ये बिना चित्र की कथा है
कल मैंने एक चेहरा देखा.. बहुत डरा हुआ.. मगर उसे देखकर मुझे उसपर बहुत प्यार आया.. शायद किसी छोटे शहर में होता तो थोड़ा दुलार भी कर देता.. अब बड़े शहरों में रहने की कीमत तो हम सभी किस्तों में जीवन भर चुकाते ही हैं सो चलो एक कीमत और सही..
कल घर लौटते समय बस में एक बच्चे को अपने पापा के गोद में देखा जो पुरूषों के बैठने वाले जगह में बैठे हुये थे और उसकी मां महिला वाली सीट पर थी.. जब उनके उतरने का समय हुआ तब पहले वो अपने पापा के साथ उतर गया.. मगर उसकी नजर बस के भीतर से उतरते अपनी मां पर ही था.. उसे लग रहा था की वो नहीं उतर पायेगी.. और जैसे ही उसके मन में ये ख्याल आया वैसे ही उसका रोना शुरू हो गया..
उसके पापा उसे समझाये जा रहें हैं, और वो रोये जा रहा है, और सारे लोग जो भी वहां थे वो उस बच्चे की मासूमियत पर मुस्कुराये जा रहे हैं.. मां के उतरने पर भी वो बड़ी कठिनाई से चुप हुआ.. और मुझे एक बहुत ही प्यारा सा और अच्छा सा अनुभव दे गया.. :)
मैंने शुरू में लिखा है ये बिना चित्र की कथा है.. इसका कारण ये है की लोग यहां ये समझ कर ना आये की कुछ मजेदार कार्टून यहां होगा जिसे देखकर बरबस ही मुस्कान आ जाये.. :)
माँ और बच्चा अपने आप में बहुत आकर्षक विषय है।
ReplyDeleteप्रिय प्रशांतजी, ब्लॉगवाणी इसे इस तरह से आगे बढ़ा सकता है कि आज भी लोगों के व्यक्तिगत ब्लॉग पाठकों तक उतनी आसानी से नहीं पहुंचते। ब्लॉगवाणी के माध्यम से ही आज ये संभव हो सका है कि इतनी बड़ी संख्या में ब्लॉग को पाठक मिलते हैं। इसके अलावा किसी बहस को आगे बढ़ाने में एक साथ कई हिस्से काम करते हैं। मशीन के छोटे-बड़े पुर्जों की तरह सबका अपना महत्व होता है। लेकिन बहुत सी चीजे ऐसी होती है जिनका महत्व ज्यादा होता है। कुछ चीजों का कम होता है। साइकल के एक पहिए में नट न हो तो चल सकता है एक पहिया ही न हो तो कैसे साइकल चलेगी। ब्लॉगवाणी की भूमिका पहिए के जैसी है। इसलिए वो इस बहस को आगे बढ़ाने में काफी अहम भूमिका निभा सकता है। बाक़ी आप ने सही कहा कि अंतत: आप और हम ही इस बहस को आगे बढ़ाएंगे।
ReplyDeleteबच्चे की एक मात्र संपत्ति मां ही तो है जिस के खोने का उसे सब से बड़ा भय होता है।
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