Tuesday, January 06, 2009

जाने क्यों हर शय कुछ याद दिला जाती है

पिछले कुछ दिनों से नींद कुछ कम ही आ रही है.. कल रात भी देर से नींद आयी और आज सुबह जल्दी खुल भी गयी.. मगर बिस्तर छोड़कर नहीं उठा.. बिस्तर पर ही लेटा रहा चादर को आंखों पर खींच कर औंधा ही पड़ा रहा.. घर की याद हो आयी.. सोचने लगा कि कैसे जाड़े के मौसम में सुबह-सुबह पापा अपने ठंढ़े हाथों को मेरे गालों से सटा कर मेरी नींद तोड़ते थे और मैं भी वैसे ही नखरे मारता हुआ रजाई में और अंदर घुस जाता था.. यहां ना वो ठंढ़ है, ना पापा और ना ही वो ठंढ़े हाथों का प्यार भड़ा स्पर्श..

नौ बजे सोकर उठा, चाय-कॉफी मैं साधारणतया नहीं पीता हूं मगर आज कुछ चाय जैसी कुछ चीज पीने की इच्छा हो रही थी.. पापा कि एक शिक्षा याद हो आयी जिसका पालन कभी नहीं किया.. वो कहते थे, "आलस्य मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु होता है.." मगर मैंने तो उस शत्रु के साथ दोस्ती गांठ ली है.. कुछ दिन पहले कॉफी लेकर आया था मगर बनाया बस एक बार ही.. आज भी पीने कि इच्छा होते हुये भी नहीं बनाया.. जब छोटा था तब चाय पीने की बात भी जुबान पर लाने से किसी पाप कि तरह होता था, मगर अब कभी घर जाता हूं तो बार-बार पूछा जाता है कि चाय पियोगे या नहीं? बार बार मना करने के बाद भी.. शायद अब पापा-मम्मी को कोई साथ देने वाला चाहिये होता है इसलिये.. थोड़ी देर घर में चहलकदमी करने के बाद एक सिगरेट जलाया.. तीन-चार कश मार कर आधे में ही फेंक दिया.. आज उसे पीने कि इच्छा भी नहीं हो रही थी..

थोड़ी देर कंप्यूटर पर किटर-पिटर करने के बाद तैयार होकर ऑफिस के लिये निकला.. याद आया कि जब घर में था तब कहीं बाहर जाने से पहले पापा-मम्मी का पैर छूकर, आशीर्वाद लेकर निकलता था.. एक रूटीन सा बन चुका था यह जिसका भैया अभी तक पालन कर रहे हैं पटना में.. होस्टल में था तो कमरे की मेज पर पापा-मम्मी की तस्वीर रखे हुआ था, और कालेज जाने से पहले उसी तस्वीर से आशीर्वाद लेकर कमरे से निकलता था.. यहां तो वो भी मैंने अपने ऑफिस के क्यूबिकल में लगा रखा है..

ऑफिस के लिये घर से निकलते ही सड़क को पार करते अपने ही उम्र के एक लड़के-लड़की को देखा.. मुझे उस लड़की कि याद हो आयी.. वो जब मेरे साथ होती थी तो सड़क पार करते समय कसकर मेरा हाथ पकर लेती थी, एक तरह से मेरी ओट में छुप सी जाती थी डरकर और सड़क पार करते ही अपनी झेंप छुपाने के लिये मुझसे लड़ने लगती.. "तुम्हें ठीक से सड़क पार करना भी नहीं आता.. वो कार.. वो ऑटो.. वो साईकिल.. वो बाईक.." और भी ना जाने क्या-क्या.. उसे सड़क पर चलती गाड़ियों से बहुत डर जो लगता था..

रास्ते में एक कालेज के सामने से गुजरते हुये कुछ लड़के आपस में चुहलबाजी करते हुये मिले.. अपने कालेज के दिन याद हो आये.. कैसे बिना बात के एक दूसरे कि टांग खिंचाई होती थी.. रात के दो बजे कैसे मैगी खाने कि लड़ाई होती थी.. कैसे दोस्तों कि खातिर प्रोफेसर तक से बिना आगा-पीछा सोचे बहस करते थे.. कभी किसी दोस्त को किसी नयी लड़की से बात करते देख कर ही हफ्तों तक खिंचाई होती थी, अब भले ही वो उस लड़की को कोई पता ही क्यों ना बता रहा हो.. किसी मित्र को उदास देखकर उसकी उदासी दूर करने को क्या-क्या जतन नहीं होता था.. किसी पेपर में खराब नंबर आने पर घरवालों से ज्यादा मानसिक सहयोग कैसे दोस्तों से मिलता था.. खैर, अब ये भी यादों का ही एक हिस्सा बना रहेगा..

ऑफिस पहूंच कर अपने सामानों को व्यस्त करने के बाद पापा-मम्मी कि तस्वीर देखी और याद आया कि बचपन में पापाजी के ऑफिस जाकर कितना खुश होते थे.. किसी राजकुमार कि भांति पूरे ऑफिस में घूमते थे.. पापाजी की मेज पर शुरू से ही मां सरस्वती कि एक तस्वीर होती है और पापाजी का तबादला जहां-जहां होता रहा वहां सबसे पहले पापाजी उस चित्र को ही स्थापित करते रहे हैं.. भगवान जैसी चीजों पर से आस्था खत्म होने के बाद मेरे लिये तो पापा-मम्मी कि यह तस्वीर ही हमेशा मेरे कार्यस्थल पर लगी रहेगी..

जाने यादों का यह कारवां आज कहां जाकर रूकने वाला है..

17 comments:

  1. यादों का सिलसिला चलता रहे... कभी-कभी लगता है कि वो वक्त आना सम्भव नहीं, फिर ये यादें ही तो सहारा हैं !

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  2. आगे देखो..पी.डी.
    अंतहीन खुला आसमाँ सामने बाँहें पसारे खड़ा है !अभी पीछे मुड़कर देखने की वय नहीं है, बालक !

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  3. जी हाँ| सबसे ज्यादा तो हमको आजकल रजाई याद आता है, कमबख्त यहाँ उसकी भी जरुरत नही है|

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  4. तबियत जब कभी घबराती है सुनसान रातों में,
    हम ऐसे में तेरी यादों की चादर तान लेते हैं |

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  5. यह सिर्फ याद भर नहीं है..
    आइए राही मासूम रज़ा का यह शे'र देखते है-

    रातें परदेस की सोचा था कटेंगी कैसे '
    हैं यहाँ भी वही तारे मेरे आँगन वाले.

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  6. अरे! दो दिन से कम्प्यूटर अस्पताल में था तो अपना भी यही हाल था। कल रात देर से सोए तब भी जल्दी उठ गए। शोभा को जगाने की इच्छा न हुई तो महिनों बाद उस के लिए चाय और अपने लिए काफी बना कर पी। सुबह उठ कर खुद बना कर पीने में खूब मजा आता है सारा आलस्य दुम दबा कर भागता दिखाई देता है। करके देखो।

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  7. badi tabiyat se likha hai aapne ye lekh bahot khub ukera hai kagaj pe aapne ... dhero badhai aapko...



    arsh

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  8. ham kitna bhi aage kyo na badh jaaye par ye yaaden to wakt bewakt aa hi jati hain...

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  9. यादें याद आती हैं बातें याद आती हैं, ये यादें किसी....

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  10. सुप्रभात दोस्त ! वर्तमान भी भूत बन जाने वाला है जी ! इसका भी आनन्द लो , मस्त रहो !

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  11. यादें...इस नाम की सुनीलदत ने एक पिक्चर बनाई थी...यादे कैसी भी हों ..जब भी आती हैं,,मन को बडा शुकुन दे जाती हैं...एक तरह से स्ट्रेस रिलीवर होती हैं.

    रामराम.

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  12. यूँ यादों में खोना अच्छा लगता है .

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  13. पीडी जी नमस्कार
    भूतकाल तो सुनहरा होता है, भविष्य अनिश्चित होता है. बस एक वर्तमान ही है जिसमे हमें जीना है. इसलिए वर्तमान को ही एन्जॉय करो. क्या पता कल को आप कहने लगें कि "जब कहीं जाता हूँ तो उस मुसाफिर की याद आती है"
    अजी ये तो कुदरत का नियम है.

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  14. acha raha. yado ka sath to hamesha bana rahega

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  15. अच्छा है यह यादों का सफर..

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  16. kaafi emotional tha...khaaskar road cross karne wali baat...mere saath aisa kuch experience hua tha ek baar,bas fark ye tha ki road paar karne mein darr hum rahe they :D

    college ki to aap koi bhi baat karte hai to usse bilkul jud jaate hai hum...apne aas paas yehi sab dekh rahe hai...bada senti sa feel hua...

    I think ye sab ehsaas karna kabhi kabhi zaroori hi hai :)

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