मैं उसे प्यार से कभी गधी, कभी इडियट, कभी बुद्धु और ना जाने क्या क्या कहता हूं.. आखिर मेरी प्यारी बहन है, जो मन में आयेगा कहूंगा.. :)
जब मैं मेरठ जाने का और वहां शिल्पी के घर पर रात प्रोग्राम बना रहा था तब मेरे मन में थोड़ी सी चिंता भी थी, क्योंकि मैं अपने भारतीय समाज की रूढिवादीता को जानता हूं और ये भी जानता हूं की यहां खून के रिश्ते को भी कई बार शक कि निगाह से देखा जाता है फिर मैं तो उसका मुंहबोला भाई था.. थोड़ा असमंजस में था मगर मैं उस समय चिंता मुक्त हो गया जब मुझे पता चला की जब मैं वहां पहूंचूंगा उसी समय शिल्पी के पापा भी आने वाले हैं और घर पर ही रहेंगे..
मैं उसके बैंक में पहूंचा और उसके पास जाकर बैठ गया और पहली बार मुझे लगा की काउंटर के इस पार और काउंटर के उस पार में कितना अंतर आ जाता है.. हम जब किसी बैंक में कतार में लगे होते हैं तो लगता है कि सामने बैठा हुआ बैंक कर्मचारी जल्दी-जल्दी काम नहीं कर रहा है(हालांकि कुछ लोग ऐसे कामचोर होते भी हैं) और उसे कोसते हैं.. मगर उस पार बैठा हुआ कर्मचारी भी कोई मशीन नहीं होता है, वो भी अपनी पूरी क्षमता से ही काम करता होता है.. उसने उस दिन जल्दी जल्दी में अपना काम खत्म किया हमने इसी बीच उसका लाया हुआ खाना भी खाया और फिर 4 बजे के आस-पास घर आ गये.. उसके बाद इदर की बातें, उधर की बातें, कभी उसकी टांग खिंचाई, कभी मेरी टांग खिंचाई, और ना जाने क्या क्या.. जैसे हम बिलकुल बच्चे बन गये हों..
अचानक से मैंने उसकी तस्वीर उतार ली :)
बातें करते-करते हम थोड़ा गंभीर हो गये जब अनायास ही अपनी कुछ परेशानीयों के बारे में बातें करने लगे.. कुछ काम को लेकर परेशानीयां और कुछ घर परिवार कि हलचलें.. खैर, सबके जीवन में कुछ ना कुछ परेशानी तो हर वक्त होता है.. ऐसे ही जीवन को संघर्ष नहीं कहते हैं.. माहौल तब हल्का हुआ जब उसके पापा आये.. वो दिन में अपने कुछ काम से दिल्ली गये हुये थे.. शिल्पी और उसकी मित्र(मुझे उसका नाम याद नहीं आ रहा है :() और कुछ उसके पापा ने मिलकर खाना बनाया और मैंने रोटियां सेंकी.. शिल्पी ने मुझे सख्त हिदायत दी थी की अपने ब्लौग पर जो कुछ भी लिखना मगर मेरे बनाये हुये खाने के बारे में कुछ भी मत लिखना.. मगर ऐसा मौका बार-बार थोड़े ही ना आता है.. उसने जो खिलाया वो बहुत ही बेकार था :P.. मगर जितने प्यार से खिला था उसका अलग ही महत्व था :).. मगर उस समय तो उसे बहुत बोला की मैं जानता हूं ऐसा गंदा खाना क्यों खिलायी हो, जिससे मैं दोबारा यहां नहीं आउं.. मगर उसे नहीं पता है कि मैं कितना चिपकू इंसान हूं और जहां प्यार से जो भी मिले उसे अमृत समान समझता हूं :).. मेरी यह बात मेरा ब्लौग पढकर उसे पता चल जायेगा.. :)
हम दोनों का एक साथ वाला पहला फोटो
फिर मैंने अपने लैपटाप पर उसे ढेर सारी कालेज की, भैया के शादी की, और भी ना जाने कौन कौन सी तस्वीरें दिखाई.. उसने मुझसे कुछ गानों की फरमाईश की थी और कहा था की "आओगे तो लेते आना, मैं इसे अपने मोबाईल में डालूंगी.." सो उसने वे गाने अपने मोबाईल में ट्रांसफर की.. अब तक रात काफी हो चुकी थी, सो हम सोने चले गये.. मैं इस बार के जाड़ों में पहली बार रजाई ओढ कर सोया :)..
सुबह उठने पर पता चला की अंकल(शिल्पी के पापा) का शरीर बुखार से तप रहा था और कुछ दिनों से शिल्पी की तबीयत भी कुछ ठीक नहीं चल रही थी.. अब ऐसे में उसे छोड़कर जाने का मन तो नहीं कर रहा था.. मगर जाना तो था ही.. मुझे अपने मम्मी-पापा, भैया-भाभी से भी तो मिलने में देरी हो रही थी.. उसने जल्दी-जल्दी खाना बनाया और मुझे खिलाया और फिर मैं उसके घर से दिल्ली के निकल लिया.. मुझे दिल्ली से संपूर्णक्रांती पकड़नी थी और पटना जाना था..
आप जो लिख रहे हैं वो ब्लॉगिंग में एक दम नया प्रयोग है। जारी रखे दोस्त
ReplyDeleteआपका बहुत-बहुत धन्यवाद हौसला बढाने के लिये.. :)
ReplyDeleteबॉस ये स्माइली का तगडा प्रयोग करते हैं।
ReplyDeleteआशीष की बात सही है, घरेलू मामले को भी आपने रोचक अंदाज में पेश किया है।
बधाई :P
aap thik khte hain hmare smajh me is prakar ke riston ko sk ki njr se dekha jata hai aur yh maine bhi brdast kiya hai.pr ykin hai wqt jrur bdlega hmare aapke prayason se..jari rkhiye
ReplyDelete@राजीव जी - जी हां.. हम हमेशा ही ऐसा करते हैं.. मेरे आफिस में भी लोग परेशान रहते हैं मेरे स्माईली से..:D
ReplyDelete@लवली जी - मुझे पता है की ये मानसिअकता इतनी जल्दी नहीं बदलने वाली है, पर उम्मीद लगाने में कोई हर्ज नहीं है..
आप दोनों को बहुत-बहुत धन्यवाद.. :)
पर्सनल डायरी का बेहतरीन अंदाज में प्रस्तुतिकरण...यही तो ब्लॉगिंग है सही मायने में. बहुत खूब!
ReplyDeleteअरे वाह
ReplyDeleteपीडी माईडियर, बढ़िया शुरुआत है।
ReplyDeleteआज ही नज़र गई। इत्मीनान से पढ़ कर फिर लिखता हूं दोस्त !