अंत में - "अजगर करे ना चाकरी, पंछी करे ना काम.. दास मलूका कह गए, सबके दाता राम.." अब अगर ऐसे में अजगर ठंढ के मौसम में सुसुप्तावस्था में चला जाये तो कुछ-कुछ ऐसा ही होगा कि एक तो करेला ऊपर से नीम चढा.. ;) |
पीडी सुसुप्तावस्था में
मैं आजकल सुसुप्तावस्था में हूँ.. पढता लगभग सभी को हूँ, मगर टिपियाता शायद ही किसी को.. लिखने को भी बहुत कुछ मशाला है, मगर लिखने कि इच्छा ही नहीं.. मन हर समय अलसाया सा लगता है.. देखिये कब इससे बाहर आता हूँ?
जागते रहो !
ReplyDeleteएना पा ? रूम्बो तूँगरिया ? एना आचे ?
ताऊ पेशरे..तन्निरे रंगा.. छींटे मारो ठंडे पानी के..और अजगर को ऊठाना बडा मुश्किल है. उसको तो भूख लगेगी तभी ऊठेगा.:)
ReplyDeleteभाई तुमहारी उम्र और ये संकेत..
ReplyDeleteकंही तुझे प्यार हुआ तो नहीं है?..:)
सब ठीक न?
गणतंत्र दिवस की शुभकामनाऐं..
भैया प्यार के चक्कर में न पड़ना वरना और हालत ख़राब हो जायेगी ....
ReplyDeleteअनिल कान्त
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
जय दाता राम जी की...
ReplyDeleteआपको एवं आपके परिवार को गणतंत्र दिवस पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.
नींद नि्काल कर वापस आइए। हम भी कुछ घूम फिर कर वापस आते हैं।
ReplyDeleteसुना है हर क्रिया की प्रतिक्रिया भी होती है. तैय्यार रहिए
ReplyDeleteसो लो प्यारे!
ReplyDeleteनीम के पेड़ पर चढ़ना कठिन है उससे तो सरल है ब्लॉग लिखो, टिपियाओ।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
बिलकुल ही अच्छा नहीं लगा यह सब पढकर। ऐसी हरकतों पर तो मेरा एकाधिकार है भाई। यह सब मेरे लिए ही रहने दीजिए और फौरन से पेश्तर निकल आइए।
ReplyDeleteतुम आओ तो बहारों का काम काज चले।
किस-किस को याद किजीये,
ReplyDeleteकिस-किस को रोईये,
आराम बड़ी चीज़ है,
मुह ढांक के सोईये।
जागो मोहन प्यारे :) जो सोवत है सो खोवत है ..जो जागत है सो पावत है ..अब देख लो किस में फायदा अधिक है ..:)
ReplyDeleteबाकियों की तर्ज़ पर और तुम्हारे मूड को देखते हुए हम भी कुछ चेप देते हैं...आज करे सो कल कर, कर करे सो परसों...जल्दी है किस बात की भैय्या जब जीना है बरसों :D
ReplyDeleteअइसा क्या हो गया भाई साहब, फ़िर किसी की डायरी तो नहीं उठा ली..? क्या वजह है इस हाइबरनेशन की....?
ReplyDeleteसू सू करके जल्दी आना...
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