अब आपको पढ़ाता हूं एक और खबर जो इस तेल कि कीमतों को लेकर ही है..
"समाचार एजेंसियों के अनुसार राजधानी दिल्ली में 85 प्रतिशत पेट्रोल पंपों पर पेट्रोल और डीज़ल का भंडार ख़त्म हो चुका है, जबकि व्यावसायिक राजधानी मुंबई में 60 प्रतिशत पेट्रोल पंपों पर 'स्टॉक नहीं है' का बोर्ड टंग चुका था.
इसी तरह कोलकाता में 30 प्रतिशत पेट्रोल पंप बंद हो गए थे तो चंडीगढ़ में सिर्फ़ 10 प्रतिशत पंपों पर पेट्रोल-डीज़ल उपलब्ध था. भोपाल में 75 में से 60 पेट्रोल पंप बंद थे तो पटना में आधे से अधिक पेट्रोल पंप बंद हो चुके हैं.
मुंबई में सीएनजी और पाइपों के ज़रिए पहुँचने वाली रसोई गैस की आपूर्ति में भी बाधा पहुँची है. हालांकि दिल्ली में सीएनजी की आपूर्ति जारी है. लेकिन इन दोनों ही शहरों में शुक्रवार के बाद से सीएनजी आपूर्ति बुरी तरह प्रभावित होने की आशंका है."
यह खबर आपको पढ़ाने का मेरा उद्देश्य बस इतना ही है कि मैं आप लोगों तक यह संदेश पहूंचा सकूं कि जब उत्तर भारत के लोग दक्षिण भारत को महत्व नहीं देंगे फिर यह उत्तर-दक्षिण भारत के बीच कि खाई कैसे कम होगी? इस खबर में किसी भी दक्षिण भारत कि खबर नहीं है.. जैसे दक्षिण भारत पर इसका कुछ असर पड़ा ही ना हो..
खैर यह तो रही समाचार पत्रों कि बातें.. कुछ अपने आस-पास कि बातें करें तो, मेरे घर के ठीक सामने, सड़क के उस पार, एक सेल का पेट्रोल पंप है.. कल सुबह और आज सुबह उस पर बेतरह भीड़ थी.. लम्बी कतारें लगी हुई थी और सारा यातायात अस्त-व्यस्त.. सामान्यतः मैं 11 बजे कार्यालय के लिये घर से निकलता हूं और कार्यालय पहूंचने में मुझे लगभग एक घंटे का समय लगता है.. मार आज इस पेट्रोल के लिये मारा-मारी और अस्त-व्यस्त यातायात के कारण लगभग एक घंटे और पैंतालिस मिनट में ऑफिस पहूंचा.. क्योंकि जहां कहीं भी पेट्रोल पंप खुला था वहां के हालात तकरीबन यही थे.. कल आधे दिन में ही सारे पेट्रोल पंप का तेल खत्म हो चुका था और उसके बाद से वे बंद थे और सड़कें सुनसान थी.. आज के हालात भी कल जैसे ही दिखाई दे रहे हैं..
दर असल सरकार को हडताल का नोटिस काफी पहले दिया जाता है पर यह तभी जागती है जब पानी सिर से ऊपर जाने लगता है .
ReplyDeletevery right...bangalore me bhi yahi haal hai, par kahi bhi news me mention nahin kiya gaya hai.
ReplyDeleteचलिए-अभी न्यूज में सुना कि हड़ताल खत्म हो गई है.
ReplyDeleteहड़ताल खत्म हो गयी है। हमारे पास कई तेल के रेक खाली करने को पड़े हैँ और कई लदान को।
ReplyDeleteकल शायद इस काम मेँ गतिविधि हो!
तेल की कमी शोर्ट टर्म है और महंगाई वाला डाटा बाकी फैक्टर्स पे काम करता है... इस हड़ताल का असर शायद अगले महंगाई के आंकड़े पर पड़े. वैसे भी महंगाई नापने का ये जो तरीका है वो बहुत क्रीटीसाइज़ होता रहा है... वास्तविकता से थोड़ा हट के ही होता है. कई देशों में इस तरीके को बदल दिया गया पर हम अभी भी इस्तेमाल किए जा रहे हैं. कौन बदले भ्रम से निकलने में सबको डर लगता है :-)
ReplyDeleteउत्तर दक्षिण वाली बात सोचने लायक है, पर आपने कभी उत्तर पूर्व भारत की खबरें पढ़ी है जिसमें ब्लास्ट छोड़कर कुछ और हो ! बिना ब्लास्ट और भारी बंद के उत्तर पूर्व भारत की कोई घटना ख़बर ही नहीं बन पाती.
Hmmm, Govt is definitely playing psychological games after all they can't afford to make junta piss off, in an election year
ReplyDeleteअभिषेक ओझा जी की बातों से पूर्ण सहमति !!
ReplyDeleteभाई क्या करे? सरकार की मर्जी . जनता हैं हम तो, हमको तो बर्दाश्त करना है.
ReplyDeleteरामराम.
हम जिस व्यवस्था में जी रहे हैं, ये सभी उस व्यवस्था के अनिवार्य परिणाम हैं। इन्हें हमें भुगतना ही होगा। हम चाह कर भी व्यवस्था को नहीं बदल सकते वह तो ऐतिहासिक प्रक्रिया के तहत ही परिवर्तित होगी। हाँ हम उस प्रक्रिया की गति को कम या अधिक करने में अपना योगदान कर सकते हैं।
ReplyDeleteचुनाव आने वाले हैं महंगाई दर ने कम होना ही है
ReplyDeleteदक्षिण ही नही पूर्वोत्तर के साथ भी यही उपेक्षा का भाव रहता है
ReplyDeleteसही कहा भाई. ताल-मेल (या फिर तेल-मेल) ज़रा भी नहीं है. मंहगाई नापने के पैमाने में फेर-बदल की ज़रूरत है. होलसेल प्राईस इंडेक्स में हड़ताल से पड़ने वाले प्रभाव के लिए कुछ किया जाना चाहिए. जहाँ तक उत्तर और दक्षिण भारत को एक साथ कवर करने की बात है तो मैं आपसे सहमत हूँ.
ReplyDeleteलेकिन क्या कर सकते हैं. बंटवारा किसी न किसी रूप में दिखाई दे जाता है.
अभी तो एक दूसरे पर दोषारोपण हो रहा है
ReplyDeleteउचित प्रश्न।
ReplyDeleteचलिए खैर यह मामला निपट गया।
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