Thursday, April 30, 2009

कम से कम बधाई तो दे ही सकते हैं आप

मैंने घर जाने का प्लान बहुत दिनों से बना रखा था, जिसे बाद में कुछ कार्यालय संबंधी व्यस्तताओं कि वजह से स्थगित कर दिया.. अगर घर जाना होता तो अभी मैं बैठकर पोस्ट नहीं लिख रहा होता, बल्की अभी मैं दिल्ली में होता और शाम में पटना कि ट्रेन पकड़ने कि जुगत में लगा होता.. शायद शाम में नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर कोई हिंदी कॉमिक्स भी खरीदता, आखिर बचपन से लगी इस आदत को कैसे छोड़ दूं? दिल्ली में किसी पुराने मित्र से मुलाकात भी करता जिनसे मिले सालों बीत गये हैं या फिर शायद किसी नये ब्लौगर मित्र या नेट फ्रेंड से पहली बार मुलाकात करता होता.. पटना जाने वाली ट्रेन(संपूर्ण क्रांती या राजधानी एक्सप्रेस) से दिल्ली से निकलते हुये हाशमी दवाखाना के प्रचार से रंगे दिवालों को भी अलीगढ़ तक देखता, जिसमें लिखा होता था कि वे गुप्त रोगों का इलाज शर्तीया तौर से और गुप्त तरीके से करते हैं.. उम्मीद है कि वे इस्तिहार जो पिछले आठ सालों में नहीं बदले थे वह पिछले आठ महिनों में भी नहीं बदले होंगे..

खैर यह हो ना सका, मैं घर जा नहीं पाया.. कार्यालय में कुछ अच्छा अवसर मिलने के लालच में अपना घर जाना स्थगित किया था वह कल मुझे मिल गया.. शायद आज से 3-4 महिने पहले यह मिला होता तो मैं बहुत खुश हुआ होता मगर जिस चीज का कई महिनों से मैं इंतजार कर रहा था वह मेरे घर जाने की छटपटाहट के कारण मुझे खुशी नहीं दे पा रहा है..

अपना शहर, अपना घर, अपने लोग... जाने क्यों यह किसी चुम्बकत्व शक्ति के जैसे अपनी ओर खींचता है.. यह मेरी समझ के बाहर है.. अभी-अभी कुछ दिन पहले पापा-मम्मी चेन्नई से आकर गये हैं, फिर भी यह मुझे अपनी ओर खींच रहा है.. इस बार यह खिंचाव शायद शहर कि तरफ से है.. या फिर मेरे बेटे कि तरफ से है..

खैर जो भी हो, कार्यालय कि गोपनीयता के चलते मैं यह तो नहीं बता रहा हूं कि मुझे क्या अवसर मिले हैं मगर आप कम से कम मुझे बधाई तो दे ही सकते हैं.. :)

इस बार भी मैं अपनी कड़ी को पूरा नहीं कर पा रहा हूं और शायद अगले पोस्ट में भी नहीं कर सकूंगा.. मगर उसके बाद का पोस्ट में आप मन में लड्डू फूटने का अंतिम अध्याय जरूर पढ़ेंगे..

15 comments:

  1. बधाई ! अब बताओ कौन देश? :-)

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  2. चलो बधाई तो ले ही लो ..गोपनीयता का रहस्य बाद में उजागर कर देना ..वैसे कौन से देश चले :)

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  3. चलो भई, बधाई दे देते हैं.

    वैसे दिल्ली से निकलते समय रिश्ते ही रिश्ते के विज्ञापन को छोड़ ये वाला क्यूँ देखते?? :)

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  4. हाँ भाई कोई ...बधाई हो ....कहीं ऑफिस वाले शादी तो नहीं करा रहे .....जो तुम चुपचाप कर रहे हो :) :)

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  5. ye lo badhai...aur sath me soch rahi hoon ki tumhare sar pe kya fodun???
    ladoo ka gaban kar gaye ho...nariyal phodne ka plan bana rahi hoon :D

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  6. लो बधाई, अब तो बताओ!

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  7. ये लो भाई
    हमारी भी बधाई।

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  8. चलिए मै भी बधाई दे देता हूँ .

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  9. बधाई हो बधाई, बिना लड्डू के :)

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  10. जहां तक़ मुझे याद है रिश्ते वाला विज्ञापन था प्रोफ़ेसर अरोडा का। मिले या लिखे प्रोफ़ेसर अरोडा 24 रैगरपुरा रोड दिल्ली। हा हा हा अच्छा याद दिलाया समीर जी।वैसे ये बात तो है पीडी तुम प्रोफ़ेसर का विज्ञापन देखो तो ज्यादा अच्छा है।और हां बधाई हो तुमको ढेर सारी।

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  11. ले लीजिए बधाई...
    विवरण भी मिलता रहेगा...या किसी से पूछ लेंगे...

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  12. कम से कम क्या, हम तो पूरा टोकरा लिए बैठे हैं, पर उधर से भी तो कुछ रिप्लाई आए।
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    सावधान हो जाइये
    कार्ल फ्रेडरिक गॉस

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  13. बधाई सुरक्षित। समय आने पर प्रदान की जायेगी। सरकारी विभाग में अग्रिम भुगतान नहीं किया जाता।

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