"आउच.. देख कर नहीं चल सकते हो क्या? मेरे पैर पर चढ़ते चले आ रहे हो.."
"अब क्या करून बहन जी, इतनी भीड़ है.. और कंडक्टर भी तो कह रहा है, पैर पर पैर रखिये, सॉरी कहिये, आगे बढिए.. चलिए मैं भी सॉरी बोल देता हूँ.."
पिछली बार जब मैंने दिल्ली के बस में सफ़र किया था तो वहां बस के भीतर के हालत कुछ ऐसे ही थे.. वैसे तो चेन्नई में भी बसों के हालत कुछ अच्छे नहीं हैं मगर उस दिन दिल्ली में जम कर बारिश हो रही थी, मैं पूरा भींगा हुआ था और मेरे साथ मेरा भारी बैग भी था.. मुझे तो इस तरह के हालत देख कर जाने क्यों एक अलग सा सुकून मिल रहा था.. शायद यह तसल्ली हो रही थी कि उनकी बाते समझ में तो आ रही हैं.. यहाँ चेन्नई में कौन क्या कह रहा है, सब ऊपर से निकल जाता है..
डी.टी.सी. और ब्लू लाइन बस के किस्से तो आपने खूब सुने होंगे, आज चेन्नई के एक बस कि तस्वीर भी देख लीजिये..
इस तस्वीर को मेरे एक मित्र विशाल ने लिया था.. एक बस से दूसरे बस कि.. मैं काफी दिनों तक संभल कर रखा था इस तस्वीर को, ताकि कभी आप लोगों के सामने इसे ला सकूं.. :)
यह नजारा सुबह के समय का है.. चेन्नई में सुबह-सुबह बस में स्कूली बच्चों कि भीड़ होती है.. दिन चढ़ने के साथ ऑफिस जाने वालों कि भीड़ बढती जाती है जो तक़रीबन ११ साढ़े ११ बजे तक रहती है.. उसके बाद कालेज जाने वालों कि भीड़ का समय होता है.. फिर १-२ बजे के आस-पास सड़क थोडी खाली मिलती है जो ३-४ बजे तक रहता है.. फिर वैसे ही लौटने वालों का हुजूम आता है.. पहले स्कूली बच्चे, फिर कालेज वाले फिर ऑफिस से आने वाले.. भीड़ रात के ९ बजे जाकर कुछ थमती है.. मगर अफ़सोस मेरे रूट में यह रात के १० साढ़े १० बजे जाकर भीड़ कम होती है.. चलिए बहुत बता दिया चेन्नई के बसों के बारे में.. अब कभी भी चेन्नई आने का इरादा हो तो मेरे इस पोस्ट को पढना ना भूलें.. :)
"पैर पर पैर रखिये, सॉरी कहिये, आगे बढिए" लेख के अंदर आपने यह दिखाकर डरा ही दिया कि जो भी चेन्नई आएं , वो बस के भरोसे घूमने फिरने का कार्यक्रम न बनाएं।
ReplyDeleteसभी कुछ है कम
ReplyDeleteएक इंसान के सिवा
अगर किसी बच्चे को कुछ होगया तो कोन जिम्मे बार होगा??
ReplyDeleteभाई जी आप गलतबात सिखा रहे हैं :)
ReplyDeleteओह नो! यह दृष्य़ तो अजीब लग रहा है।
ReplyDeleteऐ भाई कितना सॉरी बोलना पड़ेगा?
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ReplyDeleteसारी काहेको बोलेंगा, मैन ?
पैर पर पैर रखने का..
तिरछी नज़रिआ से फ़ँटूश मुस्की देने का..
"आप गधे हैं " बोलने का.. बस्स, अपुन का काम बी बनेला अउर..
अपुन के नार्थ इन्दीयान इस्टेट का पैचान बी रैने का !
मस्त आइडिया दियेला तुमकू, बाप !
भईये ये भारत की असली तस्वीर है । देश इसी तरह आगे बढ़ रहा है । विकास की बस में ऐसे ही लटक लटक के चल रहे हैं लोग ।
ReplyDeleteभई बड़ी कठिन है डगर पनघट की।
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