अंतिम दिन, जिस दिन मैं वापस आ रहा था, भैया कि तबियत खराब हो गई थी.. थोड़ा बुखार सा आ रहा था उन्हें.. सो मुझे विदा करने के लिये पापाजी ही आये थे.. मैं वापसी के समय अपनी यात्रा ट्रेन से पूरी करने का सोचा था.. मेरी द्वितीय श्रेणी में आरक्षण था.. जब पापाजी से वहां स्टेशन पर बैठकर बातें कर रहा था तो पता नहीं क्यों ऐसा लग रहा था जैसे कुछ छूट गया हो.. बहुत दिनों के बाद ऐसे ख्याल घर छोड़ते समय आ रहे थे.. नहीं तो मुझे ऐसा लगने लगा था जैसे मेरी सारी भावुकता ही इस दुनिया के भाग-दौड़ में खत्म होती जा रही है.. इस बार कि यात्रा में जो भी ढंग से पापाजी से बातें किया वो पटना जंक्शन पर बैठ कर ही किया.. वहीं पर मेरा मित्र मनोज भी आया था मुझे छोड़ने के लिये.. मैंने काफी दिनों बाद इतनी लंबी यात्रा ट्रेन से कर रहा था, नहीं तो अपनी छुट्टी बचाने के चक्कर में ट्रेन का मजा ही खोता जा रहा था और हवाई यात्रा ही ज्यादा होती थी.... इससे पहले जब भी ऐसी यात्रा करता था हमेशा कोई मित्र साथ में होता था.. मगर इस बार मैं अकेला था.. पहले जब भी जाता तब सेकेंड क्लास स्लीपर में होता था, मगर इस बार मैं सेकेंड क्लास ए.सी. में था.. मुझे एक एक करके सारे अंतर पता चल रहे थे जो मैं पहले बस दूसरों के अनुभव से ही जान पाता था.. स्लीपर में जहां गरमी और पसीने कि बदबू होती थी वहीं यहां ए.सी. का सूकून था.. मगर जहां स्लीपर में एक अपनापन होता था वहीं यहां आत्मकेन्द्रित लोग थे जो ऐसा लग रहा था जैसे अपने ही अहम में सिमटे जा रहें हों..
खैर ऐसे ही करते-करते 2 दिन बीत गये और मेरी ट्रेन चेन्नई में आकर लग गई.. बीच में कई बार ट्रेन से उतरा.. कुछ किताबें खरीदी, जिसमें हंस और कुछ कामिक्स थी.. हंस का अंक बहुत दिनों बाद मेरे हाथ में था और उसमें अमिताभ बच्चन और राजेन्द्र यादव ही छाये हुये लगे.. खैर जो भी हुआ उस पर मैं अपनी राय नहीं रखना चाहता.. बस ऐसे ही मेरी इन छुट्टीयों का सफर भी खत्म हो गया.. :(
आप कुछ चित्र देंखे.. और अपनी राय दें.. :)
किसी हिंदी सिनेमा की तरह अंत में एक फ़ैमिली फोटोग्राफ.. :D
भैया-भाभी(फोटो अच्छी आयी है ना?) :)
टेलीविजन देखने में सभी मशगूल.. इसलिये मुझे ये पसंद नहीं है.. :(
टेलीविजन दर्शन का एक और दृश्य..
मेरा कमरा.. :)
यात्रा विवरण और परिवार की फोटो अच्छी लगी।
ReplyDeleteममता जी से सहमत!
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा आप के परिवार से मिल कर,सब चित्र खुब सुरत हे,बाकी आप की यात्रा का विवरण अच्छा लगा, अगली बार हम भी एक यात्रा रेल गाडी से करे गे,अभी तो ३०,३५ साल हो गये भारतिया रेल मे बेठे,फ़िर बताये गे अप को अपनी रेल यात्रा.बस यु ही चहचहाते रहो अच्छा लगता हे ,आप का लेख पढ कर हमे अपने दिन याद आते हे,
ReplyDeleteचित्र परिचय अच्छा लगा। ट्रेन के क्लास का फर्क भी संक्षेप में खूब चीन्हा है। चाहते तो इस फर्क पर ही पूरी पोस्ट हो सकती थी।
ReplyDeleteअपने परिवार से तस्वीरों के माध्यम से मिलवाने का आभार.
ReplyDeleteकुछ भी पढ़ा नहीं जा रहा, पता नहीं क्या कारण है, फांट करप्ट क्यों है, फायरफाक्स में।
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