सन् 2006 जून की बात है.. हमारे कालेज में कंपनियां कैंपस के लिये आने लगी थी.. मगर मैं और मेरे जैसे मेरे कई मित्र जिनके सारे डिग्रियों में(दशवीं, बारहवीं, ग्रैजुएसन) 60% से अधिक नहीं थे बस तमाशा देख रहे थे.. एक एक करके कई कंपनी आई और आकर चली गई थी.. मेरी पहली कंपनी आई.बी.एम. थी जिसने डिग्रीयों में कोई अंको का मानदंड निर्धारित नहीं कर रखा था.. उसकी लिखित परीक्षा हुई.. बाहर निकलने के बाद सभी बोल रहे थे कि पेपर बहुत टफ था और मेरा नहीं होने वाला है.. सभी बोल रहे थे सो मैं भी यही दोहरा रहा था.. रिजल्ट आने में 1-2 घंटा लगना था सो सभी होस्टल आ गये.. होस्टल आकर मैंने बस विकास को पूरे आत्मविश्वास के साथ कहा कि दूसरों को चाहे जो भी मैं कहूं मगर मैं जानता हूं कि मेरा रीटेन क्लीयर हो रहा है.. उस समय तक विकास का कैंपस काग्निजेंट नामक कंपनी में हो चुका था.. मैं भले ही किसी को कुछ और बताऊं मगर विकास से अपनी समझ में आज तक कभी झूठ नहीं बोला हूं.. जो मन की बात होती है बस वही कहता हूं.. थोड़ी देर बाद रिजल्ट आया और मेरा कहना सही निकला..
बाद में मुझे पता चला था कि लिखित परीक्षा में सर्वाधिक अंक प्राप्त करने वालों में से एक मैं भी था..कैंपस सेलेक्सन के समय कुछ भौतिक चीजों का बहुत महत्व हो जाता है.. जैसे किसी लड़के की टाई, किसी की कलम, तो किसी का कुछ और.. ये एक तरह का अंधविश्वास होता है जिसे नहीं नहीं करते हुये भी सभी मानने लगते हैं.. मेरे पास एक टाई थी.. जिसे अभी तक मेरे दो दोस्तों ने पहन कर इंटरव्यू दिया था.. सबसे पहले नीरज ने टी.सी.एस. के लिये पहना था और फिर विकास ने काग्निजेंट के लिये.. और दोनों ही का सेलेक्सन भी हुआ था.. अब मुझे ये तो याद नहीं है कि मुझपर उस अंधविश्वास का प्रभाव हुआ था या नहीं मगर वो मेरी ही टाई थी सो मैंने ही उसे पहना..
इंटरव्यू पहूंचने से पहले मन में कुछ भी भय नहीं था, जबकी मेरे जीवन का ये पहला इंटरव्यू था.. मगर इंटरव्यू हॉल के सामने का तो अलग ही माहौल था.. सभी के चेहरे पर हवाईयां उड़ रही थी.. थोड़ा मुझे भी भय सा हुआ.. मगर अपने तकनिकी ज्ञान पर थोड़ा भरोसा था और सीनियरों से सुना था कि आई.बी.एम. में तकनिकी सवाल ज्यादा महत्व रखते हैं.. सो मन को थोड़ा भरोसा था.. हां मगर उन दिनों अंग्रेजी बहुत अच्छी नहीं होने के कारण मुझे एच.आर. इंटरव्यू से घबराहट जरूर थी..
(क्रमशः...)
VIT पुस्तकालय
अभी तक मैं जितनी भी तस्वीर अपने कालेज की लगाता था वो सभी नेट से लिया हुआ रहता था.. कोशिश करूंगा कि आगे से अपने कैमरे की तस्वीर आपको दिखाऊं.. :)
पढ़ रहे है और अगली कड़ी का इन्तजार कर रहे है। :)
ReplyDeleteवाह जी वाह, पढ़ाई के दिन में नौकरी मिलने के क्या कहने, हमे तो मिली नही आगे शायद मिल जाये/ :)
ReplyDeleteदर्द में भी ये लब मुस्करा जाते हैं,
ReplyDeleteबीते लम्हे हमें जब भी याद आते हैं।
बीते लम्हे...
Bhai Prashant, puraane din yaad karwa diya...agli kadi ka intajaar hai.
ReplyDeleteमेरे पास एक टाई थी.. जिसे अभी तक मेरे दो दोस्तों ने पहन कर इंटरव्यू दिया था.
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वाह! हम जब स्टेशन मास्टरों का इण्टरव्यू लेते हैं तो बहुधा एक ही टोपी और टाई से ८-१० स्टेशन मास्टर काम चला लेते हैं - बारी बारी!:D
इन्तेज़ार में है अगले राउंड के..
ReplyDeleteरोचक है आपका कालेजिय अनुभव-जारी रहिये, पढ़ रहे हैं.
ReplyDeleteजारी रखो, पढने में बहुत मजा आ रहा है ।
ReplyDeleteहमने भी एक बार नौकरी का इंटरव्यू दिया था और उल्टा उनका इंटरव्यू लिया था, खूब मजा आया था ।
आगे क्या हुआ ? बताइये ...
ReplyDeleteरोचक गाथा है। आगे क्या हुआ, यह जानने की प्रतीक्षा रहेगी।
ReplyDeleteबहुते रोचक अनुभव. अच्छी शैली मे लिखा आपने.
ReplyDeleteआगे का इंतज़ार है
हूं...दिलचस्प है...और आगे का भया ?
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