"काम.. काम.. और बस काम.. और क्या कर सकता हूं?"
"कित्ता काम करेगा भाई? चल छोड़ ये सब, पता है? कल तेरी भाभी मुझे सॉरी बोली.. :)"
"अच्छा!!"
"हां, अब ये मत पूछना कौन वाली? :D"
"ये कंफ्यूजन तो है ही कि कौन वाली?"
"अबे वही, जब तू इस ब्रांच में था तब मैं उस पर लाईन मारता था.."
"फिर भी कंफ्यूजन है, कि कौन वाली? अबे तू भी तो इतने सारे पर लाईन मारता था.."
"अबे घबरा मत तेरी एंजलीना जोली पर अभी भी लाईन नहीं मारता हूं.. बस कभी हाय-हेलो हो जाता है.."
"तो फिर कौन है?"
"अबे वो एच.आर. फोर्थ फ्लोर वाली.."
"क्या सच में? वो सॉरी बोली!! क्यों भाई??"
"यही तो सीक्रेट है.. मगर कल मुझे सॉरी बोली.."
"बता भी दे कि क्यों बोली?"
"ठीक है, घर आकर बताता हूं.. बड़ी लम्बी कहानी है.."
"ठीक है.. चल अब काम कर और मुझे भी करने दे.."
ये लम्बी कहानी शिवेन्द्र को रात में भी पता चले या ना चले, मगर आपको सुना देता हूं.. दरअसल लम्बी छोटी कहानी जैसी कुछ बात नहीं है, वो तो हुआ यूं कि मैं कल आफिस से घर जाने के लिये निकल रहा था.. मेरे ब्रांच में सबसे नीचे वाले फ्लोर पर रिसेप्सन के बगल में एच.डी.एफ.सी. का ए.टी.एम. मशीन है जिसमें दरवाजा ना होकर एक परदा टंगा हुआ है क्योंकि वो मशीन बस मेरी कंपनी के कर्मचारियों के लिये ही है.. और जिस लड़की के बारे में मैं बाता कर रहा था वो वहां पैसा निकाल कर परदे से बाहर निकल रही थी और गलती से उसने अपना पैर मेरे पैर पर डाल दिया.. फिर अकचकाकर सॉरी बोली और मैंने इट्स ओके कहा.. फिर वो अपने रास्ते और मैं अपने रास्ते..
इसे दोस्त के साथ हुई एक चुहलबाजी समझ लें.. जिसके लिये मैंने बस यूं ही सस्पेंस बना डाला.. :)
ये सस्पेन्स भारी ना पड़ जाये प्रशान्त भाई
ReplyDeletebhalemanus, pitoge kisi din is suspense ke chakkar me :D
ReplyDeleteपीट जाओगे भाई तुम :)
ReplyDelete.........eeh .....this is not fair
ReplyDeleteआप दिल्लगी कर रहे हैं, चलेगा । लेकिन उन्होंने 'दिल की लगी' समझ ली तो भारी पड जाएगा ।
ReplyDeleteथोडा सम्भल कर ! मुझे आपके मिजाज कुछ ठीक नही लगते ! लगता है राहू आपके शुक्र मे भ्रमण रत हो गया है !:)किसी अच्छे पन्डित से पूजा पाठ करवा कर १०१ ब्लागरों को दक्षिणा सहित भोजन करवाओ मित्र !
ReplyDeleteइतनी दिल्लगी चलेगी भाई।
ReplyDeleteआईला !
ReplyDeleteहाय पुराने दिन,
ReplyDeleteकालेज के होस्टल में बहुत से बौराए फिरते थे कि आज तो बात हो गयी, बात हो गयी | सुबह क्लास में जा रहे थे सामने से जूनियर निकली और बोली गुड मोर्निंग.... आज तो बात हो गयी, आज तो बात हो गयी ....:-)
ये भी खुब रही.. वैसे ख्याल अच्छा है... कहानी बड़ी बनाने में क्या जाता है..
ReplyDeleteये ताऊ बिल्कुल सही कह रहे हैं। हमारा पता मालुम है न दक्षिणा के लिये!
ReplyDeleteयही तो है - काम....्काम.......काम
ReplyDeleteऐ भाई ऐसे टांग फांसी मत खेलिए पब्लिक में ! ज्ञान जी के साथ हमारा भी नाम लिस्ट में लिख लीजिये.
ReplyDeleteवैसे एक बात साफ़ है एचआर डिपार्टमेन्ट ही काम का होता है हर जगह, बाकी सब बेकार, हमारे यहाँ एटथ फ्लोर वाली है :-)
मुबारक़ हो भाई लोगों किसी को चौथा फ्लोर तो किसी को आठवां, यहां तो एच आर ग्राउंड फ्लोर पे है और क्वालिटी भी ग्राउंड फ्लोर पे ही है इन की.
ReplyDeleteटैक्निकल डिपार्ट्मेंट में ही हाथ पैर मारने पङते हैं और उसमें भी कम्प्टीशन बहुत है.
बात कुछ और भी है महाराज..वरना सॉरी तो न जाने कितने बोल जाते हैं, किसे याद रहता है. :)
ReplyDelete:)
ReplyDeleteमज़ा आ गया।कालेज के दिन याद आ गये पता नही कितनी सारी भाभियां हुआ करती थी उन दिनो हालांकि उनमे से कुछ अब सच मे भाभी बन गयी है।
ReplyDeletehe he.. mast post hai bhai :-)
ReplyDeleteNew Post :- एहसास अनजाना सा.....
बहुत अच्छे प्रशांत भाई.
ReplyDeleteक्या करियेगा, ये बड़े लोग हमारी व्यथा कहाँ समझेंगे?ये रेसनिक-हालीडे, जेटली-ब्रेटली की किताबों और बंसल की क्लासेज के बाद इस स्ट्रीम में जो XX क्रोमोसोम आते भी हैं, उन्हें फी-मेल नहीं, नॉन-मेल कहना ज्यादा उचित होगा.
अब मजबूरी समझिये या खुशी, यहाँ तो तीन-तीन रूम पार्टनर एक पर ही डोरे डाल रहे हैं.अब किस्मत तो एक की ही खुलेगी. बाकियों की तो भाभी ही हुई न.
sametime ? TCS me ho ka bhai ?
ReplyDeletenahi ji.. CSS me hun.. sametime hamare yahan bhi use hota hai.. Sametime IBM ka product hai aur iske kuchh part hamari comany me bhi develop huye hain, bcoz IBM hamari company ka bahut bara client hai.. :)
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