Monday, April 27, 2009

बारिश

कई दिनों से बारिश नहीं हुई..
मन रीता सा लगता है..
अगर बारिश हो जाये तो
अपनी यादों को अच्छे से खंघालूं..
जो पुरानी यादें हैं उसे धो डालूं..
और रख दूं सूखने धूप में..
तब तक उसे सुखाता रहूं,
जब तक पुरानी यादों का दर्द उड़ ना जाये..
आखिर ये शरीर भी तो मांगता है,
बिना दर्द का मन....


अचानक से दोस्तों को मेल लिखते हुये यह कुछ पंक्तियां भी लिख डाला.. आज इसे ही पढ़ लिजिये, बेटा मन में लड्डू फूटा कथा का अंतिम भाग कल सुनाता हूं.. :)

10 comments:

  1. खाली सुखाने से काम न चलेगा यादों को इस्तरी कर ब्लाग पर भी डालना पड़ेगा।

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  2. अच्छी कविता !

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  3. सुन्दर भाव। अच्छी रचना।

    बारिश में भी साफ कर याद नहीं धुल पाय।
    भले धूप में रंग उड़े दर्द बहुत बढ़ जाय।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

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  4. waah bahut badhiya tarike se mann ka dard sukhane ki baat kahi,sunder bhav,sahi bhi sharir bhi chahta hai bina dard ka mann.

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  5. Wah!!!! Kya kavitha hai!!!!! awesome description....bahut badiya!!!!! U r excellent Blogger....very very good.....excellent.....keep it up!!

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  6. रचना में अभिव्यक्त भाव पसंद आये.
    - विजय

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  7. बढ़िया है PD बाबु... बढ़िया है...

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  8. बहुत सुन्दर भाव हैं।बधाई।

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  9. खंघालूं..ये वर्ड मस्त है..

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  10. laddoo phodte phodte kavita patak maare...ye kahan ka insaaf hai!
    bangalore aa jaao...roj baarish hoti hai yahan par.

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