उसका यूं ही चले जाना किसी मौत से कम नहीं था
वो कब इस जीवन में आयी और कब चली गई कुछ पता ही नहीं चला.. ऐसा लगता है जैसे जीवन के पांच साल यूं ही हवा में उड़ गये.. जीवन के सबसे खुशनुमा पांच साल.. उसकी कमी आज भी खलती है.. मन उदास भी होता है.. उसके वापस आने की कल्पना भी करता हूं.. मगर उसे पाने की कामना नहीं करता हूं.. उसके साथ जीवन के कयी खूबसूरत रंग देखे थे.. किसी के प्यार में आना क्या होता है यह भी उसका साथ पाकर ही जाना था.. उस प्यार का पागलपन.. उस प्यार की गहराई.. उस प्यार का अंधापन.. उस प्यार का दर्द.. वहीं उसके यूं ही चले जाने के बाद ही यह भी जाना की जिसे अंतर्मन से आप चाहते हैं और उसके बिना एक पल भी गुजारने का ख्याल भी डरा जाता हो, उसके अचानक यूं ही चले जाना.. बिना कुछ कहे.. बिना कोई कारण बताये.. शायद किसी अपने की मौत भी तो यूं ही होती है.. कहने को कई बातें होती है.. जिन बातों पर बहस होती थी उन्ही बातों को फिर से सुनने के लिये कान तरस जाते हैं.. अपनी भूल के लिये आप माफी मांगना चाहते हैं.. मगर कुछ कर नहीं सकते.. बस एक छटपटाहट अंदर तक रह जाती है जो अनगिनत रातें आपको पागलों कि तरह जगाती है.. तुम्हारे जाने से दुनिया को एक अलग नजरीये से भी देखा.. कई बुराईयां जिनसे दूर-दूर तक कोई रिश्ता नहीं था, उन्हें भी अपना लिया.. मगर शायद पहले से अच्छा इंसान हो गया.. लेकिन उससे क्या तुम्हारी कमी पूरी हो गई? मुझे पता है कि उत्तर तुम नहीं दोगी.. यहां जो नहीं हो.. मगर क्या यहां होने पर भी उत्तर देती? नहीं.. उत्तर हम दोनों को ही पता है.. नहीं.. क्यों चली गई तुम यह सवाल आज भी अंदर तक मुझे खाता है.. उस बेचैनी को धुंवे तले छिपाने की नाकाम कोशिशें भी करता हूं.. अक्सर कईयों से यह सुना है कि जब उदास हो तो उन पुरानी यादों को याद करना चाहिये जब हम बेवजह खुश हुआ करते थे.. मगर मैं किन यादों को याद करूं? सभी बेवजह की खुशियां भी तो तुमसे ही थी, जिन्हें तुम साथ ले गई.. हां! शायद दुनिया के लिये तुम हो इसी दुनिया में कहीं, मगर मेरे लिये तो तुम्हारा यूं ही चले जाना किसी मौत से कम नहीं है..
भावुक कर देनेवाला प्रेम-पत्र!
ReplyDeleteपैरों में चोट आयी तो आराम करना छोड किस गम में घिर गए आप ?
ReplyDeleteअब छोड़ो भी
ReplyDeleteबार बार उदास होना
जिन्दगी में आया कोई
बहुत सी खुशियाँ दे गया
उस के जाने से
न हो उदास
उन खुशियों को याद कर
खुश हो
कि वह आया था जिन्दगी में
चाहे लमहे भर के लिए
लमहे आ कर चले जाते हैं
लमहों की लकीर पीटते रहना
जिन्दगी नहीं
खुशहाल लमहे
फिर से आएँगे
उठ, आँखे धो
स्वागत की तैयारी कर
लौट न जाएं वे
देख कर
तुम्हारी उदास आँखें
जल्दी कर, देख
वे आ रहे हैं तेजी से
चले आ रहे हैं।
चोट का दर्द बहुत गहरा है यह दिख रहा है .अब यह क्या रोग पाल बैठे जी भाई आप ...ज़िन्दगी चलने का नाम है ..चलते रहो .. पैर दर्द को साथ ले कर ..दर्दे दिल से बच कर :)
ReplyDeleteअब क्या करूं.. डा. अनुराग जी ने बहुत देर कर दी नर्स से दूर रहने की सलाह देने में.. :)
ReplyDeleteबड़ी गहरी चोट खाये बैठे हो भाई!! उफ्फ!!!
ReplyDeleteवकील साहब सही फरमाते है..
ReplyDeleteजाने का धूने मन बावरा ...अखियन में ले बदल चला
ReplyDeleteमोहब्बत ऐसी ही होती है ...और दिल की बातें कभी हंसती हैं तो कभी रुलाती हैं
बहुत ही भावुक लेख , पर वकील साहब की बात पर गौर करे .
ReplyDeleteगाना सुनो -’यह मुनासिब नहीं आदमी के लिए छोड़ दे सारी दुनिyaa किसी के लिए’
ReplyDeleteयही मौका है ! रच डालो दो चार प्रेमग्रन्थ !
ReplyDeleteसही कै रिया हूँ ,ऐसे मौके फ़िर न मिलेंगे :)
न मुहब्बत न दोस्ती के लिए ..वक्त रुकता नही किसी के लिए
ReplyDeleteभाई टांग घायल और अब दिल भी घायल ? लगता है कि गणेश जी का प्रसाद बांटना पडेगा.
ReplyDeleteरामराम.
क्या बात है भई.......कभी पैर कभी दिल......एक शेर याद आगया।
ReplyDeleteजख्म एक दो नहीं शरीर ही छलनी है
दर्द भी परेशां है कि कहाँ से उठे।
ये चेन्नई मे दिल को पैर कहते हैं क्या?कहां चोट लगी अपन के तो समझ से परे है।
ReplyDeleteजनाब आप के लिए मेरे ब्लॉग पर एक कविता है जिसे कुछ ऐसे ही हालातों मैं लिखा गया .....आप की ये रचना तारीफ के काबिल है ...दिल से लिखा आपने ....मैंने भी दिल से पढ़ा ....
ReplyDeleteवह अंधेरे से लिपट कर रात भर रोता रहा ,
बेरहम सूरज न जाने किस जगह सोता रहा ।
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यह न समझा साथ उसका छोड़ देंगी एक दिन ,
वह सुबह से शाम तक परछाइयां ढोता रहा ।
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ये बुझे तारे बगावत कर नही सकते कभी ,
सत्य है होगा वही जो आज तक होता रहा ।
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एक उल्का सी ह्रदय में रह गई है रोशनी ,
बस उसी सुख की लहर में ख़ुद बा ख़ुद खोता रहा ।
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आइना भी कह न पाया रोक ले आंसू "अभी "
वह अभागा मोतियों को धूल में बोता रहा ।
लगता है बड़ी गहरी चोट लगी है ।
ReplyDeleteपैर के साथ -साथ दिल भी घायल है । :)
अनिल पुसदकर जी ठीक कह रहे हैं।
ReplyDeleteसही सही बतायो चोट कहाँ लगी है?
जय हो प्रेम पुजारी की
ReplyDeleteघणा सेण्टी और घणी अच्छी पोस्ट।
ReplyDeleteluking forward to ur next blog and hope u come out with smthing really enchanting and show people how to come out of all sorrows tht life gives us.
ReplyDeletezaffar
ये कौन सी चोट खा बैठे अब प्रशांत भाई। वैसे लिखा अच्छा है।
ReplyDeleteयह कमेंट मेरे एक खास मित्र ने मेल के द्वारा भेजा है जिसका नाम संजीव है..
ReplyDelete“uska yun chala jana…..”
Achha likhey ho… but may be knowing the pretext and even understanding the pain to some extent, post padh kar acchha nahi laga…. :(
Content was ok…. the feelings were unequivocally expressed….. synchronized flow of thought very well expressed in words….
Had I not known the past I would have loved the piece.
Anyway, yeh sab to chalta he rehta hai… life ke itne saarey flavors mein ek yeh bhi sahi…..
Waise bhi if there was no darkness we would have never appreciated the light.
If there were no Sanjeevs (aka worthless) no one would have valued Vikases and Chandans…. ;)
Jaldi jaldi apni tooti taang theek karo….. :)