जाने क्यों चलते-चलते राह रुकी सी क्यों लगती है,
हर राह तुम्हारी गली सी क्यों लगती है?
तुम्हारे दिये उस सूखे गुलाब की बची खुश्बू,
मेरे हिस्से की बची हुई प्रेम की क्यों लगती है?
मुझे तुम याद नहीं आती हो ऐसा मैं सोचता हूं,
पर पलकों पर हमेशा ये नमी सी क्यों लगती है?
सोता कम हूं क्योंकि सपनों से डरता हूं,
पर इन आखों में टूटे सपनों की चुभन सी क्यों लगती है?
पता है मुझे की मेरे जीने-मरने से तुम्हें फर्क नहीं परता,
मगर मुझे तुम्हारे आहट का इंतजार सा क्यों है?
मुझे पता है सारे प्रश्नों के उत्तर,
मगर मेरे हर उत्तर में कुछ कमी सी क्यों है?
वाह!
ReplyDeleteअति सुंदर!
अच्छी कविता.