की दागों की दुनिया?

ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है?
ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है?

पलछिन में बातें चली जाती हैं..
पलछिन में रातें चली जाती हैं..
रह जाता है जो, सवेरा वो ढ़ूंढ़ें..
जलते मकामें, बसेरा वो ढ़ूंढ़ें..
जैसी बची है, वैसी कि वैसी,
बचा लो ये दुनिया..
अपना समझ के, अपनों के जैसे,
उठा लो ये दुनिया..
छिटपुट सी बातों में जलने लगेगी,
संभालो ये दुनिया..
खटपुट के रातों में पलने लगेगी,
संभालो ये दुनिया..

ओ री दुनिया..

वो कहे है कि दुनिया,
भी इतनी नहीं है..
सितारों से आगे,
जहां और भी है..
ये हम ही नहीं हैं,
वहां और भी है..
हमारी हर एक बात,
होती रही है..
हमें एतराज,
नहीं है कहीं भी..
वाकई में फ़ाजिल हैं,
होंगे सही भी..
मगर फ़लसफ़ा ये,
बिगड़ जाता है जो,
वो कहते हैं..

आलिम ये कहता वो ईश्वर है..
फ़ाजिल ये कहता वो अल्लाह है..
कादिल ये कहता वो ईशा है..
मंजिल ये कहती तब इंसान से की,
तुम्हारी है, तुम ही संभालो ये दुनिया..
ये बुझते हुये चंद बासी चरागों,
तुम्हारे ये काले इरादों की दुनिया..

ओ री दुनिया....
ओ री दुनिया....


एक गीत गुलाल सिनेमा से..

Wednesday, May 13, 2009

ऐसे हैं हमारे गुणी बाबू

बहुत दिनों से इनके बारे में लिखने को सोच रहा था, मगर कुछ ना कुछ ऐसा हो जाया करता था जिसके कारण से अभी तक नहीं लिख पाया.. नाम वगैरह बाद में बताता हूं, पहले इनके बारे में कुछ बातें कर लूं.. इनसे सबसे पहले मैं मिला अंतर्जाल की दुनिया में, औरकुट नामक सोशल नेटवर्किंग साईट पर.. इसी में एक पटना नामक कम्यूनिटी है, जिसमें मेरी इनसे पहली मुलाकात हुई.. इनके प्रोफाईल में नाम गधा लिखा हुआ था और अबाउट मी नामक भाग में प्रेमचंद द्वारा लिखी गयी कहानी "दो बैलों की कथा" की शुरूवाती पंक्तियां लिखी हुई थी जिसमें यह विस्तार से बताया गया था कि कैसे गधा संतों के समान होता है.. ना छल, ना कपट.. और संतोष इतना जितना मुनियों में भी विरले ही मिले.. अब ऐसे में इस अनूठे प्रोफाईल के प्रति जिज्ञासा क्यों ना बने.. कुछ दिनों बाद इनका प्रोफाईल फिर से बदल गया और वहां आर.टी.आई. एक्ट से संबंधित जानकारी मिलने लगी.. इसी प्रकार इनके प्रोफाईल पर नित नई जानकारी मिलने लगी.. बाद में मैं और यह साहब, दोनों ही उस कम्यूनिटी के मॉडेरेटर बना दिये गये.. इनसे प्रगाढ़ता कैसे हुई यह तो मुझे याद नहीं है मगर यह जरूर याद है कि इन्होंने पहले पहल मुझे कृष्णचंदर जी द्वारा लिखा गया "एक गधे की आत्मकथा" मुझे कूरीयर से भेजे थे.. मैंने इन्हें बहुत कहा कि आप अपना बैंक एकाऊंट नंबर मुझे दिजिये, मगर इन्होंने यह कहकर मुझे नहीं दिया कि इसे हिंदी के प्रोत्साहन के रूप में एक भेंट समझ लें.. उस समय मैं इन्हें समझाता रह गया कि मुझे जैसे हिंदी में जीने वाले प्राणी को इस प्रोत्साहन कि जरूरत नहीं है, मगर यह नहीं माने.. :)

दूसरी बार इनके एक नये व्यक्तित्व का पता मुझे तब चला जब यह सूरज को बचाओ अभियान में लगे हुये थे.. सूरज नाम का एक होनहार बालक एक जटिल बिमारी से ग्रस्त है, और पटना में उसका इलाज चल रहा है.. उसकी दवाईयां इतनी महंगी है जिसे वह नहीं खरीद सकता है.. अगर आप भी उसके लिये कुछ कर सकें तो मुझे बहुत खुशी होगी.. आप उसके लिये क्या और कैसे कर सकते हैं इन सबकी जानकारी आपको इस ब्लौग पर मिल सकता है..

एक बार फिर इनका व्यक्तित्व निखर कर मेरे सामने आया जब बिहार बाढ़ के समय अपने प्राणों को खतरे में डाल कर ना जाने कितने प्राणों को इन्होंने बचाया.. यह खुद बाढ़ वाले इलाके में घूमे और जगह-जगह लोगों को सहायता प्रदान की.. मैं इनसे ही प्रभावित होकर यहां चेन्नई में भी बाढ़ राहत के लिये फंड इकट्ठे करने के लिये जागरूकता फैलाई.. और एक मेरे अकेले के प्रयास से ही लगभग 10 लाख रूपये भी बिहार मुख्यमंत्री राहत कोश में डलवाने में सफल भी हुआ.. मैं इन सबका सारा श्रेय भी इन्हें ही देता हूं.. सोचिये, मेरे जैसे ना जाने कितने लोग इनसे प्रभावित होकर कितनी सहायता पहूंचाई होगी?

अगली बार इनकी एक बहुत ही बढ़िया बात मुझे युनुस जी से पता चला.. मुझे इनके बारे में बस यह पता था कि यह मुंबई किसी काम से गये हुये हैं.. बाद में युनुस जी से मुझे पता चला कि यह मुंबई गये थे उन लोगों कि सहायता करने जो गरीब थे और मुंबई हमले में अपने किसी परिजन को खो चुके थे और जिनकी सुध ना तो सरकार ने ली थी और ना ही किसी अन्य संस्था ने.. ये मुंबई जाकर पहले किसी अखबार के कार्यालय से उन सबकी लिस्ट लिये और फिर जो भी बन सका उतनी सहायता की और शाम वाली गाड़ी से वापस गांधीनगर लौट गये..

इनकी सबसे बड़ी खूबी मुझे यह लगती है कि यह समाज के लिये जो भी काम करते हैं, उसे करने के बाद परदे के पीछे चले जाते हैं.. नेपथ्य में रहकर काम करना शायद इनके स्वभाव में शामिल है..

जी हां ऐसे ही हैं हमारे यह गुणी भैया.. इनका पूरा नाम गुनेश्वर आनंद है.. ऐसे तो यह बिहार के रहने वाले हैं मगर अभी गांधीनगर में रहकर पी.एच.डी. कर रहे हैं.. इन्हें मुझे एक बात के लिये धन्यवाद भी कहना था मगर इन्होंने मुझे कहा कि घर के लोगों के लिये धन्यवाद जैसी औपचारिक शब्दों का प्रयोग नहीं किया जाता है.. असल में इन्होंने मुझे एक ईनाम के तौर पर "अनामदास का पोथा" भेंट किया है.. :)

चलते-चलते यह भी बताता चलूं कि इनका चिट्ठा हिंदी चिट्ठों की दुनिया में सबसे पुराने चिट्ठों में से एक है, मगर इन्हें जानने वाले बहुत कम है इस चिट्ठा दुनिया में.. यहां भी इन्हें नेपथ्य में रहकर चलना अच्छा लग रहा है शायद.. :)


इनका कोई चित्र मेरे पास अभी नहीं है, मगर इनका यह चित्र इनसे पूछे बिना मैं औरकुट प्रोफाइल से उडा लाया हूँ.. मजे कि बात ये है कि इसमे भी इनका चेहरा नहीं दिख रहा है.. :)

Sunday, May 10, 2009

घर के बड़ों के चेहरे पर आती झुर्रियां क्या आपको भी परेशान करती है?

आज मातृदिवश पर हमारे सभी मित्र अपनी-अपनी मांओं को याद कर रहे हैं, मगर मुझे तो आज पापा जी कि याद बहुत आ रही है.. हर वे बातें याद आ रही हैं जो मैंने उनके साथ की थी.. इन यादों से मेरा एक अजीब रिश्ता बन चुका है, ये कभी भी मेरा पीछा नहीं छोड़ती हैं.. कोई भी ऐसी बात मैं भूल पाने में हमेशा खुद को असमर्थ पाता हूं, जिसे मैंने थोड़ी भी भावुकता के साथ जीया है.. वहीं कुछ काम की बातें हो तो उसे याद मैंने कब रखा है, मुझे ये भी याद नहीं आ रहा है.. :)

जब से दक्षिण भारत में रहने को आया हूं, तब से घर छः महिने से पहले नहीं जा पाया हूं.. और यह अंतराल इतना बड़ा हो जाता है कि जब घर पहूंचता हूं तो पापा जी के चेहरे पर एक नई झुर्रीयां देखता हूं.. मन को बहुत तकलीफ होती है, लगता है जैसे पापा जी अब बूढ़े हो रहे हैं और धीरे-धीरे असक्त भी होते जा रहे होंगे.. इतनी समझ तो है ही मुझमें कि यह मनुष्य के जीवन का एक चक्र मात्र है.. कुछ वर्षों के बाद यह चक्र मुझे भी दोहराना है.. शायद कभी मैं भी बूढ़ा होउंगा, यह प्रश्न मुझे कभी परेशान नहीं करता है जितना पापा-मम्मी के चेहरे पर आती झुर्रियां.. सोचता हूं कि काश मैं ययाति वाले कथा को दुहरा पाता?

जब छोटा था तब पारिवारिक दायित्व बहुत अधिक होने के चलते मम्मी को हमेशा गुस्से में देखता था और हममें से कोई भी भाई-बहन उनके पास जाने से कतराता था.. उस समय पापा कि गोद हमारे लिये सबसे सुरक्षित जगह हुआ करती थी.. घर में सबसे छोटा होने का फायदा भी मैंने जम कर उठाया, और पापा कि गोद में 15-16 साल कि उम्र तक खेला हूं.. घर का सबसे बड़ा नालायक, सबसे ज्यादा गुस्सैल भी और पढ़ाई-लिखाई में तीनों भाई-बहन में सबसे पीछे भी.. और ऐसे में भी पापा जी का भरपूर प्यार मिलना, बिना किसी डांट-पिटाई के.. मम्मी पापा जी को अक्सर कहती थी, "यह अगर बड़ा होकर बिगड़ गया तो सारा दोष आपका ही होगा.." तो वहीं पापा जी का कहना होता था कि "अगर यह बड़ा होकर सुधरा तो सारा श्रेय भी मेरा ही होगा".. आज के परिदृश्य में वे लोग मुझे बिगड़ा हुआ मानते हैं या सुधरा हुआ यह तो वही बता सकते हैं.. मगर मैं अपनी नजर में अभी तक सुधरा हुआ तो बिलकुल भी नहीं हूं.. एक बेटे के बड़े होने के बाद वह अपने पापा मम्मी को जो भी सुख दे सकता है वो तो अभी तक उन्हें मुझसे तो नहीं मिला है..


चित्र में पापा, मम्मी, भैया और मेरा पुतरू(भैया का बेटा)..

छुटपन के बारे में याद करने कि कोशिश करता हूं तो एक प्लास्टिक का बैट और बॉल याद आता है, जिसे पापा जी नीचे से गुड़का कर(लुढ़का कर) फेकते थे और मैं उसे मारता था.. एक रेलगाड़ी भी याद आती है जिसमें प्लास्टिक कि रस्सी बंधी होती थी और उसे पकड़ कर खींचने पर शोर करती थी, जिसे कई बार पापा जी मेरा हाथ पकड़ कर खींचते थे.. एक कैरम बोर्ड याद आता है, जिसका स्ट्राईकर पकड़ना भी पापा जी से ही सीखा था कैरम के सभी नियमों के साथ और बाद में उसी कैरम को खेलते हुये मैं और भैया अपने गली-मुहल्ले के चैंपियन बन गये थे.. बैडमिंटन का वो छोटा वाला रैकेट भी याद आता है जिसे खेलना भी पापा जी ने ही सिखाया था.. ये सभी यादे छः साल कि उम्र या उससे भी कम उम्र की हैं..

थोड़े बड़े होने पर भी पापा जी के साथ क्रिकेट खेलने जाते थे और पापा जी हमेशा थ्रो बॉल फेंकते थे.. बिलकुल ऐसे जैसे पत्थर फेंक रहे हों.. पता नहीं ऐसे ही कितनी बातों का थ्रो पत्थर मैंने उनपर कितनी बार फेका है, उन पत्थरों से कितनी चोट भी पहूंचायी है.. फिर भी कभी इसका अहसास नहीं होने दिया उन्होंने मुझे..

एक बार किसी पर्सनैलिटी डेवेलपमेंट ट्रेनिंग में मुझसे कहा गया था कि 1 मिनट आंखें बंद करके उस क्षण को सोचो जब तुम्हें सबसे ज्यादा खुशी मिली हो.. मैंने आंखें बंद की और 1 मिनट ईमानदारी से सोचने के बाद मैंने पाया कि मेरे लिये वह क्षण सबसे ज्यादा खुशी का क्षण होता है जब घर पहूंचकर पापा जी का पैर छूने से पहले ही पापा जी मुझे सीने से लगा लेते हैं..

जब पापा जी के पके हुये बालों को और उनके चेहरे की झुर्रियों को देखकर मैं उन्हें चिढ़ाता हूं कि पापा जी अब बुढ़ा गये हैं तो उनका कहना होता है कि अब तो सठिया भी गये हैं.. आखिर दादा-नाना तो बन ही चुके हैं.. अगर आज के संदर्भ में देखा जाये तो मैं उनपर आश्रित नहीं हूं, और अगर शारीरिक सक्षमता कि बात आती है तो उनसे ज्यादा ही सक्षम हूं.. मगर फिर भी जब वे साथ होते हैं तो ना जाने एक अजीब सी हिम्मत बंध जाती है, की पापा जी मेरे साथ है तो पूरि दुनिया भी मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकती है..

ऐसा क्यों होता है यह मुझे नहीं पता है, मगर मैं चलते-चलते यह जरूर कहना चाहूंगा कि मेरे पापा जी मेरे जीवन में मेरे एकमात्र हीरो हैं.. मैं हमेशा सोचता हूं कि काश कभी मैं अपने पापा जैसा आदर्शवादी और कर्मठ इंसान बन पाऊं..


यह विडियो इस 22 अप्रैल को पापा-मम्मी कि शादी कि 32वीं सालगिरह की है.. खराब बैंडविड्थ कि वजह से इसे मैं भी अभी नहीं देख पाया हूं.. भैया ने इसे अपलोड किया है..

Friday, May 08, 2009

एक जन्मदिन रेलवे प्लेटफार्म पर

रेलवे प्लेटफार्म पर जन्म दिन मनाने पर कैसा महसूस करेंगे आप? लोगों की भीड़ आपको घूरती रहे, सभी आंखें मानों कई सवाल लिये हो.. और आप इन सबकी कोई परवाह ना करते हुये बस अपनी धुन में जन्मदिन का केक काटने में मशगूल हों!

जी हां कुछ ऐसा ही नजारा था 6 मई कि रात चेन्नई सेंट्रल, प्लेटफार्म नंबर 9 पर.. मेरा मित्र संजीव(जिसकी चर्चा मैं कई बार अपने इस ब्लौग पर कर चुका हूं) के मम्मी-पापा एक शादी में शामिल होने के लिये चेन्नई आये हुये थे.. हम सभी मित्रों में से ऐसा कोई भी नहीं था जो पहले उनसे ना मिला हो, सो औपचारिकता जैसी कोई बात ही नहीं थी.. सब कुछ बिलकुल घर जैसा ही था.. हम सभी खुश कि अंकल-आंटी आये हुये हैं.. मैं और शिवेंद्र 5 कि सुबह(जिस दिन शादी थी) पहले ही अंकल-आंटी से उनके होटल में जाकर मिल चुके थे.. और चूंकी 6 को आंटी का जन्मदिन था सो काफी कुछ संजीव कि ओर से हमें ढ़ेर सारे अनुदेश(इंस्ट्रक्शन) मिल चुके थे..

उनकी ट्रेन 6 मई कि रात में थी और उन्हें रांची जाना था.. 6 कि सुबह ही जब ऑफिस जाने कि तैयारी कर रहा था उस समय शिवेंद्र से बात करते हुये अचानक से केक का भी प्लान बना डाला.. कि रात में जब स्टेशन पर अंकल-आंटी से मिलने जायेंगे तब वहीं स्टेशन पर ही केक की कटाई भी होनी चाहिये.. :)

दिन भर ऑफिस में होने के कारण किसी का भी अंकल-आंटी से मिलना संभव नहीं था.. (कुछ हद तक मेरे लिये ही यह संभव था क्योंकि जहां शादी हुई थी वह स्थान मेरे ऑफिस के बिलकुल पास में ही था, मगर मुझे इसकी कोई खबर नहीं थी जिसका बाद में मुझे अफ़सोस भी हुआ..) शाम में हमारे मित्र अन्वेष का फोन आया कि तुम कैसे और कब जा रहे हो स्टेशन? मैंने प्लान बताया, फिर उसने कहा कि मैं भी आ रहा हूं और सीधा तुम्हारे ऑफिस आऊंगा.. वहीं से साथ चलेंगे..

मेरे लिये तो ऑफिस रात में ही जवान होती है.. और मैं सारे काम छोड़कर भागने के चक्कर में था.. मगर उसकी जरूरत नहीं पड़ी.. मैं सही समय पर निकला और नियत समय पर अन्वेष से मिल भी लिया.. शिवेंद्र भी मेरे ही ऑफिस आ गया.. फिर हमने फोन किया तो पता चला कि ट्रेन लगभग 3 घंटे देरी से चल रही है.. फिर पूछने पर पता चला कि वो तो बिलकुल हमारे पास में ही हैं.. हम सीधा शादी वाले जगह के लिये ही निकल लिये..

थोड़ी देर उनसे बाते करके और अन्वेष को उनके पास बैठा कर मैं और शिवेंद्र निकल लिये केक लाने के लिये.. उधर से वाणी का भी फोन आ चुका था कि कुछ लाल गुलाबों का एक गुलदस्ता भी बनवा कर लेते आना.. संयोग से मेरा ऑफिस चेन्नई के सबसे बड़े व्यवसायिक इलाका टी.नगर में ही है.. जहां हर चीज आसानी से उपलब्ध है..

मैं और शिवेंद्र केक और गुलदस्ता लेकर पहूंचे मगर उसे गार्ड के पास ही छोड़ आये.. सारे बारात के सामने केक कि कटाई हमें कुछ जंच नहीं रहा था और साथ ही हमें विकास और वाणी का भी इंतजार करना था.. थोड़ी देर में ही वे दोनों भी आ पहुंचे.. वे दोनों अंकल-आंटी के लिये गिफ्ट पहले ही पैक करके लेते आये थे जिसे बैग कि मेहरबानी से छुपाया गया था..

फिर वहां से निकल कर स्टेशन के लिये चल पड़े, हम पांच मित्र थे और हमारे पास 3 गाड़ियां थी.. मतलब एक सीट अभी भी खाली थी हमारे पास और अंकल ने उसका बखूबी इस्तेमाल किया.. वैसे पल्सर 200 पर चढ़कर पीछे बैठने का अनुभव जानना हो तो कभी मेरे पापा से या फिर अंकल से पूछना ही ठीक रहेगा.. ;)

स्टेशन पर पहूंच कर हमने एक-एक करके अपने सारे पत्ते खोलना शुरू किया.. आंटी को भी बताया कि हमने कुछ प्लान भी बना रखा है आज के खास दिन के लिये.. आंटी का कहना था, "हम तो आज तक कभी भी केक नहीं काटे हैं.." इस पर हम सभी का कहना था कि "पहला केक काटना और वो भी रेलवे प्लेटफार्म पर, कभी नहीं भूल पायेंगे आप.." :)

फिर केक काटा गया.. कुछ प्यार भरी और कुछ हंसी मजाक की बाते हुई.. जाते-जाते हमने भी ढ़ेर सारा आशीर्वाद बटोरा, कुछ भी इधर-उधर छिटकने नहीं दिया.. :) थोड़ी देर में ट्रेन भी आई और वे चले गये..

चलते-चलते - हम मित्र आपस में अक्सर ये बातें करते हैं कि संजीव इतना बोलता क्यों है.. इस बार इसका जवाब हमने ढ़ूंढ़ निकाला.. आंटी अध्यापक और अंकल अधिवक्ता.. अब ऐसे में बच्चे भला कैसे चुप रह सकते हैं?? :D

नोट - यह सभी चित्र चेन्नई रेलवे स्टेशन का है, जहां हमने केक पार्टी की थी.. इसमें सफेद रंग के टी-शर्ट में अन्वेष है, कत्थई रंग के शर्ट में विकास है, नीले रंग के शर्ट में शिवेंद्र, हरे रंग के कपड़े में मैं खुद और साथ में वाणी भी.. अंकल-आंटी को तो आप ऐसे भी पहचान लेंगे यह उम्मीद करता हूं.. :)

Tuesday, May 05, 2009

एक सस्ती शायरी मेरी तरफ से भी, अपने रविश भैया से सीखकर

रह रह कर एक चेहरा,
आंखों में कौंध सा जाता है..
क्या वह वही सनम था,
जिसमें कभी खुदा नजर आता है?


आजकल रविश जी कि सस्ती शायरी के चर्चे ब्लौग से लेकर फेसबुक तक हो रही है.. कल ही विनीत ने भी उनके चर्चे अपने ब्लौग पर आम किये थे.. और आज हम भी उनसे कुछ सीख कर अपनी सस्ती शायरी बनाने बैठ गये.. :)

Friday, May 01, 2009

एक हिट लिस्ट हमारी तरफ से भी, उत्तर सहित :)

कल रवि जी कि पोस्ट पढ़ी थी.. और आज अमित जी और समीर जी कि.. तो हमने सोचा कि लगे हाथो हम भी यही चेप ही दें.. अपना कुछ जाता भी नहीं है और टाइम भी खोटा नहीं होता है.. लिखने में मगजमारी भी नहीं करनी पड़ेगी, और हिट्स मिलेगी सो अलग.. ;) मेरे ब्लौग के पाठको के लिए मैं बताना चाहूँगा कि यह एक लिस्ट है जिसमे आपने अब तक जो भी किया है उसे बोल्ड कर देना है, बाकि को ऐसे ही छोड़ देना है.. और पोस्ट कर देना है अपने ब्लौग पर.. अगर मन हो तो मेरी तरह थोडी बहुत सफाई भी दे सकते हैं.. :)

तो शुरूवात करते हैं समीर जी कि लिस्ट से और अंत अमित जी कि लिस्ट से..

१.छद्म नाम से ब्लॉग खोला.
(क्या पता यही वह ब्लौग हो? :))

२.बेनामी जाकर टिपियाये.
(खूब किये हैं जी.. अभी अभी इस ब्लौग पर टिपिया कर आ रहे हैं.. न्योता जो मिला था.. :D)

३.किसी विवाद के सेन्टर पाईंट बने.
(अफ़सोस, वह विवाद ज्यादा दिन नहीं खिंच सके.. शायद विवाद आगे बढ़ने कि कला सीखनी होगी.. :))

४.फुरसतिया जी की पोस्ट एक सिटिंग पूरी में पढ़ी.
(बहुत बोर हो रहे थे तो सोचा कि थोडा और बोर होने में क्या बुराई है? ;))

५.शास्त्री जी ने आपके बारे में लिखा.
(गलती मनुष्यों से ही होती है और ब्लौगर मनुष्य ही होते हैं.. :))

६.अजदक की कोई पोस्ट समझ में आई.
(भविष्य को लेकर आशावादी हैं.. वैसे एक-दो बार उनको कमेन्ट लिख दिया था कि अबकी बार समझ गए.. :))

७.टंकी पर चढ़े.
(बिलकुल जी, नहीं तो हिंदी ब्लौगर काहे का?)

८.लोग टंकी से उतारने आये.
(क्यों नहीं आयेंगे भला?)

९.टंकी से खुद उतर आये.
(उतरे तो खुद ही थे मगर अच्छे ब्लौगर का फर्ज निभाते हुए सारा श्रेय दूसरों को दे दिए.. :))

१०.खुद की आवाज में गाकर पॉडकास्ट किया.

११.किसी ने अगली बार से न गाने की सलाह दी.
(बाकायदा फोन करके कहा.. कमेन्ट में किसी ने नहीं कहा..)

१२.अगली बार से न गाने की सलाह मानी.
(नली टेढी हो जाये, मगर कुत्ते कि दम सीधी नहीं होती है.. अगली बार भी गायेंगे.. ;))

१३.किसी ने आपका कार्टून बनाया.
(इंतजार में हैं.. जिससे उसे ही अपना प्रोफाइल फोटो में लगा सके..)

१४.किसी की पोस्ट चोरी करके अपने ब्लॉग पर अपने नाम से छापी.
(अपने छद्म ब्लौग पर जी.. :))

१५. चोरी की पोस्ट छापने के बाद पकड़े गये.
(वो चोर ही क्या जो पकडा जाये?)

१६. चोरी की पोस्ट छापकर पकड़े जाने के बाद भी बेशर्मों की तरह सीना जोरी करते रहे.
(जब चोरी पकडी ही नहीं गई तो सीनाजोरी काहे कि?)

१७. साहित्यकार होने का भ्रम पाला.
(अभी भी उसी भ्रम में हैं.. :D)

१८. लिखने के साथ यह भी बताना पड़ा कि यह गज़ल है और यह व्यंग्य.
(अब तो यह पोस्ट का हिस्सा बन गया है.. :))

१९. अपनी पोस्ट पढ़ने के लिए ईमेल से निमंत्रित किया.
(पहला मेल समीर जी को ही करेंगे..)

२०. ईमेल निमंत्रण के जबाब में कोई फटकार खाई कि आगे से ऐसी मेल न भेंजे.
(देखते हैं समीर जी क्या कहते हैं.. ये कुछ-कुछ ऐसा ही है जैसे प्रयोगशाला का प्रयोग.. सफल होने पर एक और पोस्ट लिखूंगा.. ;))

२१. फटकार के बावजूद ईमेल भेजते रहे.
(ये १९ और २० से सम्बंधित है..)

२२.दो ब्लॉगर के बीच झगड़ा करवाया.
(नहीं करवाया तो हिंदी ब्लौगर काहे का?)

२३. दो ब्लॉगर के बीच झग़ड़ा करवाकर शांत कराने पहुँचे.
(यही तो हिंदी ब्लौगर कि शान में चार चाँद लगाता है.. :))

२४. किसी सामूहिक ब्लॉग के सदस्य बने.
(अभी भी हैं..)

२५. किसी सामूहिक ब्लॉग की सदस्यता त्यागी.
(जी हाँ.. नाम भी बताना होगा क्या? चलिए बता ही देते हैं.. भड़ास.. :))

२६. किसी सामूहिक ब्लॉग से निकाले गये.
(बिलकुल जी.. और यह नाम भी जाना पहचाना ही होगा.. ;) मोहल्ला)

२७. बाथरुम में बैठकर ब्लॉग पोस्ट की.

२८. ट्रेन से कोई पोस्ट लिखी.

२९. ताऊ की पहेली बूझी.
(हर बार बूझते हैं.. 1st कभी नहीं हुए.. :()

३०. पोस्ट लिखने और पोस्ट करने के बाद डिलिट की.

३१. ब्लॉगवाणी में आज की पसंद पर पहले नम्बर आये.
(बहुत बार आये.. हम पहले ही कह चुके हैं कि गलती मनुष्य से ही होती है और ब्लौगर भी मनुष्य ही होते हैं.. ;))

३२. चिट्ठाजगत की धड़ाधड़ में १ नम्बर पर आये.
(बहुत बार आये.. हम पहले ही कह चुके हैं कि गलती मनुष्य से ही होती है और ब्लौगर भी मनुष्य ही होते हैं.. ;))

३३. किसी के ब्लॉग पर झूठी तारीफ की.
(हमेशा करते हैं.. तभी तो लोंग हमारी भी झूठी तारीफ करने आते हैं.. :D)

३४. किसी फिल्म की समीक्षा पोस्ट की.

३५. ब्लॉग पोस्ट के माध्यम से दूसरे ब्लॉगर से तू तू मैं मैं की.

३६. कोई ऐसी पोस्ट की जिसे किसी ने पढ़ा ही नहीं.
(अजी वही चोरी वाला)

३७. तरकश चुनाव लड़े उदीयमान ब्लॉगर ऑफ द ईयर वाला.
(हार गए थे.. :()

३८. किसी की पोस्ट पढ़कर लगा कि काश! मैं भी ऐसा लिख पाता.

३९. किसी की पोस्ट पढ़कर ऐसा लगा कि हे भगवान!! कभी गल्ति से भी मैं ऐसा न लिख दूँ.

४०. बिना उस स्थल पर गये वहाँ का यात्रा संस्मरण लिखा.

४१. कभी अपनी कविता किसी विदेशी कवि के नाम से चैंपी.

४२. कभी आपकी किसी हास्य प्रधान पोस्ट को किसी ने टिप्पणी में अति मार्मिक बताया.
(अक्सर ऐसा ही होता है.. :()

४३. बिना पोस्ट पढ़े टिप्पणी की.

४४. कभी अपने ही लिखे पर शरम आई.
(आज आएगी, सो पहले ही बोल्ड किये देते हैं..)

४५. कभी काफी दिनों तक न लिख पाने की माफी मांगी, इस भ्रम में कि लोग इन्तजार कर रहे होंगे.

४६. जब दिन भर टिप्पणी नहीं आई तो खुद से टिप्पणी करके चैक किया कि टिप्पणी बॉक्स काम कर रहा है कि नहीं.
(पूरी इमानदारी से बता रहा हूँ.. शुरूवाती दिनों कि याद दिला दिए आप.. :))

४७. कहीं टिप्पणी लम्बी हो जाती इसलिए उसे पोस्ट बना कर पोस्ट किया.
(और क्या? हम इत्ती मेहनत करें और वो दुसरे के ब्लौग पर पड़ा रहे यह हमें मंजूर नहीं..)

४८. कभी अपनी बात उल्टी पड़ जाने पर बचने के लिए ऐसा कहा कि ’हम तो मौज ले रहे थे.’
(हर दुसरे दिन ऐसा ही होता है..)

४९. कभी अखबार में आपके ब्लॉग का जिक्र हुआ.

५०. अखबार में आपके ब्लॉग के जिक्र को स्कैन करा के ब्लॉग पोस्ट बना कर छापा.

५१. अखबार की स्कैन कॉपी मित्रों और रिश्तेदारों को ईमेल से भेजी.

५२. ’आज कुछ लिखने का मन नहीं है’ कह कर २५ लाईन से ज्यादा की पोस्ट लिखी.
(दो दिन पहले ही लिखी थी.. आप पढ़ सकते हैं.. :))

५३. एक ही पोस्ट को अपने ही पाँच ब्लॉगों से छापा.

५४. अपनी पोस्ट बिना टिप्पणी के एग्रीगेटर के दूसरे पन्ने पर चले जाने से उसे डिलिट कर फिर से छापा ताकि वो फिर से उपर आ जाये.

५५. गुस्से में अपने ब्लॉगरोल से किसी का ब्लॉग अलग किया.

५६. एक दिन मे २५ से ज्यादा ब्लॉग पर टिपियाया.

५७. किसी और की पोस्ट पढ़ने के लिए अपने ब्लॉग पर सिर्फ उसका लिंक देकर एक पोस्ट बनाई.
(समझा नहीं?)

५८. कभी कोई ब्लॉगर मीट अटेंड की.
(एक बार बहुत सारे ब्लौगरों से मुलाकात कि थी, मगर मैथिली जी ने कहा कि इसे मीट का नाम मत देना.. सो उनकी बात मान कर यह पोस्ट दे मारी थी.. :D आखिर हम भी किसी से कम थोड़े ही हैं.. ;))

५७. कभी ब्लॉगर मीट अटेंड करके उसकी रिपोर्ट लिखी.

५८. कभी किसी शोक समाचार पर भूल से बधाई दी.

५९. कभी किसी से पोस्ट पर मजाक किया और सामने वाले ने बुरा मान लिया.

६०. कभी आपकी खिलाफत करती किसी ने ब्लॉग पोस्ट लिखी.

६१. क्या ’साधुवाद’ टाईप किसी जुमले से आपकी अलग पहचान बनी.

६२. क्या ब्लॉग पोस्ट पर आपका कोई तकिया कलाम है.

६३. कभी छत पर बैठ कर कोई ब्लॉग पोस्ट लिखी.

६४. कभी कुछ लिखना चाहा किन्तु किसी को बुरा न लग जाये इसलिए नहीं लिखा.

६५. कभी पूरी पोस्ट तैयार हो जाने के बाद भूल से डिलिट हो गई.

६६. क्या इस भूल से डिलिट हुई पोस्ट के लिए एक पोस्ट की कि पोस्ट डिलिट हो गई और अब फिर से लिख पाना संभव नहीं.

६७. क्या यह बताने के लिए कि ’अब अगले पाँच दिन नहीं लिख पाऊँगा’ पोस्ट लगाई जबकि यूँ भी आप एक महिने से नहीं लिख रहे थे.

६८.कभी आपका ब्लॉग एग्रीगेटर से अलग किया गया.

६९. क्या कभी तकनिकी कारणों से पोस्ट एग्रीगेटर पर न दिखने पर आपने एग्रीगेटर की तानाशाही पर पूरा ब्लॉगजगत सर पर उठा लिया.

७०. कभी किसी को अपने ब्लॉग का सदस्य बनाने निमंत्रण भेजा.

७१. कभी किसी से उसके ब्लॉग का सदस्य बनने का निमंत्रण मिला.

७२. कभी किसी को अपने ब्लॉग का सदस्य बनाने निमंत्रण भेजा और उसने ठुकरा दिया.
(पहले ही पूछ लिए थे कि आप सदस्य बनना चाहते हैं या नहीं.. सो यह मौका नहीं आया.. :))

७३. कभी किसी से उसके ब्लॉग का सदस्य बनने का निमंत्रण मिला और आपने ठुकरा दिया.

७४. आपकी गज़ल के बेबहर होने पर किसी ने टोका.

७५. क्या आपने माईक्रो गद्य लिखा और लोगों ने उसे कविता समझ कर बधाई दी.
(:D)

७६. इंक ब्लॉगिंग की.

७७.अपनी टिप्पणी में अपना यू आर एल लिख छोड़ा ताकि लोग क्लिक करके आयें.

७८. टिप्पणी में वर्तनी दोष सुधारने के लिए फिर से टिप्पणी की.

७९. आपके नाम से कोई और टिप्पणी कर गया.

८०. आपके नाम से कोई और टिप्पणी कर गया और आप इस पर पोस्ट लिखने की बजाय हर तरफ स्पष्टीकरण देते घूमे.

८१. अपनी प्रोफाईल में अपनी जगह दूसरे की तस्वीर चैंप दी.

८२. अपनी हर पोस्ट के शीर्षक के साथ डेश लगाकर अपना नाम लिखा.

८३. अपनी पोस्ट में अपना ही मजाक उड़ाया.
(इसी पोस्ट में उडा रहे हैं..)

८४. ’तू मेरी पीठ खुजा, मैं तेरी’ को ब्रह्म वाक्य मान कर ब्लॉगिंग की.
(राज को राज रहने दो..;))

८५. एड सेन्स लगाकर हिन्दी ब्लॉग पर कमा लेने का भ्रम पाला.

८६. आये दिन एड सेन्स खाता चैक किया कि कितने पैसे जमा हो गये.

८७. एड सेन्स खाते का बैलेन्स जीरो होने के बावजूद भी एड सेन्स के हिन्दी में बन्द होने पर उदास हुए.

८८. नम्बर ८७ के उदासी के आलम में पोस्ट लिखी.

८९. ब्लॉग पर स्टेट काऊन्टर लगाया.

९०. दिन में तीन बार स्टेट काऊन्टर पर आवा जाही चेक की.

९२. शतकीय पोस्ट की सूचना पोस्ट लिखी.

९३. स्टेट काऊन्टर के १०००० या २०००० पार करने की सूचना पोस्ट लिखी.

९४. स्टेट काऊन्टर को मेन्यूलि बढ़ा कर लगाया.

९५. अपने ब्लॉग पर आवाजाही का ग्राफ बना कर पोस्ट कर गौरवान्वित महसूस किया.

९६. पत्नि का ब्लॉग बनवाया.
(NOT APPLICABLE FOR ME.. ;))

९७. पत्नि के नाम से खुद ही पोस्ट लिख कर डाल दी.
(NOT APPLICABLE FOR ME.. ;))

९८. अपनी हर पोस्ट पर पत्नि का और उसकी हर पोस्ट पर अपना कमेंट डाला.
(NOT APPLICABLE FOR ME.. ;))

९९. अपना ब्लॉग डिलिट किया.
(लगता है इसे ही करना होगा.. :))

वाह.. मेरे तो ५८ अंक आये इसमें..

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और ये रहा अमित गुप्ता जी कि लिस्ट..
1. अपना ब्लॉग आरंभ किया
2. तारों की छांव में नींद ली
3. संगीत बैन्ड में कोई वाद्य यंत्र बजाया
4. अमेरिका के हवाई द्वीपों की सैर करी
5. उल्का वर्षा देखी
6. औकात से अधिक दान दिया
7. डिज़नीलैन्ड की सैर करी
(गाँव के मेले वाली.. :D)
8. पर्वत पर चढ़ाई करी
9. प्रेयिंग मैन्टिस (praying mantis) कीड़े को हाथ में पकड़ा
10. सोलो गाना गाया
(डेली गाते हैं जी.. नहाते समय.. ;))
11. बंजी जंप करी
12. पेरिस गए
13. समुद्र में बिजली का तूफ़ान देखा
14. कोई कला शुरुआत से अपने आप सीखी
15. किसी बच्चे को गोद (adopt) लिया
16. फूड प्वॉयज़निंग झेली
17. कुतुब मीनार को देखा
18. अपने लिए सब्ज़ी उगाई
19. फ्रांस में मोनालिसा देखी
20. रात के सफ़र में ट्रेन में नींद ली
21. तकिए द्वारा लड़ाई की
22. सड़क पर किसी अंजान व्यक्ति से लिफ़्ट ली
23. स्वस्थ होते हुए भी ऑफिस से बीमारी के लिए छुट्टी ली
(यही तो राम बाण है.. :))
24. बर्फ़ का किला बनाया
25. मेमने को गोद में उठाया
26. बिना किसी वस्त्र के नग्न ही पानी में उतरे (तरण ताल, नदी, तालाब, समुद्र अथवा बाथ टब इत्यादि में)
27. मैराथन रेस में दौड़ लगाई
28. वेनिस में गोन्डोला (एक तरह की नाव) में सवारी करी
29. पूर्ण ग्रहण देखा
30. सूर्योदय अथवा सूर्यास्त देखा
31. होम रन मारा (बेसबॉल में)
32. समुद्र पर्यटन (cruise) पर गए
33. नियाग्रा फॉल्स स्वयं देखा
34. पूर्वजों की जन्मभूमि देखने गए
35. किसी कबीले के रहन सहन को नज़दीक से देखा
36. अपने आप एक नई भाषा स्वयं सीखी
(कम्प्युटर भाषा सीखी है जी ;))
37. इतना धन अर्जित किया कि पूर्णतया संतुष्ट हुए
(ये तो कभी न होगा.. :()
38. पिसा की झुकती मीनार (Leaning Tower) देखी
39. रॉक क्लाइम्बिंग करी
(छोटा वाला किया ;))
40. माइकलेन्जलो द्वारा कृत पुरातन इज़राइल के राजा डेविड की मूरत देखी
41. कैरीओकी (karaoke) गाया
(और इस कारण मम्मी से डांट भी खूब खाया)
42. वायोमिंग के येलोस्टोन नेशनल पार्क में मौजूद ओल्ड फेथफुल गीज़र को भभक कर उठते देखा
43. किसी अंजान को रेस्तरां में खाना खिलाया
44. अफ़्रीका गए
45. चांदनी रात में समुद्र तट पर सैर करी
46. एम्बुलेन्स में ले जाया गया
47. अपनी तस्वीर बनवाई (फोटो नहीं)
48. गहरे समुद्र में मछली पकड़ने गए
49. वैटिकन में सिस्टीन चेपल देखा
50. पेरिस में ऐफिल टॉवर के शीर्ष से नज़ारा किया
51. स्कूबा डाईविंग अथवा स्नॉर्कलिंग करी
52. बरसात में चुंबन लिया/दिया
(ये हम ना बताएँगे :P)
53. मिट्टी में खेले
54. ड्राईव-इन सिनेमा देखा
55. किसी फिल्म में नज़र आए
56. चीन की बड़ी दीवार देखी
57. अपना व्यवसाय आरंभ किया
58. मार्शल आर्ट की क्लास में भाग लिया
59. रूस गए
60. लंगर/भंडारे में लोगों को खाना परोसा
61. ब्वॉय स्कॉऊट पॉपकार्न अथवा गर्ल स्कॉऊट कुकीज़ बेची
62. समुद्र में व्हेल देखने गए
63. खामखा बिना वजह किसी ने फूल दिए
64. रक्त दान किया
65. स्काई डाईविंग करी
66. नाज़ी कॉन्सनट्रेशन कैम्प देखा
67. खुद का दिया बैंक चैक बाऊंस हुआ
68. हैलीकॉप्टर में सवारी करी
69. बचपन के किसी मनपसंद खिलौने को बचा के रखा
70. राज घाट पर गांधी समाधि देखी
71. कैवियार (मछली के अंडों का अचार) खाया
72. रजाई का कवर सिला
73. चांदनी चौक गए
74. घने जंगल में सैर की
75. नौकरी से निकाले गए
76. लंदन के बकिंघम महल में पहरेदारों की बदली देखी
77. हड्डी टूटी
(अजी ऐसी टूटी कि हिंदी ब्लौगजगत में सभी को पता चला, अभी भी पट्टी बांध कर पोस्ट लिख रहे हैं..)
78. तेज़ रफ़्तार मोटरसाइकल की सवारी करी
79. अमेरिका में ग्रैन्ड कैनयन देखी
80. अपनी किताब छपवाई
81. वैटिकन गए
82. नई नवेली गाड़ी खरीदी
83. जेरूसलम की सैर करी
84. अखबार में फोटो छपी
85. नव वर्ष की पूर्व संध्या की मध्यरात्रि किसी अंजान का चुंबन लिया
86. राष्ट्रपति भवन की सैर करी
87. किसी जानवर का शिकार कर खाया
88. चिकन पॉक्स झेला
89. किसी की जान बचाई
90. जज अथवा जूरी बन निर्णय सुनाया (किसी प्रतियोगिता में या न्यायालय में)
91. किसी प्रसिद्ध व्यक्ति से मुलाकात करी
92. बुक क्लब की सदस्यता ली
93. किसी अज़ीज़ को खोया
94. शिशु को जन्म दिया
(इसके लिए अगला जन्म लेना होगा ;))
95. जॉन वेन की फिल्म “द अलामो” देखी
96. अमेरिका के ग्रेट सॉल्ट लेक में तैराकी करी
97. किसी कानूनी मुकदमे में शरीक हुए/रहे
98. सेल फोन के मालिक हैं/रहे
99. मधुमक्खी ने डंक मारा

इसमे बस ४४.. :(