अकसर लोग
प्यार कर बैठते हैं
किसी ऐसी लड़की से
जो छोटे से शहर
से निकल कर,
बड़े शहर की
चका-चौंध में
कहीं खो सी जाती है..
मैं भी उन चंद लोगों में से हूं..
जमाने के साथ
चलने का शौक था उसे,
मगर ना जाने किससे डरती थी..
मेरा साथ पाकर
वो डर जाता रहा
और जमाने के साथ
कदम ताल करते हुये
ना जाने किधर निकल गई..
नजरें आज भी खोजती है,
हर रिक्से पर..
शायद वो दिख जाये कहीं..
सिमटी हुई,
सकुचाती हुई,
छुई-मुई सी,
सिकुड़कर बैठी हुई..
इस डर से
कहीं कोई देख ना ले
कि वो किसी से मिलने आ रही है..
शायद मुझसे?
भ्रम भी अजीब होते हैं..
है ना?
क्या बात है.. प्रशांत भाई.. बहुत बढ़िया.. चित्र भी बढ़िया है..
ReplyDeleteभ्रम अजीब के साथ खतरनाक भी होते हैं। वे असलियत से दूर रखते हैं।
ReplyDeleteअब मिलेगी भी तो बदली हुई मिलेगी यार .....
ReplyDeletetalash jari rakhiye...
ReplyDeletewah je tareef ka haq n chheenanaa
ReplyDeleteसही है..कवि बन ही बैठे. बढ़िया लगा.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर है।
ReplyDeleteनजरें आज भी खोजती है,
हर रिक्से पर..
शायद वो दिख जाये कहीं..
सिमटी हुई,
सकुचाती हुई,
छुई-मुई सी,
सिकुड़कर बैठी हुई..