अगर आप किसी बच्चे से कहेंगे की, "अभी तुम बच्चे हो.."
तो आपको यकीनन यही जवाब मिलेगा, "नहीं मैं बच्चा नहीं हूं.."
यही अगर किसी बड़े को कहियेगा तो वो शालीनता से मुस्कुरा भर देगा..
उसे किसी अच्छे काम करने को कहियेगा, "ये काम करो तुम्हारे लिये अच्छा रहेगा.."
तो उसका जवाब यही होगा, "नहीं मैं ये काम नहीं करूंगा.." और मन ही मन सोचेगा की इनके कहने पर तो मैं ये नहीं करने वाला हूं, मगर अंत में वो वही काम करेगा..
अगर कहीं कुछ बच्चे खेल रहें हों और अगर आपको भी खेलने के लिये आमंत्रित करें तो आपका मन भी बच्चों के साथ खेलने के लिये लालायित जरूर होगा.. और अगर उन बच्चों को आपका खेल पसंद नहीं आया तो वो आपको बिना बताये बस ऐसे ही लतिया कर बाहर कर देंगे(जैसा की यसवंत जी के साथ हुआ है)..
मैं जब भी चोखेरबाली को देखता हूं तो मुझे ऐसा ही कुछ लगता है, पर उसी चोखेरबाली के सदस्य जब अपने ब्लौग पर कुछ भी लिखते हैं तो परिपक्वता से लिखते हैं.. और मैं उनमें से अधिकांश सदस्य का ब्लौग निरंतर पढता भी हूं.. इनमें से अधिकांश सदस्य मुझसे उम्र में बहुत बड़ी हैं और कुछ तो मेरी मां-चाची के भी उम्र की हो सकती हैं, फिर भी मुझे उनके बचपने से भड़ी हरकत को बचपना कहने में कोई संकोच नहीं है..
कुछ दिनों से अपनी व्यस्तता के कारण मैं चोखेरबाली और उससे जुड़े बहस को मूकदर्शक बन कर देखता रहा था और चाह कर भी उसमें हिस्सा नहीं ले पाया.. अब सोचता हूं की जो हुआ अच्छा ही हुआ..
यशवंत को इस तरह अनसेरेमोनियली बाहर करना निश्चित ही चोखेरबाली का बचपना है। वे शायद अभी अपने लक्ष्यों को तय करने की प्रक्रिया भर में हैं पर हिट एंड ट्रायल उसकी सही पद्धति हो सकती है इसमें मुझे शक है।
ReplyDeleteप्रिय प्रशांत भाई, अब मित्र तो मित्र ही हैं। क्या कह सकते हैं। हर तरह के मित्र होते हैं। आप भी मेरे अंतर्जाल मित्र ही हैं। पहले भी आपकी मूल्यवान टिप्पणियां आती रही हैं। आप ने शायद मन पर बात ले ली। लेकिन ये उनका काम है। दिन भर ख़बरों की तलाश में नेट की खाक छानते रहते हैं लिहाजा अच्छी-बुरी हर चीज़ से पाला पड़ता रहता है। उन्होंने तो जानकारी ही दी थी। जैसे कभी आपने अपने ब्लॉग के माध्यम से मस्त मस्त माल के एडमिशन और हॉस्टल की मस्त पर्न मूवी भरी रातों की जानकारी दी थी। जानकारियां चारो तरफ से आनी चाहिए। दिल और दिमाग का दरवाजा इस मामले में हमेशा खुला होना चाहिए। पर सबकी सोच है, स्वतंत्र विचार हैं। मेरे ख्याल से हर व्यक्ति अपनी सोच में सही ही होता है। सबका अपना नज़रिया है। इसलिए गुस्से की कोई बात नहीं है। आप ने अपनी परंपरा के विपरीत भाषा लिखी इसका मुझे कतई बुरा नहीं लगा। बुरा सिर्फ यही लगा की मेरी वजह से आपको अपनी शैली के विपरीत लिखना पड़ा। क्षमा!
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