Thursday, June 26, 2008

अनाम मित्र के नाम पत्र

मेरे अनाम मित्र..

मैं ना तो कुछ साबित करना चाहता हूं और ना ही खुद को हीरो दिखाने कि कोई मंशा है.. मैं तो बस अपनी खुशी के लिये लिखता हूं और अगर कोई मेरी खुशी में खुश होना चाहता है तो उन्हें भी अपने साथ ले लेता हूं..

जहां तक आपने लिखा है कि आपने कोई ऐसी बात नहीं लिखी जिससे आप हीरो दिख सकें और दूसरी तरफ आपने उसका उत्तर भी दे दिया कि कोई और आपको हीरो कहे तो बात बने.. अब मेरे कुछ कहने की जरूरत ही नहीं है कि मैं वैसी कोई घटना क्यों नहीं लिखता हूं.. अपने जीवन में मैंने कुछ अच्छे काम भी किये हैं मगर उसे मैं अपने किसी करीबी मित्र से भी नहीं बांटता हूं फिर भला ब्लौग पर कैसे लिख दूं?

और हां मैं खुद को हीरो मानता ही नहीं हूं.. क्योंकि मुझे पता है कि मैंने अपने जीवन में कितने सही और कितने गलत काम किये हैं.. कोई भी व्यक्ति अपने जीवन में शत-प्रतिशत कभी सही नहीं होता है.. मेरे करीबी जानते हैं कि मेरा जीवन एक खुली किताब जैसी है, जो मैंने अभी तक जिया है(सही या गलत) वो सभी के सामने है.. कुछ भी छुपा हुआ नहीं..

और रही बात कुपित होने कि तो मैं इतनी छूट तो अपने पाठकों को दे ही रखा है कि वो अनाम तत्व बन कर भी कमेंट कर सकें, मैंने तो मॉडेरेटर भी नहीं लगा रखा है.. सो मुझे इसके लिये तैयार रहना ही चाहिये कि कोई मेरी बुराई कर सके.. आज सुबह तो खुद मेरे पिताजी मेरे ब्लौग को लेकर बोल रहे थे कि आज-कल अच्छा नहीं लिख रहे हो.. हां, अगर किसी अनाम मित्र से अपशब्द मिले तो फिर ऐसा कुछ सोच सकता हूं, जो कम से कम अभी तक तो नहीं हुआ है.. वैसे अगर आप अपने नाम से भी कमेंट करते तो भी मैं आपको लेकर कोई पूर्वाग्रह नहीं बनाता..

जब मैंने हिंदी में ब्लौगिंग शुरू कि थी तब मैं यहां किसी को नहीं जानता था, लगभग एक साल बाद(सितम्बर 2007) मैंने पाया कि ढेर सारे लोग मेरे चिट्ठे पर अचानक से आने लग गये हैं, तब जाकर मैंने पाया कि नारद, ब्लौगवाणी और चिट्ठाजगत जैसे एग्रीगेटर ने मेरा रजिस्ट्रेसन खुद ही कर दिया है.. उसके बाद मैं हिंदी ब्लौग जगत से जुड़ा.. उससे पहले मैं अपनी खुशी के लिये लिखता था.. मैं जैसा पहले लिखता था वैसा ही आज भी लिखता हूं.. मतलब अपनी और अपनों खुशी के लिये..

30-40 लोगों कि बात अगर आप कर रहें हैं तो जब वे नहीं आते थे तब भी मैं लिखता था.. जब वे आने लगे तब भी मैं लिखता था.. जब 300-400 आने लगेंगे तब भी मैं वही कुछ लिखूंगा जो अभी लिखता हूं.. मेरे चिट्ठे का ही नाम है मेरी छोटी सी दुनिया.. मेरी दुनिया में जो कुछ भी घटता है बस उसी के लिये इस चिट्ठे पर जगह है.. दूसरी चीजों के लिये मेरे पास दूसरे चिट्ठे हैं..
धन्यवाद.


आज सुबह मुझे एक अमान मित्र का कमेंट मिला जिसका उत्तर लिखने बैठा तो पाया कि ये मेरे किसी एक पोस्ट से भी लंबा हो गया है तो मैंने इस पर एक पोस्ट ही बना डाली.. उनका कमेंट कुछ ऐसा था :

आप जो भी हो भाई मैं काफी दिनों से आपको नोटिस कर रहा हुं.
मेरा मतलब है मैं आपके ब्लौग पढ़ रहा हुं.
मैंने जो नोटिस किया है वो ये है कि आप वास्तविक जीवन में नहीं जी रहे हैं. वास्तविकता से आप काफी दूर हैं.
पता नहीं क्या साबित करना चाहते हैं आप अपनी बातों से.
भई साहब इस् तरह लिखने से हो सकता है आप 50-100 लोगों के बीच फेमस हो जायें.और हो सकता है आपकी मंशा भी यही हो. लेकिन जैसा आपने अपने सेल्फ़ इंट्रोडक्शन में लिखा है वैसा करें तो बात बने. षायद आप करते भी हों. हमे नहीं मालूम. बट आपने अभी तक ऐसा कुछ अपने ब्लौग पर नहीं शेयर किया. भाई साहब अपने आपको तो हीरो सभि मानते हैं. कोई अपने को बुरा नहीं मानता. मजा तो तब है जब दूसरे इस बात को माने. सॉरी अगर हमारी वजह से आप हर्ट हुए हों. लेकिन क्या करें हम अपना विचार व्यक्त करने से अपने आपको रोक नहीं पाये.


ये रोमण में हिंदी लिखा हुआ था जिसे मैंने देवनागरी में बदल कर लिख दिया..

अनाम मित्र को एक और वजह से धन्यवाद क्योंकि उनके कारण मैंने आज एक पोस्ट लिखा नहीं तो आज लिखने के मूड में नहीं था.. :)

12 comments:

  1. अरे!
    यह क्या?
    आपने क्या किया या क्या लिखा था इस अनाम मित्र को भड़काने के लिए?
    मुझे तो कुछ समझ में नहीं आया।
    चलिए, इस बहाने आप को एक पोस्ट लिखने के लिए सामग्री मिल गई!

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  2. काहे परेशान हो रहे है आप, अरे आप हमारे हीरो है और रहेगे, इस बंदे को कहिये "गोली मार भेजे मे भेजा शोर करता है "दिन मे पचास बार सुने :)

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  3. आलोचना भी उतनी ही आवश्यक है जितनी प्रशंसा.. आपको तो खुश होना चाहिए अनाम बंधु/ बहन आपको इतना सीरियस्ली पढ़ते है..

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  4. ये बन्धु जो भी हों आपको पसन्द करते हैं, अन्यथा इतनी लम्बी टिप्पणी नहीं ही करते। खैर वे करें या न करें मैं तो आपका लिखा चाव से पढ़ती हूँ और पसन्द करती हूँ। अपने लिए लिखें व हम जैसों के लिए लिखें। :)
    घुघूती बासूती

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  5. सही है जी - निन्दक नियरे राखिये, आंगन कुटी छवाय!

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  6. छोड़िये इन सबको...अपने आनन्द में लिखिये.

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  7. चलिए इससे ये तो पता चला की अनाम भाई आपके ब्लॉग को कितने गौर से पढ़ रहे है......बेफिक्र रहिये....ओर लिखते रहिये...यहाँ कौन सा साहित्य लिखना है हमें......

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  8. प्रशांत, अनाम जी की बात है. उन्होंने अनाम होकर इसे 'अनामियत' का कुरता पहना रखा है. ऐसे अनामी जी को सुनामी नहीं बनाना है.

    बस लिखो. अपनी छोटी सी दुनिया के बारे में लिखो. अपने बारे में लिखो. और अनाम, कुनाम, सुनाम तो ऐसे ही आते-जाते रहेंगे.

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  9. आप दिखने से लेकर लिखने और पढने तक हिन्दी ब्लाग परिवार के हीरो है। जो अपनापन आपके लेखन मे मिलता है वह अपने आप मे अनोखा है। शुभकामनाए।

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  10. जी हां.. ये बिलकुल सही है - "निंदक नियरे राखिये, आंगन कुटी छवाय" :)
    कल पापाजी भी मेरे ब्लौग कि बुराई करने के बाद यही कह रहे थे.. :D

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  11. bhaiyya soory!!admission ke chalte main thoda busy thi isliye aapka blog padh nahi paayi. aaj padha aur ye aanam mitr ka comment padha. doctor sahab ne to sateek baat kahi. koi to hai jo aapka blog padh raha hai! jisko jo mann likhe. aap bhi likte rahiye aur rahi baat interest ki, kabhi kabhi hota hai ki mann oob jaata hai likhte likhte. thoda break le leejiye!!! :)
    haan.. main apni story ki aage badha rahi hoon. padhte rahiye

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  12. अनाम टिप्पणीकार कई बार बहुत कुछ अच्छा कर जाते हैं -- जैसे अगले लेख के लिये आप को प्रेरित करना!!

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