कल होली के दिन की शुरूवात मायूसी के साथ हुई थी.. लगा था जैसे पिछले साल जैसी होली ही इस बार भी बीतेगी.. चुपचाप, घर में अकेले.. पिछली बार कुछ यूं ही अकेले सिगरेट के धुयें के बीच मेरी होली बीती थी..
रात में ठीक से नींद नही आयी थी और सोने से पहले ही सुबह सभी को 6 बजे के आसपास होली की शुभकानाऐं वाल मैसेज भेज दिया था.. सो पापा-मम्मी समझे की सुबह सुबह जग गया है और 7:30 पर ही फोन करके फिर से जगा दिया उन्होंने.. फिर पिछले साल की तरह ही फोन पर शुभकामनाओं का शिलशिला शुरू हो गया, मुझे लगा की शायद इस बार भी पिछले साल की तरह ही सारा कुछ बीतने वाला है.. पहले चेन्नई से बाहर वालों को फोन करने के बाद चेन्नई के दोस्तों को फोन मिलाना शुरू किया.. पाया सभी सोये हुये हैं और मैं ही उन सभी को फोन कर करके उठा रहा हूं..
फिर उन लोगों को फोन मिलाना शुरू किया जिन्हें अपने घर पर बुलाना था(अपने उन चेन्नई के दोस्तों की भी याद आयी जो होली की छुट्टी में घर गये हुये हैं).. सबसे पहले प्रियदर्शीनी का नंबर आया.. औरों की तरह वो उसे भी नींद से जगाया और याद दिलाया की आज होली है.. उस समय लगभग 10 बज रहे थे.. वो बोली की राका(अपने मित्र राकेश को हम इसी नाम से जानते हैं) के साथ 1 घंटे में आ रही है.. मैंने उसे साथ में रंग भी लाने को कहा क्योंकि मेरे पास कुछ भी नहीं था और अपने घर के पास मैंने ढूंढा मगर नहीं मिला था.. उससे बात करने के बाद मैंने राका को भी फोन मिलाया मगर वो इतनी गहरी नींद में था की की फोन उठाया भी नहीं.. और लगभग आधे घंटे के बाद उसका फोन आया और मैंने उसे कहा की PD(कालेज के जमाने में लोग मुझे और प्रियदर्शीनी को एक ही नाम से जानते थे :)) के साथ जल्दी से आ जाओ.. फिर शिवेंद्र को जगाया , "कितना सोता है? आज होली की थोड़ी सी लाज रख कर उठ भी जाओ यार.."
उसके बाद किचन साफ करने में जुट गया.. इतनी देर में शिव ने अफ़रोज़ को फोन करके बुला लिया जिसे मैं फोन करना भूल गया था.. और राका और प्रियदर्शीनी को आते-आते 12 बज गये.. फिर मैं और प्रियदर्शीनी किचन में जुट गये और तब तक हमारी होली शुरू हो गई.. बहुत ढूंढने पर राका और प्रियदर्शीनी को कहीं से बस गुलाल मिला था.. रंग नहीं मिल पाया था.. खैर जो भी मिला था वो था बहुत उम्दा किस्म का..
होली शुरू होने पर हम लोगों का चेहरा कुछ ऐसा दिखने लगा था.. :)
प्रियदर्शीनी
अफ़रोज़
राका
शिवेन्द्र
मैं खुद(नहीं पहचान में आ रहा हूं ना :))
और हमारी ग्रुप फोटो
अब हम लोग खाना पकाना शुरू किये, सभी असमंजस में की क्या पकाया जाये आज के दिन.. अब किसी बैचलर के घर में साधन हमेशा सीमित ही होता है.. पहले कचौड़ी और भुजिया और खीर बनाने का प्लान बना.. मैं और प्रियदर्शीनी लग गये किचन में.. थोड़ी देर में प्रियदर्शीनी और अफ़रोज़ ने अपना चेहरा धो लिये.. अब हमलोग धुले हुये चेहरे को रंगने का मौका आ भला क्यों छोड़ने वाले थे सो फिर से दोनो बेचारे रंगे गये.. फिर अचानक खीर के बदले मालपुवा बनाने का प्लान बन गया.. मगर एक मुसीबत, क्योंकि किसी को वो बनाना नहीं आता था.. तब शिव ने कमान संभाली और घर पर पुछा उसे बनाने की विधी.. थोड़ी देर में हमारा गैस भी खत्म हो गया और इस बादा को भी हमने पार किया क्योंकि हमें तो मालपुवा खाना ही था..
हमलोग बिना चेहरा धोये हुये ही घर से बाहर कुछ सामन खरीदने और गैस भराने के लिये गये थे और सारे तमीलियन हमें ऐसे घूर-घूर कर देख रहे थे जैसे हम किसी दूसरे ग्रह के प्राणी हों.. वे अपने बच्चों को समझा रहे होंगे "देखो बच्चों, इस तरह के प्राणी साल में एक बार उत्तरी भारत में पाये जाते हैं.." :)
और इस तरह एक मायूस सी सुबह उत्साह से भरे दिन में परिवर्तित हो गया.. राका, प्रियदर्शीनी और आफ़रोज़ को मैं बहुत बहुत धन्यवाद देता हूं इस होली को यादगार बनाने के लिये.. और हां एक बात तो बताना ही भूल गया, हमने कुछ गुलाल बचा कर भी रख लिये हैं.. जैसे ही हमारे मित्र अपने घर से लौटेंगे वैसे ही उन्हें एक बार फिर रंग देना है.. :)
आपकी पोस्ट बहुत जीवंत है.....ऐसे लगा कि हम भी इस में शामिल हैं। पढ़ कर मज़ा आ गया।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया पी डी!!
ReplyDeleteइस पोस्ट ने यह जाहिर किया है कि अपने आसपास के वातावरण से अलग आप अपने त्योहार मे क्या होते हैं!! तमिलियन वाली लाईन*
होली की शुभकामनाएं बन्धु!
होली पर बधाई। मालपुआ कैसा लगा? बना भी या नहीं? बताओ भाई, मुहं में पानी आ रहा है।
ReplyDeleteआप की होली तो बहुत ही अच्छी रही। हमें भी बताइए फ़ाइनली क्या क्या बना सके? हम मानते हैं कि तमिलिन जर्रा नकचढ़े होते है दूसरों के त्यौहारों को लेकर लेकिन ऐसे भी कई मिल जाएगें जो बड़ी खुशी से शामिल होगें उसमें। एक बात और बताएं, इस होली पर हमसे ज्यादा हमारे पति(साउथ इंडियिन, तमिल नहीं)ने उत्साह से होली खेली, हम नहीं खेले…:)
ReplyDeleteचेन्नई मे होली मनाई, शुभकामनाएँ.
ReplyDelete@ प्रवीण जी और संजीत जी- बहुत बहुत धन्यवाद..
ReplyDelete@ दिनेशराय द्विवेदी जी- हां जी बना और बहुत मजेदार भी था..
@ अनीता जी- होली की शुभकामनाऐं.. हां जी सब बना और हमने ही बनाया.. और बढिया भी बना.. हमारा हेड कूक घर गया हुआ है नहीं तो पता नहीं और क्या-क्या बनाते.. :)
@ Vikas jI- बहुत बहुत धन्यवाद..
Holi ke din suraj chamakta hua accha lag raha hai(5th photo from top).....ha ha ha
ReplyDeleteअबे, सूरज भी तो तू लोग ही उगाई थी.. :)
ReplyDelete(For others : Rinki is the nick name of Priyadarshini)
प्रशांत देर से ही सही होली की शुभकामनाये।
ReplyDeleteआपकी होली तो वाकई बड़ी जोरदार रही।
:) आज शेखर ने यह फेसबुक पर शेयर किया तो बस यूँ ही याद हो आया.. :)
ReplyDeleteकिसी तेलुगु फिल्म में ये संवाद सुना था( पढ़ा था subtitles में) कि आप ज़िन्दगी के हर लम्हें को तस्वीरों में कैद नहीं कर सकते कुछ दिल में समां जाते हैं और कुछ हमेशा आपकी नज़रों के सामने होते हैं.....
ReplyDeleteये पढ़कर मुझे भी कुछ ऐसे ही लम्हें याद हो आये... जो मेरे पास तस्वीरों में तो नहीं लेकिन इस दिल में जरूर समाये हैं... :)