Friday, January 02, 2009

आज जाने मैं क्या चाहता हूं

कुछ तमन्नाओं पे उम्र गुजारना चाहता हूं..
जैसे मैं तेरा कोई कर्ज उतारना चाहता हूं..

उम्र गुजरी हैं तेरी याद में इस कदर तन्हा..
तन्हाईयों को अब गले लगाना चाहता हूं..

एक तस्वीर छुपाये रखी थी बटुवे में कहीं..
आज फिर तेरी नजर उतारना चाहता हूं..

हिज्र की रात कुछ यूं हुई लम्बी..
अंधेरों में मैं भी सिमट जाना चाहता हूं..

धुवें में घिर आयी हैं तेरी परछाईयां..
दिल ही दिल में आज मैं जाने क्या चाहता हूं..

9 comments:

  1. हरेक शेर "वाह वाह" के लायक है. हमारी तरफ़ से तो ५ में ५. बटुवे की तस्वीर का नजर उतारना, ये पता है की दिल से चाह रहे लेकिन क्या ये मालूम नही, तनहाई को गले लगाना, कर्ज उतारना, सब एक से बढ़कर एक.

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  2. bhaiyya.. saral shabdon mein likha hua hai aur haal-e-dil bayan karne wala post hai ye

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  3. हिज्र की रात कुछ यूं हुई लम्बी..
    अंधेरों में मैं भी सिमट जाना चाहता हूं..

    बहुत बढ़िया ..अच्छा लगा यह ..

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  4. एक तस्वीर छुपाये रखी थी बटुवे में कहीं..
    आज फिर तेरी नजर उतारना चाहता हूं..

    बहुत बढ़िया

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  5. वाह ! वाह !
    बहुत बहुत सुंदर अभिव्यक्ति, मोहक रचना है.

    नव वर्ष की शुभकामनाये.

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  6. बहुत कर लिए, इंतजार अब और नहीं,
    मैं भी अपनी दुनिया आबाद चाहता हूँ।

    शायरी अच्छी है, संदेश भी। पर ऊपर भी एक संदेश है। जरा इस पर भी सोचिए।

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  7. भई वाह...क्या बात है...

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  8. नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाऍं।

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  9. ek kala teeka laga do tasveer ke peeche aur nishchint ho jaao. kab tak usi tasveer ki chinta karte rahoge :D
    main to kahti hun naya batua hi kharid lo, best rahega.
    jokes apart, likha bahut pyaara hai

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