घर एक बार छूटने पर ऐसा लगता है कि सभी कुछ छूट जाता है.. शुरू-शुरू में आजादी बहुत अच्छी लगती है फिर वो भी एकरस सा महसूस होने लगता है.. उबाऊ सा.. मुझे ये तो याद है कि मैं मम्मी को याद करके पहली बार कब रोया था, मगर अब गिनती याद नहीं है कि कितनी बार रोया हूं.. कल जब मम्मी से बात हुई तो मम्मी ने पूछा कि खाना खा कर आये हो या घर में बना होगा? मैंने कहा खा कर नहीं आया हूं और घर में कोई है नहीं जो बनाया होगा.. देखता हूं क्या खाना है.. नहीं तो एक दिन नहीं खाऊंगा तो कुछ होने जाने वाला नहीं है..
फिर किसी बात पर मम्मी रोने लगी.. मैंने उन्हें समझाया क्यों रो रही हैं आप(आमतौर पर हर घर में मम्मी को तुम करके ही संबोधित किया जाता है.. मेरे घर में भी है.. मगर मैं मम्मी को आप ही कहता हूं)? देखो मम्मी मैं अब नहीं रोता हूं.. आपका बेटा अब बड़ा हो गया है.. दुनिया से लड़ना सीख रहा है.. कहते-कहते गला रूंध सा गया.. आंखों के कोर में कुछ पानी जैसा भी महसूस हुआ.. लगा रो रहा हूं, मगर तभी मैंने पाया कि मेरे भीतर का पुरूष मुझ पर हंस रहा है.. मैंने उस पानी की बूंद को नीचे नहीं टपकने दिया..
इस पोस्ट में अगर आपको मेरे शब्द बिखरे हुये लगे, बिना किसी तारतम्य के तो उसके लिये क्षमा चाहूंगा.. ये बस मां कि याद में बिना सामंजस्य बिठाये लिखा गया है.. जैसे-जैसे भाव मन में आते गये लिखता गया..
ये मैंने अर्चू के चिट्ठे पर कमेंट करने के लिये लिखा था, मगर ये इतना बड़ा हो गया कि मैंने इसे अपने चिट्ठे पर पोस्ट कर दिया..
माताजी को जन्म दिन की बधाई जी, कुछ खाने का माल हमे भी कोरियर कर देना, सारा अकेले हजम मत कर जाना :)
ReplyDeleteजब माँ की बात लिखी जाए तो शब्द अपने आप ही खूबसूरत हो जाते है.. माँ को जन्मदिवस की बधाई.. हमारी शुभकामनाए उनके साथ है और आपके भी.. विषम परिस्थितियो में भी जो अडिग रहे.. वही महान है
ReplyDeleteaadrniya aunti ji janm din ki badhai...aor likhte vaqt jyada na socha kare ,kyunki blogging aisi jagah hai ..jahan likhne se pahle mai kabhi socha nahi karta...yahi iski khasiyat hai.
ReplyDeleteअरुण और कुश ने सब कह दिया है.
ReplyDeleteहम तो बस मम्मी को शुभकामनाएं दे सकते हैं.
और लिखाई की चिंता मत करो वो बहुत अच्छी है.
आगे और भी अच्छी हो जायेगी.
मां की ममता के तुल्य कोई भी पौरुषोचित कृत्य या रस नहीं है।
ReplyDeleteप्रशांत, जज्बात की बात है. कहाँ शब्दों में तारतम्य खोजेंगे? माँ ऐसी ही होती हैं.
ReplyDeleteमाँ, दुनियाँ की सब से बड़ी नेमत।
ReplyDeleteमाताजी को जन्म दिन की बधाई
ReplyDeleteप्रशाँत जी
ReplyDeleteमाँ जी को साल गिरह की बधाई -
और माँ के गले निवाला उतरता ही नहीँ जब तक बच्चे भूखे होँ -
ये तो , मजबूरी है इन्सान की ,
जो हम अपनोँ से दूर रहते हुए भी,
जीना सीख लेते हैँ -
लिखते रहेँ -
स्नेह,
- लावण्या
Bhaiyya... meri wajah se aapne apne dil ki baat itne saral shabdon mein bayan kar di!! Bahut achcha laga bhaiyya!!
ReplyDeleteमाता जी को जन्मदिन की बधाई. उन्हें फ़ोन करो और बताओ की उन्हें कितने लोगो ने बधाई संदेश भेजा है और क्या क्या लिखा है. उन्हें जानकर बड़ा अच्छा लगेगा. और हा मैं भी घर से बाहर अकेला ही रहता हू लेकिन कोशिश करता हू की खाना कभी मिस ना हो क्योंकि यही ब्लॉग लिखने की ताकत देता है :) समझ गए
ReplyDeleteso dont skip ur food from now.
Rajesh Roshan
Prashantbhai
ReplyDeleteWhen u write about a mother, words do not have any weight/importance. The writing itself becomes a great one.
Nice blog.
-Harshad Jangla
Atlanta, USA
"पिछली बार भगवान के सामने कब हाथ जोड़ा था वो वर्ष भी अब याद नहीं है."
ReplyDeleteअफसोस की बात है प्रशांत यह, निश्चित रूप से अफसोस की बात है.