भारत में संस्कृत का उच्चारण तमिल प्रभाव से बदला है, यह बात अब कितने ही विद्वान मानने लगे हैं.. तमिल में र को ल और ल को र कर देने का रिवाज है.. यह रीती संस्कृत में भी 'राल्योभेदः' के नियम से चलती है.. काडवेल(Coldwell) का कहना है की संस्कृत ने यह पद्धति तमिल से ग्रहण की है..
बहुत प्राचीन काल में भी तमिल और संस्कृत के बीच शब्दों का आदान-प्रदान काफी अधिक मात्र में हुआ है, इसके प्रमाण यथेष्ट संख्या में उपलब्ध हैं.. किटेल ने अपनी कन्नड़-इंगलिश-डिक्शनरी में ऐसे कितने शब्द गिनाये है, जो तमिल-भंडार से निकल कर संस्कृत में पहुँचे थे.. बदले में संस्कृत ने भी तमिल को प्रभावित किया.. संस्कृत के कितने ही शब्द तो तमिल में तत्सम रूप में ही मौजूद हैं.. किन्तु, कितने ही शब्द ऐसे भी हैं, जिनके तत्सम रूप तक पहुँच पाना बीहड़ भाषा-तत्त्वज्ञों का ही काम है.. डा.सुनीतिकुमार चटर्जी ने बताया है की तमिल का 'आयरम' शब्द संस्कृत के 'सहस्त्रम' का रूपांतरण है.. इसी प्रकार, संस्कृत के स्नेह शब्द को तमिल भाषा ने केवल 'ने'(घी) बनाकर तथा संस्कृत के कृष्ण को 'किरूत्तिनन' बनाकर अपना लिया है.. तमिल भाषा में उच्चारण के अपने नियम हैं.. इन नियमो के कारण बाहर से आये हुए शब्दों को शुद्ध तमिल प्रकृति धारण कर लेनी पड़ती है..
दिनकर जी द्वारा लिखा 'संस्कृति के चार अध्याय' से लिया हुआ.. पृष्ठ संख्या ३७..
बहुत अच्छा! शुरू से आखिर तक पीडी को पढ़ते रहे। आखिर में जा कर पता लगा कि दिनकर जी लिख गए हैं।
ReplyDeleteसुंदर उद्धरण प्रस्तुत किया है।
हम भी चेन्नई में काफी दिन रहे .
ReplyDeleteजब कोई संस्कृत शब्द उनकी भाषा में सुनते तो शांति मिलती . चलो कुछ तो समझ आया :)
अच्छा है पीडी घर से दूर है खूब पढ़े हमें भी बाटे बहुत अच्छी पोस्ट ,आफिस , बाईक पर सैर और पढ़ाई...मौजही मौज पीडी के.
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