Sunday, December 14, 2008

इंद्रियां अभी जिंदा है मेरी

आज सबसे पहले मैं ये बता देता हूं कि आज के इस पोस्ट में मैं जिस हिंग्लिश में बात करता हूं वही भाषा आपको पढ़ने को मिलेगी.. शुद्ध हिंदी पढ़ने की चाह वाले इसे ना पढ़ें..

अक्सर मैं अपने दोस्तों को कहता था कि खाना मेरे लिये कभी फर्स्ट प्रायौरिटी नहीं है, यह हमेशा मेरे लिये सेकेण्ड ही रहेगा.. वो सभी यही समझने लगे कि इसे खाना में कोई इंटेरेस्ट ही नहीं है.. मगर मैं जो कहता था उसका रीयल मिनिंग नहीं समझ सके.. उसका मेरे लिये मतलब यही रहता था कि अगर अपने आत्म सम्मान को खुद से दूर हटा कर बस भौतिक सुख के पीछे भागूं तो मुझमे और जानवरों में क्या अंतर रह जायेगा? यहां खाना का मतलब सिर्फ खाना ही नहीं है, हर तरह के भौतिक सुख हैं.. भौतिक सुख की चाह किसे नहीं होती? जीभ है तो अच्छा खाना भी ढ़ूंढ़ेगा, निगाहें है तो अच्छे नजारें भी तलाशे जायेंगे.. इंद्रियां यूं ही नहीं मरती है किसी की.. मगर मेरे लिये आत्म सम्मान कि कीमत पर नहीं..

आज भैया लगभग डांटते हुये समझा रहे थे और साथ में पूछ भी रहे थे कि ठीक से खाना क्यों नहीं खाते हो? जब उन्होंने मुझसे यह बात कही तो अचानक मुझे यह बात याद हो आयी.. खैर इसे माईक्रो पोस्ट समझ कर ही पढ़ें.. कालेज के किस्से जिसे मैंने आधे पर ही छोड़ रखा है उसे कल पूरा करता हूं..

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14 comments:

  1. यह तो मथुरा के चौबों का लक्षण है।

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  2. मजेदार वाकया !

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  3. इन छोटे छोटे किस्सो मे भी आनन्द पूरा आता है !

    राम राम !

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  4. पल बाँटने से यादें स्वादहीन नहीं होतीं!

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  5. नही भाई .पेट भर खा कर तब लिखो......तजा सामाचार मिलने तक भारत का स्कोर ४ विकेट पर २९३ है

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  6. This comment has been removed by the author.

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  7. sahi kahaa aapanaa bhi ye hi haal he..

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  8. अच्छा कहा है। पर शरीर एक ध्येय के लिये महत्वपूर्ण उपकरण है। उसका ध्यान तो होना चाहिये ही।

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  9. कानपुर में एक हिंगलिश अखबार आता है.. आई-नेक्स्ट. उसकी याद आ गई !

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  10. किन्तु वत्स, भौतिक सुख के आकांक्षी क्या आत्मसम्मान का अर्थ जानते भी हैं ?

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  11. रोचक वाकया है, सोचने को विवश करता है।

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