Thursday, December 11, 2008

हमारे अठारह, तेरे कितने?

पढ़ाई करो बस एक रात और उसमें भी चाहो कि नंबर आये अव्वल नंबर वाला.. ये कुछ इंसानों के लिये तो संभव है मगर मुझ जैसे साधारण प्राणियों के लिये असंभव.. मगर फिर भी ये आदत पूरे कालेज जीवन में नहीं बदली.. एक बार मैंने जोड़ा कि पूरे सेमेस्टर में कितने दिन मैं पढ़ाई करता था.. पांच जोड़ पांच, कुल जमा दस दिन दो इंटर्नल परीक्षा के लिये और दस दिन सेमेस्टर परीक्षा के लिये और चार दिन लैब परीक्षा के लिये.. सच कहूं तो लैब को छोड़कर बस उसी विषय पर दिल लगा कर पढ़ने कि कोशिश करता था जिसमें लटकने की कोई संभावना नजर आती थी, नहीं तो आराम से बैठे ठाले पिछहत्तर प्रतिशत से ज्यादा नंबर आ ही रहे हैं तो टेंशन काहे का? लैब भी इसलिये दिल लगाकर तैयारी करते थे क्योंकि बस प्रोग्रामिंग में ही तो दिल लगता था, और ऊपर से वो धीरे-धीरे प्रतिष्ठा का भी प्रश्न बन चुका था..

आज मैं आपके पास लेकर आया हूं कुछ कालेज के दिनों की कहानियां.. जिसमें मुझे सबसे पसंद है किस्सा-ए-साफ्टवेयर इंजिनियरिंग..

तीसरे सेमेस्टर में यह पेपर था.. जैसे किसी अन्य विषय कि तैयारी होती थी वैसे ही इसकी भी की गई.. परिक्षा से 3-4 दिन पहले से लेकर परीक्षा के दिन तक फोटो-कॉपी और नोट्स के लिये भागते रहे.. उस समय होस्टल में हम पांच मित्र इकट्ठे ही पढ़ाई किया करते थे.. विकास, शिवेन्द्र, रूपेश, संजीव और मैं.. साफ्टवेयर इंजिनियरिंग की पहली इंटर्नल परीक्षा से एक रात पहले लगे हुये थे सारे नोट्स को घोंट कर पी जाने में.. रात के 1-2 बजते-बजते सभी का बैटरी डाऊन होने लगा.. मगर विकास लगा हुआ था कि नहीं जब तक संतुष्टी ना हो तब तक पढ़ते रहना है..

"अरे यार तू और रूपेश क्यों चिंता करता है? तुम दोनों आज तक कभी फेल हुये हो क्या जो इस बार हो जाओगे? चिंता तो मुझे, संजीव और शिवेन्द्र को करना चाहिये.." मैंने उन दोनों से अपनी बात कही और खुद भी पढ़ने में जुट गया..


साफ्टवेयर इंजिनियरिंग वाली परीक्षा वाले दिन की गर्मी, रूपेश पस्त ;)

जैसे-जैसे रात गुजरती गई, वैसे-वैसे रोमांच और नींद अपनी चरम सीमा पर भी पहूंचता जा रहा था.. अंत में मैंने बस सारे फंडामेंटल बातों को ध्यान में रखा और सोने चला गया.. अगले दिन सुबह जल्दी उठ कर कोई नास्ता करने भी नहीं गया और लग गये पढ़ाई में.. खैर ऐसे ही होते-होते परीक्षा का समय भी आ गया.. हम सभी भागे परीक्षा भवन कि ओर.. आम तौर पर मैं और विकास पहले ही निकल लेते थे क्योंकि शिवेन्द्र और संजीव हमेशा परीक्षा शुरू होने के 5-10 मिनट बाद ही आते थे.. उस दिन भी वैसा ही हुआ.. परिक्षा शुरू हुआ और खत्म भी हो गया.. मैंने जो भी उत्तर लिखा था वो बिलकुल गलत नहीं तो शत-प्रतिशत सही भी नहीं था.. मैं सोच रहा था की शायद घींच-घाच कर पास हो जाऊंगा.. बाद में पता चला कि शिवेन्द्र 1 घंटे 30 मिनट का पेपर बस 45 मिनट में ही करके बाहर आ गया था.. सभी परेशान कि शिवेन्द्र इतनी जल्दी कैसे अपना पेपर खत्म कर दिया और सीना तान कर बाहर आ रहा है, मगर असलियत तो बस वही जान रहा था.. रूपेश का चेहरा ऐसे सूखा हुआ था जैसे कोई मर गया हो और हम सभी होस्टल ना जाकर शमशान जा रहें हों..

3-4 दिन बाद नंबर भी आने शुरू हो गये.. एक दिन साफ्टवेयर इंजिनियरिंग का भी नंबर आ गया.. पता चला कि पूरे 180 विद्यार्थियों में से 6-7 ही पास हुये हैं.. मेरे और शिवेन्द्र के 'नौ' नंबर आये पूरे 50 में.. अपने क्लास से जैसे ही बाहर आया सामने अर्चना दिखी.. पूछा कि तेरा कितना आया? वो बताने से मना कर रही थी कि नहीं बहुत खराब है.. जब मैंने आश्वासन दिया कि कितना भी खराब हो मगर मुझसे ज्यादा ही होगा तब जाकर उसने बताया कि उसके 11 या 13(अब ठीक से याद नहीं है) आये हैं.. अब उसने पूछा कि तुम दोनों के कितने आये? हमने साथ उत्तर दिया हमारे अठारह नंबर आये(हम दोनों ने अपना नंबर जोड़ कर बताया :)).. हम दोनों ऐसे भी लगभग साथ ही रहते थे, सो जो भी मिलता और पूछता कि कितना आया, दोनों बोलते हमारे अठारह आये..

वापस जब होस्टल पहूंचा तो विकास और रूपेश अलग से गाली दे रहा था मुझे, कि तुम्ही ने कहा था कि "तुम दोनों आज तक कभी फेल हुये हो क्या जो इस बार हो जाओगे?" लो तेरे कारण इस बार फेल हो गये.. ;) रूपेश को शायद 15 आये थे और विकास को 20 आये थे.. हां मगर एक बात तो जरूर हुआ कि उसके बाद से मैं जिस किसी को भी ये कहता कि आजतक तुम कभी फेल थोड़े ही हुये हो जो इस बार हो जाओगे? तो सामने वाले का अगला प्रश्न होता कि दुवायें मांग रहे हो या मना रहे हो मेरे फेल होने का?(साथ में गालियां भी) :)

ये बहुत लंबा पोस्ट हो गया है सो, अगले भाग में रूपेश और शिव का नर्वस ब्रेक डाऊन दूसरे इंटर्नल परिक्षा से पहले.. :)


होस्टल में मस्ती के पल
इस चित्र में शक्ल रूपेश की और हाथ मेरा है.. :)

23 comments:

  1. सच बहुत संभाल के रखे थे यह पल!

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  2. असफलता से शुरू करने वाला सफलता तक पहुँच जाता है। शुरुआत अच्छी है।

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  3. aise hi dino ko dekh raha hoon to padhke bada khaas anubhav hua

    par main kuch maamlo mein hostel ke baaki logo se kaafi alag hoon...pareeksha ke waqt bhi 10 baje sone ki ashcharyjanak aadat hai :)

    ab tak fail hone jaisi baat nahi huyee,par "approach" just pas hone waala hi rehta hai aur isme kai pareekchaao ka kooda hua hai :)

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  4. dossre sem mein Gadit ke paper mein back laga tha jo ek bahut bura anubhav tha...humaare yahaan rechecking ke liye apply karne ka concept hai...jisme ki mere ank bad gaye aur main pass ho gaya...lucky escape :)

    ab jo 3 sem bache hai wo nikal jaae bas..raat ko padhne ki adat to abne se rahee

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  5. जब सभी केवल परीक्षा के पहले दिन पढ़ते हैं तो सारे सैमेस्टर एक साल में भी पूरे किए जा सकते हैं । कभी समझ नहीं आया कि एक कक्षा पास करने के लिए एक साल क्यों दिया जाता है ?
    फोटो बढ़िया हैं और लेख और भी बढ़िया !
    घुघूती बासूती

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  6. इंजीनियरिंग के छात्रों को यही फायदा है - बिना पढे ही ढेर सारे नंबर आते हैं और नौकरी भी मस्त मिलती है. मैं गलती से डाक्टरी की लाइन में फँस गया! जम के पढाई की लेकिन फिर भी नंबर मुझसे दूर भागते रहे! और नौकरी के तो कहने ही क्या! साल में मात्र ३५ डाक्टरों की भरती होती है दिल्ली सरकार में! कभी-कभी लगता है कि "अब भी देर नहीं हुयी है बेटा, इंजीनियर बन जा"! :)

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  7. @अनिल जी - ऐसा बहुत लोगों सोचते है कि इंजिनियरिंग में बिना पढ़े खूब नंबर आते हैं.. मगर मेरा अपना विचार है कि जिंदगी में कम से कम एक बार आपको मेहनत करनी ही होती है, चाहे पहले करो या बाद में.. मैंने बी.सी.ए. में खूब जम कर मेहनत की थी सो एम.सी.ए. में बिना मेहनत के ही नंबर आते थे.. नहीं तो मैंने ऐसे लोगों को भी खूब देखा था जो जी-तोड़ मेहनत करके भी अच्छे नंबर नहीं ला पाते थे.. और जो लोग उस समय मेहनत नहीं किये उनसे जिंदगी मेहनत करवा रही है..
    धन्यवाद :)

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  8. कोलेज के किस्से भी बडे़ ्मजेदार होते हैं..

    आप एसे किस्से लिखते रहिये.. हमारी भी यादे ताजा होगी

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  9. कोलेज के किस्से भी बडे़ ्मजेदार होते हैं..

    आप एसे किस्से लिखते रहिये.. हमारी भी यादे ताजा होगी

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  10. किस्से पढ कर मजा आगया ! आप तो लिखते रहो और ये गल्घोंटू किसका फ़ोटु है ? बडा डर लग रहा है ! :)

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  11. मजेदार लिखा है PD. ये कॉलेज की कहानियाँ होती ही ऐसी हैं. पर उसके बाद फ़िर पास हुए कि नहीं?

    :D

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  12. लिखते रहो प्रशांत, इन्हें पढ़ कर हमें भी अपने कालेज के दिनों की याद आ जाती है।

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  13. कालेज
    नो नालिज विदाउट कालेज

    पढोगे लिखोगे बनोगे खराब

    खेलोगे कूदोगे बनोगे नवाब

    अच्‍छा लिखा

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  14. कालेज के किस्से बहुत अच्छे ..यह यादे बहुत अच्छी लगती है..फोटो बहुत बढ़िया है

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  15. कल याद आएँगे ये पल

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  16. बहुत नंबर आते थे आपके भाई... :-) अपनी पोल फिर कभी खुलेगी !

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  17. बस पास हो गये बेटा यही शुक्र मनायो

    रोल नंबर एक होने का दर्द ....हमसे पूछो कितना होता है ?

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  18. वे दिन और दोस्त, कहानियां बन जाते हैं।
    पर जब याद आते हैं तो बहुत याद आते हैं।

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  19. दुखती रग पे हाथ न रखिये भैया... कहाँ से ये सॉफ्टवेर इंजीनियरिंग के पेपर का किस्सा आपको याद आ गया...???
    "हम पे जो बीती, माना वो रात भारी थी...
    याद दिलाया तो जाना, अहसास अब भी तारी थी..."
    हम भी भुक्तभोगी हैं भैया, एक ही कॉलेज, एक ही डिग्री... बस एक साल पीछे आपसे...!!! कैसे भूलें?

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  20. पुराने दिन याद आ गये हमें अपने।

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  21. बहुत सुंदर, याद दिला दिये बीते हुये दिन.कोई लोटा दे मेरे बीते हुये दिन..... ओर यह गीत गुण गुनाने लगा आप का लेख पढ कर, ओर यह गला किस का घोटा जा रहा है?? चित्र बहुत ही प्यारे लगे, बिलकुल अपने से.
    धन्यवाद

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  22. शिक्षा भी ,मनोरंजन भी, प्रेरणा भी, अनुभव भी

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