ब्लौग का नशा भी जब चढता है तो सर चढ कर बोलता है ये शत-प्रतिशत सही है.. मैं पिछले कुछ दिनों से बिलकुल भी समय नहीं निकाल पा रहा हूं किसी भी चीज के लिये.. चिट्ठों की तो बात ही छोड़ दिजीये.. पर ब्लौग का नशा जब चढ ही चुका है तो अब क्या किया जा सकता है? लिखना तो परेगा ही, सो लिख रहा हूं.. :)
कुछ बातें जो छूट गई हैं उसे एक साथ संक्षेप में ही लिख देता हूं तभी तो एक साथ 3-3 पोस्ट बन रही है..
भैया की शादी
कल यानी 11 फरवरी को मेरे भैया की शादी थी.. कहने को तो वो मेरे चचेरे भैया हैं पर मैं उनके नाम के आगे चचेरा लगाना उचित नहीं समझता हूं.. क्योंकि बचपन में वो हमलोगों के साथ ही रहते थे और मैं 7-8 साल तक समझता रहा की वो मेरे अपने भाई हैं, जब तक की मुझे बताया नहीं गया था.. भैया को हम लोग प्यार से बाउ भैया कहते हैं पर उनका नाम प्रभाष रंजन है.. अभी मुंबई में भारतीय जल सेवा में कार्यरत हैं..
कल उनकी शादी थी पर समय, छुट्टी और अर्थ, तीनों का कुछ ऐसा संगम बना की मैं नहीं जा सका.. शायद इसका अफसोस हमेशा ही रहेगा.. अभी तो फिलहाल आप लोग उनके विवाहित जीवन के लिये दुवाऐं देते जाईये..
मेरे पापा दूरदर्शन पर
कुछ दिन पहले मेरे पापाजी का एक प्रजेंटेशन दूरदर्शन पर आया था जिसका विषय था स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना.. मुझे वो देखने का मन तो बहुत था पर क्या करूं मेरे पास टेलीविशन नहीं है.. सही कहूं तो उसकी जरूरत तो महसूस होती है पर मुझे उससे थोड़ी चिढ भी है.. यही एक बहुत बड़ी वजह है मेरे पास उसका नहीं होना..
मेरे पापाजी ज्वाईंट सेक्रेटरी के पद पर ग्रामीण विकास विभाग, बिहार में कार्यरत हैं, और वो योजना भी इसी विभाग के अंदर में आता है..
अब मैं तो उसे नहीं देख पाया हूं, देखिये कब घर जाता हूं और मेरे हाथ वो विडीयो लगता है और मैं उसे देखता हूं.. फिलहाल के लिये इसे यहीं खत्म करता हूं.. :)
मेरी ट्रेनिंग
जैसा की मेरे पिछले पोस्ट में मैंने लिखा था की मुझे नया प्रोजेक्ट मिला है.. सो यह भी तय है की उस पर काम करने की ट्रेनिंग भी मिलनी चाहिये.. सो मैं आजकल ट्रेनिंग के मजे उठा रहा हूं..
टामिंग??
अब ये तो मत ही पूछिये.. सुबह 7-7:30 तक घर से निकलता हूं और रात में जब घर पहूंचता हूं तो हालत इतनी खराब रहती है की बस बिस्तर ही दिखाई देता है.. मेरी एक मित्र मेरे घर के पास वाले ही एक हास्पिटल में वायरल फीवर के कारण एडमिट थी, पर मैं कल उसे देखने नहीं गया.. कुछ ज्यादा ही थका महसूस कर रहा था.. जाने का मन तो बहुत था, पर हिम्मत बाकी नहीं बची थी.. मुझे तो भई बहुत डर लग रहा है कि वो बुरा ना मान जाये और सबसे बड़ी परेशानी ये है की उसे बुरा लगने पर भी वो कुछ नहीं बोलेगी.. नहीं-नहीं ऐसी बात नहीं है की हमारी दोस्ती औपचारिक है.. बात ये है की उसे अगर कुछ अच्छा लगता है फिर भी वो कुछ नहीं बोलती है.. क्या करें, उसका तो स्वभाव ही यही है.. वैसे एक मजेदार बात बताता चलूं.. उसका नाम प्रियदर्शीनी है और मेरा अंतिम नाम प्रियदर्शी है.. सो कालेज के दिनों में हम दोनों का ही नाम छोटा करके पीडी रख दिया गया.. और जब हमारे बीच अच्छी दोस्ती हो गई और हमदोनों साथ दिखने लग गये तो कोई पीछे से पीडी पुकारता था और हम दोनों ही मुड़कर देखते थे की किसे बुलाया जा रहा है.. :D
हां तो ट्रेनिंग मुझे मिल रही है ProvideX नाम के पैकेज की.. पता नहीं लोग ऐसे पैकेज क्यों प्रयोग में लाते हैं.. खैर मुझे तो अच्छा लग रहा है क्योंकि ट्रेनिंग देने वाले कोई और नहीं इस पैकेज को बानाने वाली टीम के मुख्य आर्किटेक्चर ही हमें ट्रेनिंग दे रहे हैं.. वो कनाडा से आये हैं और चेन्नई की गर्मी उन्हें बहुत भा रही है.. उनका नाम फ्रेड है..
अब आखिरी बात डा.प्रवीण चोपड़ा जी के लिये.. डा.साहब यदि आप ये पढ रहें हैं तो अपना ई-पता मुझे दिजीये.. मैं आपको उन सारे प्रश्नों का उत्तर देता हूं.. मेरा इ-पता है - prashant7aug@gmail.com..
तीन चर्चाओं को एक में ही लिया समेट बहुत खूब
ReplyDeleteबताते जाओ लिखते जाओ हटेगी इससे मन की ऊब
वाह, मिनी पोस्टें लिखने में बाजी मार रहे हो हमसे!
ReplyDeleteबहुतों को आपसे प्रेरणा लेने की आवश्यक्ता है इस वक्त. :)
ReplyDeleteलोग एक बात की तीन पोस्ट बनाने में जुटे हैं, हा हा!!!
साधुवाद!!!
ye sahi hai yaar ek saath 3 post. Chalo achha hai kuch naya seekho, seekh jao to ek post likh dena jara hum bhi samajh le kya kya hai.
ReplyDeleteHi!! Prashant
ReplyDeleteJust now I seen your blog....it is quiet appreciable, u r doing a great job..carry on.As a suggestion, why not u try abt all those days i.e. struggling period days at Delhi.
Moreover, congrats to Uncle for being a part of this project and makes the project successful which was telecast nationwide.