ना किसी दराज में रखते सूखे गुलाब छुपा कर..
ना बटुवे में कोई तस्वीर ही होती..
होती एक ऐसी दुनिया जहां,
जीने की तस्वीर ही अलग होती..
काश हम इश्क ही ना करते किसी से..
कहीं अचानक टकरा जाना सड़क पर
और हफ़्तों तक न दिखना का,
मलाल भी ना होता..
कभी यूं ही निगाहें मिल जाने पर,
उनका चेहरा लाल भी ना होता..
काश हम इश्क ही ना करते किसी से..
अपने हिस्से का चुंबन लेकर
उनके वापस दौड़ जाने पर
कोई गम भी ना होता..
इस जहान में उनका साथ छूटने पर,
आंखें नम भी ना होता..
काश हम इश्क ही ना करते किसी से..
कल मैं हिन्द-युग्म के ब्लौग पर गया और वहां एक कविता पढी.. उसी पर कमेंट लिखते समय ये कविता मेरी झोली से गिर गई जिसे मैं यहां डाल रहा हूं..
Keywords : Poem By Prashant, Love
aisa lagta hai aapka koi purana taar hila gayi hai ye kavita.....ishq karna us umr ka ek jaroori kaam hota hai..isliye us par pachtaye nahi.....
ReplyDeleteआप उन लोगों की तरह काबिल हैं जो बिना इश्क किए,सिर्फ दो-चार बार आह-आह सुनकर इतनी अच्छी कविता लिख लेते हैं। बाकी चीजों के बारे में तो नहीं जानता लेकिन कविता के मामले में अनुभूत सत्य काम आता है।..दर्द से कुछ रचिए और रॉयल्टी कमाइए, वाकई में अगर दर्द है तो उसे पूंजी मानिए।
ReplyDeleteकर लिया क्या? रीयली?
ReplyDeleteअरे गुरु, करता कौन है... अब हो जाता है तो क्या करोगे.... :-) और न करते तो इतनी मस्त कविता कैसे लिखते :D
ReplyDeleteइश्क में तो नुकसान ही नुकसान हैं, नींद उड जाती है...
ReplyDeleteइश्क न करो और लम्बी तान कर सो जाओ...
कल अलमारी मैं बैठ कर पढने की कोशिश की थी, लुढकते लुढकते बचे :-)
और हाँ गाईड फ़िल्म के जिस गीत को आपकी आवाज में आपके दोस्त ने रेकार्ड किया था उसका भी तकाजा कर रहे हैं आपसे, जल्दी पेश कीजिये ।
PD भाई अच्छी लगी आप की कविता,बहुत सुन्दर लिखा हे..
ReplyDeleteइश्क कया बला हे मुझे नही मालुम...
मिले हैं यूँ मुझको मेरे ख़्वाब की ताबीर के टुकड़े
मुझे भेजे हैं उसने मेरी ही तस्वीर के टुकड़े
कहाँ चोट खाई बबुआ?
ReplyDeleteइश्क को क्यों कोसते हैं दोस उसका नही होता.लोग अपनी नाकामी उसपर लाद देतें हैं.
ReplyDelete"वैसे भी तुमने इश्क का नाम सुना है ,हमने इश्क किया है.गुड से मीठा इश्क-इश्क इमली से खट्टा इश्क.."