स्थान - लखनऊ के आस-पास(कौन सा हिस्सा मुझे पता नहीं.. ;))
मास - फरवरी, 2009
मेरे पापाजी किसी वर्कशॉप में वहां गये हुये थे.. वहां उन्होंने टैक्सी किया और उससे टैक्सी के किराये के बारे में पूछने पर उसने कहा कि साहब आप यहां आये हैं तो आपसे किराया लूंगा थोड़े ही ना? यह कह कर उसने जबरदस्ती किराया नहीं लिया और वो हर जगह पहूंचाया जहां उन्हें काम था और अपनी मर्जी से कुछ दुकानों में भी घुमाया कि यहां कि प्रसिद्ध चीज इन दुकानों में मिलती है(अब पापाजी वहां कुछ खरीदे या नहीं यह तो वही जाने).. कुछ दिन बाद जब पापाजी का काम खत्म हो गया और वो फिर उस टैक्सी वाले को कहे स्टेशन चलने को तो उसका टका सा जवाब था कि साहब गाड़ी खराब हो गई है.. फिर उस जगह के टैक्सी चालकों के बारे में पता करने पर पता चला कि वहां कोई भी आता है तो उसे ऐसे ही टैक्सी वाले मुफ़्त में घुमाते हैं और उन दुकानों में भी ले जाते हैं.. उस दुकान में मात्र ग्राहक पहुंचाने का उसे 300-400 तक कमीशन मिलता है और अगर किसी ने कुछ खरीदा तो जितनी कि खरीददारी उसने की उस पर 20%-30% का कमीशन ऊपर से मिलता है..
अध्याय दो :
स्थान - ऊंटी
मास - मार्च, 2009
हम तीन मित्र और मेरे मित्र के पिताजी ऊटी घूमने के लिये निकले थे.. वहां टैक्सी का हर दाम लगभग तय था, चाहे आप किसी भी टैक्सी चालक से पूछो सभी का दाम फिक्स था.. उस समय ऑफ सीजन होने के चलते एक दिन का 1000 रूपये और अगर कोई दिनभर ऊंटी घूमने के साथ शाम में मेट्टुपलयम रेलवे स्टेशन तक वापस भी जाना चाहता हो तो 1100/-. अब जहां दाम फिक्स हो तो बेईमानी की उम्मीद भी कम हो जाती है.. ड्राईवर टैक्सी लेकर आया और अच्छे से बातचीत करते हुये निकल पड़ा.. कुछ दूर तक तो सामान्य लहजे में बात करता रहा और अचानक से ही बिलकुल प्रोफेशनल तरीके से बोला, "गुड मौर्निंग सर, अब आप लोग ऊटी के के मशहूर गोल्फ क्लब के सामने से गुजर रहे हैं.. यहीं रोजा सिनेमा की शूटिंग हुई थी.........ब्लाह.....ब्लाह.........." उसके बाद हर दूसरे-तीसरे जगह पर पैसा मांगना शुरू कि यहां पार्किंग का इतना लगेगा तो यहां टिकट का इतना लगेगा.. हमने जब उस सबका टिकट के साथ हिसाब मांगना शुरू किया तो बगलें झांकने लगा..
अध्याय तीन :
स्थान - चेन्नई
मास - अप्रैल, 2009
अभी मेरे पापा-मम्मी यहां मेरे पास आये हुये हैं.. पहले तो सोचा था कि तिरूपति तरफ ले जाऊंगा मगर टूटे पैर के साथ यह संभव नहीं है, तो सोचा क्यों ना यहीं आस-पास की जगहों को दिखा दिया जाये.. कल तमिलनाडू में तमिल न्यू ईयर के कारण कार्यालय भी बंद था, सो मुहुर्त भी अच्छा.. एक टैक्सी बुक करके निकल पड़े.. टैक्सी वाला नेपाल का रहने वाला था और स्वभाव का भी कुल मिलाकर अच्छा था.. दिनभर अच्छे से घुमाते हुये शाम में कांचीपुरम पहुंचे.. वहां पापा-मम्मी मंदिरों के दर्शन किये.. फिर उसने बताया कि आपको सिल्क फैक्टरी घुमाता हूं.. हमने सोचा कि शायद कोई घूमने की जगह होगी.. वहां पहूंच कर अंदर जाने पर पता चला की यह तो कांचीवरम् साड़ियों कि एक दुकान भर है जिसे वह सिल्क फैक्टरी कह रहा था.. हमने वहां से कुछ खरीदा तो नहीं क्योंकि हमारी शौपिंग एक दिन पहले ही चेन्नई के सुप्रसिद्ध दुकान नल्ली में हो चुकी थी.. मगर अनुमान लगाया कि शायद वहां भी उसका कमीशन फिक्स ही रहा होगा..
ऐसे अनगिनत अध्याय पड़े हुये होंगे हम सभी के यादों के किसी कोने में.. और यह टैक्सी कथा यूं ही आगे चलता ही रहेगा.. :)
pd jee, bade hee talkh anubhav sunaaye aapne taki walon ke saath sach hee hai, lekin kya karein pd bhai ve bhee to hamaree isee samaaj se aate hain to ye to swaabhaavik hee hai.
ReplyDeleteयह भी होता है,मुझे पता नहीं था। मैं ने सोचा कि चैन्नई में हिन्दी बोलने के भी कुछ अनुभव होंगे। शायद वे भी पढ़ने को मिलेंगे।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
दुनिया में लोग न जाने कैसे कैसे कमाते हैं?
ReplyDeleteकई साल पहले जयपुर में ऐसे ही टैक्सी वाले से हम भी टकरा चुके हैं।
ReplyDeleteआपकी बातों से याद आया, किसी काम के सिलसिले में एक बार आगरा गया था, सोचा, ताजमहल हो आऊँ, लाल किले से दो रास्ते ताजमहल की तरफ जाते हैं, एक तरफवाले रास्ते पर रिक्शेवाला लगभग मुफ्त में ले जाने के लिए तैयार हो जाता है, उस रास्ते में दो-चार इम्पोरियम है, वहॉं घुमने की बात कहकर वह चाय-वाय के नाम पर गुम हो जाता है, जब 10-15 मिनट बाद मैं बिना कुछ खरीदे निकला, तो उसने ताजमहल तक ले जाने से मना कर दिया, अब क्या बताऊँ, वहॉं से कड़ी धूप में पैदल ताजमहल पहुँचा, ऐसे में ऐतिहासिक जगहों की इमेज कितनी खराब होती है,क्या बताऊँ!
ReplyDeleteसब धंधा है :-)
ReplyDeleteभाई ऐसा का ऐसा आगरा मे हो चुका है. हमने सामान भी काफ़ी खरीद लिया था, और वहां ये आश्वासन दिया गया था कि सामान अगर वापस करना हो तो आपके शहर मे अमुक जगह हमारी शाखा है, वहां बदल लिजियेगा.
ReplyDeleteघर आकर सामान तो पसंद आना ही नही था. क्योंकि हमने खरीदा था., आज तक किसी ताऊ का खरीदा सामान किसी ताई को पसंद आया है जो यहां आता.:)
खैर साहब दिये गये पते पर वो दूकान नही मिली यानि झूंठ बोला गया था.
हमने उसको फ़ोन लगाया तो हमेशा जवाब मिला कि मैने जर साहब आयेंगे तब बात करना.
थक हार कर हमने अपने रिश्तेदार को अपनी बेवकूफ़ी की कहानी सुनाई, तब उन्होने वहां बात की , हमने सामान वापस भेजा तब करीब आधा पैसा वापस मिला.
२० % रिटर्न चार्जेस के नाम पर और ३०% वो बोला आपकी टेक्सी वाले को कमीशन दे दिया,
भाई हमने तब से कसम खाली कि किसी भी घूमने कि जगह पर अगर कोई वहां का स्थानिय मित्र साथ नही है तो हम कुछ भी नही खरीदेंगे.
अब और क्या सुनाऊं? आज का कोटा ्खत्म.
रामराम.
रायपुर तो शायद सारे देश मे अकेली ऐसा राजधानी होगा जंहा आटो बिना मीटर के चलते हैं।रात को रेल्वे स्टेशन पर उतरो तो किराया उनके हिसाब से तय होता है।पुलिस से लेकर नेता तक़ ट्राई कर चुके है मगर कोई फ़ायदा नही हुआ।एक नये आईपीएस से तो उन्होने स्टेशन से पुलिस लाईन जाने के लिये कई गुना किराया ऐंठा मगर वो भी कुछ नही कर पाया और आजकल मध्य प्रदेश मे बड़ा साब है।
ReplyDeleteधंधा है , फंसाओ और कमाओ .
ReplyDeleteमहंगाई के इस दौर में कुछ भी मुफ्त नहीं है .
५०%+४०%+३०% डिस्काउंट पढ़कर कई लोग मुर्ख बन जाते है .
अजब तेरी दुनिया मालिक।
ReplyDeleteअजी यह तो कुछ भी नहीं। कभी दिल्ली के अॉटोरिक्शा वालों से पाला पड़ा है?
ReplyDeletebade hi dilchasp kisse sunaye yaar tumne :) :)
ReplyDeleteटेक्सी शब्द का प्रयोग गलत अर्थों में इसी चरित्र के चलते हुआ होगा शायद!
ReplyDeleteअरे जनाब, दिल्ली में तो ऐसे अनुभवों से कई बार दो चार हो चुका हूँ.
ReplyDelete......अभी कुछ दिन पहले ऑफिस के काम से दिल्ली गया था. वापसी में जब जयपुर पहुंचा तो रात काफी हो रही थी. ऑटो वाले ने ३० रूपए के जगह ९० रूपए मांगे ..... मरता क्या ना करता.... देना पड़ा.
maine kaaphi yatra ki hai desh mein.Mumbai, Bangalore aur Baroda kuch sahar lage jahan auto ya taxi wale emandar lage . vyawastha unme bhi parivartan laa deti hai.Bangalore mein kuch autowale ab extra maangne lage hain, ye kah kar ki wapas ki sawari nahi milti.
ReplyDeleteSabse accha rahta hai agar aap pehle se fix kar le detail meain.
Bhasha ka chakkar jarur mehnga padta hai. February ki hi baat hai Chennai gaya tha hotel to hospital ka kiraya 50 to 90 vary kar raha tha ek ne to 120 maang liye. Sabse ascharya to tab hua jab ek hindi bhasi auto wala bhi jyada maang raha tha ki pichle panjabi saheb ne itna diya tha.
यह सब राजनिति का असर है।
ReplyDeleteकुल मिलाकर बात यह कि अनुभव पाने के लिए मूल्य चुकाना ही पडता है।
ReplyDeleteबडे बडे शहरों में ऐसी छोटी मोटी घटनाएं होती रहती हैं।
ReplyDelete-----------
तस्लीम
साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन
कथा तो बांच लिये! प्रसाद कब मिलेगा?
ReplyDelete