एक क्षण में लोग कैसे अपनी बात से पलट कर आरोप-प्रत्यारोप करने लगते हैं ये भी समझ में आने लगा(मैं ब्लौग के लोगों कि बात नहीं कर रहा हूं).. कई बार मैंने सोचा कि शायद मैं ही गलत हूं, कई बार होता भी था.. कई बार हीन भावना घर कर गई, कि मैं ही सबसे गया गुजरा हूं तभी इस तरह की घटनाऐं मेरे साथ होती रही है.. कई बार खुद को सर्वश्रेष्ठ मान कर किसी भी चुनौती का सामना करने के लिये भिड़ जाता..
मुझमें सबसे बड़ा परिवर्तन जो आया है वो ये कि मैं बहुत ज्यादा आक्रामक हो गया हूं.. यूं तो पहले भी कम नहीं था मगर जब कभी आक्रामक होता था तो सभी को पता चल जाता था.. पर आज वो मन के किसी कोने में ही छुप कर बैठा रहता है और उचित समय का इंतजार करता रहता है.. कह सकते हैं की मुझमें लोमड़ी जैसी चालाकी और मक्कारी भी आती जा रही है.. जीवन हर रोज कुछ नया सिखाती है, मगर ये पाठ नहीं पढना है मुझे..
मैं नहीं चाहता हूं ये परिवर्तन.. मैं भागना चाहता हूं.. कहां जाऊं समझ में नहीं आता है.. मैं चीखना चाहता हूं, मगर आवाज साथ नहीं दे रही है.. कहीं घुट कर रह जाती है आवाज.. मैं छटपटा कर रह जाता हूं.. चाह कर भी कुछ कर नहीं पाता.. अंदर ही कुछ घुट कर रह जाता हूं..
कहीं भागने की जरूरत नहीं है। एक वक्त आएगा जब ये दौर भी बीत जाएगा। ज़िंदगी अपनी रफ्तार से जारी रहेगी। इसके अच्छे बुरे पहलुओं का विश्लेषण करके आप और परिपक्व हो जाएंगे। शायद वो 30 के पार की उम्र होगी।
ReplyDeleteभाई प्रशांत, बदलाव की निशानी है सब. कुछ दिनों बाद इस स्तिथि से निकल जाओगे. सबके साथ कभी न कभी होता है ऐसा..
ReplyDeleteअच्छी बात है, आक्रामकता को संजो कर रखना। वह ऊर्जा में तब्दील हो जाती है।
ReplyDeleteआप को गलतफ़हमी हो गई है, धेला आपमे चालाकी और मक्करी नही आई है ना ही आप इस लायक है,लोमडी जैसी तो बहुत दूर की बात है, अगर आई होती तो आप लिखते मै लोगो के प्रति बहुत सदभावना और सेवाभावना रखने लगा हू राह चलते की मदद करने लगा हू, अब मै देश की सेवा करना चाहता हू :)
ReplyDeleteसब जगह यही हाल है हजूर ,मस्त रहिये...
ReplyDeleteमस्त रहो मस्ती में.
ReplyDeleteआग लगे बस्ती में"
एक ये नजरिया है.
और एक आपका nazariya है.
लेकिन एक बात kahunga.
aakramakta बनाये rahiye.
मस्त रहो मस्ती में.
ReplyDeleteआग लगे बस्ती में"
एक ये नजरिया है.
और एक आपका nazariya है.
लेकिन एक बात kahunga.
aakramakta बनाये rahiye.
यह बदलाव आया नहीं है, बस ख्याल आया है वरना आप वही करते नजर आते जैसा पंगेबाज अरुण जी कह रहे हैं. :)
ReplyDeleteसिने मे जलन आंखों मे तूफान सा क्यों है
ReplyDeleteइस सहर मे हर शक्श परेशां सा क्यों है
वाह, क्या टंच टिपेरा है पंगेबाज अरुण ने!
ReplyDeleteये भी एक रस्म है ज़िंदगी की.. निभानी तो पड़ेगी
ReplyDeletebhaiyya main to aapse bahut choti hoon aur maine abhi bas kitni hi duniya dekhi hai, bas aapke haal ko padh kar laga ki is daur se main bhi kabhi na kabhi guzungi... par bhaiyya ek baat kehti hoon, aapke mann ke baat ko vyakt karke aapka mann kaafi halka ho gaya hoga na?? yahin aapki aadhi problem solve ho gayi. to.. likhte rahiye, express karte rahiye aur chalte jaayie isi raah pe.. ab shayad aise hi guzara hoga zindagi ka.. is yug mein " innocence" ke liye jagah nahi!!
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