Thursday, February 28, 2008

क्या मैं बदल रहा हूं?

मुझे ऐसा लगता है की मुझमें बदलाव आ गया है.. और ये बदलाव अच्छा तो नहीं है.. मुझे कुछ पता नहीं, पर कुछ लोगों ने मुझे अभी हाल के दिनों में मुझे ऐसा कुछ कहा है जिससे मैं ये सोचने पर मजबूर हो गया हूं कि क्या मैं सच में बदल गया हूं?

कल जब मैं काफी पीने के लिये काफी मशीन की तरफ बढ रहा था तो मेरे कार्यालय काम करने वाले मेरे एक मित्र ने मुझे अकेला देख कर मुझे टोका, "What Prashant, everytime you are coming alone? I saw the same thing at lunch time also. Always alone!! Why it is like so?"

मैंने उससे कुछ कहा नहीं, बस एक बार मुस्कुरा भर दिया.. मगर उसकी इस बात ने मुझे बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया.. हां ये बात तो सच है की पहले जहां मैं कहीं भी राह चलते मित्र बना लिया करता था वहीं आज-कल अपने आस-पास अपने कार्यालय में देखता हूं की कोई नहीं है(शिवेन्द्र को छोड़ दें, उसकी तो मजबूरी है साथ रहने की).. और जहां तक घर की और पूराने दोस्तों की बात है तो वे सभी भी मजबूर हैं, इस रिश्ते को मेरे साथ ढोने की अलावा उनके पास कोई चारा नहीं है.. वे सब हैं ही इतने अच्छे जो मुझ जैसे अख्खड़ आदमी का साथ भी निभाना जानते हैं..

मुझे नहीं पता की ऐसा सच में है या नहीं.. अब इसका उत्तर तो वही दे सकते हैं जो मेरे करीबी हैं और हमेशा मेरा ब्लौग पढकर किनारे से बिना कोई कमेंट किये ही निकल लेते हैं.. अगर कमेंट नहीं तो फोन पर या मेल से मुझे ये बात जरूर बताईयेगा..

9 comments:

  1. मुझे लगता है कि यह मात्र टेम्परेरी फेज है जो सभी के साथ आता है. समय के साथ और थोड़ी सी सजगता से इससे उबर जायेंगे. बहुत शुभकामनायें.

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  2. यार इस उमर में ही नेगेटिव हो रहे हो आगे क्या करोगे? अपनी सोच का दायरा बढाओ और बाहें फ़ैलाकर देखो दुनिया तुम्हारा स्वागत कर रही है.

    सिर्फ़ अच्छा सोचो और अपने लक्ष्य को देखो, यारी-दोस्ती कुछ समय तक ही अच्छी लगती है क्योंकि आज के जमाने में हर कोई अपने लक्ष्य के पीछे भाग रहा है.

    रही बात अपने बदलने की तो पी.डी. भाई आजकल शायद आपका ध्यान कहीं और है क्योंकि आप जो भी निर्णय ले रहे हैं वो क्षणिक भर के हैं,उनमें कहीं भी ठहराव यां स्थिरता नहीं है

    अपने कार्यों और चिंताओं एवं अतीत को देखना बंद करोगे तो बेहतर होगा,क्योंकि अतीत कभी किसी का पीछा नहीं छोड़ते. be Positive

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  3. बस मस्ती से रहा करें....just be at ease with yourself ....जैसा कि मदान जी( मदान जी, आप ही हैं ना जो थोड़े दिन पहले इलाहाबाद घूम कर आये हैं) ...और उड़न-तश्तरी ने बहुत ही सुंदर शब्दों में लिख दिया है। उन के लिखने के बाद अब कुछ भी और लिखने को बचा ही नहीं है। और हां, Always remember in life.....Everything is OK.
    PS...since presently you are posted in a city which is known for its strong belief in ancient relaxation techniques....why dont you learn and regularly practice meditation. It has a tremendous relaxing effect on our body and mind...i'm just saying from my practical experience. I would be somewhat disappointed if you would say that you dont get time for such things !! Good luck !!

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  4. प्रशान्त भाई आपकॊ कभी-कभी पडता था मगर कमेन्ट कभी नही किया पर आज आप ने जो कुछ लिखा है मुझे ऐसा लगा जैसा आप के साथ हो
    रहा है वैसा हमारे साथ भी होता है.आप का परिचय भी पडा मै भी सेम आप ही कि तरहा हु.इस लिये अपने आप को ही बद्ला हुआ या अकेला सा
    मह्सुस न करे.आप जैसे और भी है जैसा की मै खुद.शायद घर से दूर है इस लिये

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  5. कभी-कभी ऐसा लगता जरूर है लेकिन खुद को बदलना आसान नहीं होता।

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  6. बंधु, होता है ऐसा कभी कभी हर किसी के साथ, इस पर बहुत चिन्ता न करें!!

    आपने नीचे अपने बारे में जो लिख रखा है वह पढ़ा मैने, अगर आप ऑर्कुट पर हों तो मेरा प्रोफाईल पढ़िएगा!!

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  7. प्रशांत आप तो इतने निराशावादी नही थे । वैसे शायद नए काम (प्रोजेक्ट) की वजह से ऐसा हो रहा हो।

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  8. चलो; जिन्दगी में हर रंग देखने चाहियें।

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  9. ab tum kaam hi ayse karate ho...to koi kya kare?? batao...!!

    arey arey...ghabaraao mat bandhu...mazak kar raha hun..

    magar, dost, tumhare blog ke contents ko padhna acchaa lagata hai...magar..har baar pura text select karne se (taaki better contrast ki vajah se thoda text padhane me aaye) kabhi kabhi ek aadh paragraph chhut bhi jaata hai...aur mera mouse bhi kharab ho chala hai....fir kabhi kabhi CTRL+A se bhi kaam chalana padta hai.

    (btw - aysa sirf mere saath hota hai kya??)

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