मुझ अदने से इंसान को कोई बस इतना समझा दे कि सभा में बैठ कर यादव जी द्वारा धूम्रपान करने को भी कोई जायज ठहरा सकता है? जैसा कि कुछ दिन हुये धूम्रपान को लेकर नये नियम बनाये गये हैं, उसमें किसी भी सार्वजनिक जगह पर धूम्रपान पर पाबंदी है.. इसमें सभागार भी आता है.. क्या राजेन्द्र यादव जी को नियम पता नहीं हैं? या फिर वह खुद को नियम से ऊपर समझ बैठे हैं? या फिर उनका सोचना यह है कि बुद्धिजीवियों कि बुद्धिमता सभा में सिगार पीने से बढ़ जाती है? अगर उन्हें धूम्रपान संबंधित नियमो का पता नहीं था तो उनके इस दुर्भाग्य पर आगे मुझे कुछ नहीं कहना है..
इस संदर्भ में ज्यादा जानकारी के लिये आप यहाँ, यहाँ और यहाँ पढ़ें..
अगर ऐसे समय में पान चबाना- च्युंगम चबाना गलत है तो सिगार पीना गलत है, अन्यथा नहीं.
ReplyDeleteनैतिकता के ख्याल से देखा जाए तो पान खाना या च्यूइगम चबाना गलत है.. मगर मेरा प्रश्न यहाँ नैतिकता से सम्बंधित नहीं है.. कानून से सम्बंधित है..
ReplyDeleteवो क्या है कि लेखक को अपना व्यक्तित्व दिखाने के लिये कुछ चटाक पटाक करना पड़ता रहता है, बेचारे राजेन्द्र यादव के साथ में भी कुछ एसा ही है. इन्हें बिना पाइप के लोग पहचानते ही नहीं सो क्या करें... अब भले ही पियें या न पियें, मुंह में दबाये तो रखगे ही हैं.
ReplyDeleteकहीं पढ़ा था कि ये शायद रात को सोते समय भी पाइप दबा कर सोते हैं
जैसे बुद्धिजीवी कहलाने के लिये कंधे पर झोला लटकाना जरूरी होता है शायद उसी प्रकार "बड़े प्रगतिशील लेखक" कहे जाने के लिये चुरुट पीना जरूरी होता होगा… मैंने तो कभी सिगार देखा नहीं है, हाँ कास्त्रो के फ़ोटो बहुतेरे देखे हैं…
ReplyDeleteहो सकता है बुद्धिजीवियों के पाइप ,चुरट या चिलम से धुआं ही ना निकलता हो । या वो सिर्फ़ दिखाते हो सुलगाते ही नहीं हों । जब आग नहीं तो धुआं कैसा ? जब धुआं नहीं तो पान किया ही कब ? इन बुद्धिजीवियों की हर बात हर अदा निराली है ....। वैसे भी कानून आम आदमी के लिए होते हैं खास तो उन्हें जेब में लिए फ़िरते हैं ।
ReplyDeleteभगवान् को न मानने वाले आदमी के लिए कानून क्या बड़ी बात है|
ReplyDelete"कारण ऐसी गोष्ठीयों से दूर रहने कि प्रकृति.. "
ReplyDeleteकैसी गोष्ठियां भाई....आप गोष्ठी में आते तब पता चलता कि आपने क्या "मिस" किया...हिंदयुग्म की गोष्ठियां कुछ अलग ही होती हैं...कृपया हमारे अभियान को किसी भी गोष्ठी कहकर छोटा न करें...
निखिल आनंद गिरि
जाहिर सी बात है कि ग्लत हमेशा गलत होता है !आप चाहे जिस हैसियत के हों ! हो सकता है कि हैसियत की वजह से आप कानून से बच जाये पर आपकी आत्मा कचोटेगी !
ReplyDelete@ blog pathak साहब , आप शायद बहस को नि्जी रुप से ले जारहे हैं ! यहां बात सिर्फ़ कानूनी पहलू की हो रही है तो निजी जिवन मे कौन क्या कर रहा है उसको बीच मे लाने से विषयान्तरण होता है ! अगर स्वस्थ बहस का मजा लेना है तो मेरी सभी से गुजारिस है कि विषय वस्तू पर केन्द्रित रहा जाये !
रामराम !
अरे छोडो भी, बिचारे बुजुर्ग आदमी हैं, कहां आप लोग पीछे पड गये।
ReplyDeleteजिस आदमी को देश के क़ानून का जरा भी ख्याल न हो और पूरी उद्धतता के साथ पब्लिक प्लेस पर धूमपान निषेध क़ानून की धज्जियाँ उडा रहा वह काहे का साहित्यकार ! आश्चर्य यह भी कि किसी ने उन्हें टोका तक नहीं !! मैं होता तो उन्हें टोकता और क़ानून का संज्ञान करा कर राजपत्रित अधिकारी की हैसियत से सिगार जब्त कर लेता !
ReplyDeleteईश्वर को मानना न मानना व्यक्तिगत मामला है. शेखरजी तब तो भगवान को मानने वाले परम शरीफ लोग होते होंगे? मेरा अनुभव तो कुछ और ही कहता है.
ReplyDeleteसार्वजनिक जगहों पर धूम्रपान अब अपराध है तो इसका सम्मान होना चाहिए. वैसे अब बुजूर्ग को बक्श देना चाहिए. आखिर वे निमंत्रण देने पर आए थे.
हिन्दी को शिखर पर ले जाने का इरादा लिए जब हिन्दी के समर्थन में इतने लोग जुटें, वहां आप न पहुँच कर कौन सा हिन्दी का भला कर रहे हैं, समझ में नही आती बात....आखिर इस देश में अपनी बात कहने का अधिकार हम किसी को क्यों नही देते... अपने अनुभवों के आधार पर अगर यादव जी ने कुछ कहा है तो उस पर बहस छेडिये, चर्चा कीजिये, पर व्यक्तिगत आरोप क्यों भाई...
ReplyDeleteवहाँ उपस्थित लोगों ने उन्हें न तब रोका और न ही आपत्ति जताई तो अब बहस कैसी??
ReplyDeleteआपकी पीड़ा यथार्थ है. यादव जी को सिगार नहीं पीना चाहिए था. सवाल इस बात का भी है की किसी ने क्यों उन्हें याद नहीं दिलाया. बेचारे अफ़लातून बने रहे. नव वर्ष की ढेरों शुभकामनाएँ.
ReplyDeleteभाई जी,आपको काफ़ी समय से पढ़ रहा हूँ.दुःख है की आप भी ऐसा सोंचते हैं.हम इतने RETROGETIVE क्योंकर हो गए?
ReplyDeleteखैर,
दो बातें कहना चाहूँगा-
१. नैतिकता और नियम कानून की बातें सिर्फ़ सरकारी गजट और किताबों में अच्छी लगती हैं,अगर आपको ऐसा लगता है की उनका मंच पर धुम्रपान करना अनुचित है तो यह आपकी बेहद व्यक्तिगत राय हो सकती है.
२.महोदय, बुद्धिजीवी होना न होना एक बात हो सकती है,पर आज की हमारी समस्या मुर्ख होती जा रही बुद्धिजीविता(INTELACTUAL ILLITRACY ) पर है.
उम्मीद करता हूँ...
आलोक सिंह "साहिल"
बीन बजाने की तर्ज़ पर युह नया मुहावरा गढ़ सकते हैं- बैल के आगे चुरुट जलाना?
ReplyDeleteउनको समझ नही होगी शायद..ईमानदारी से कहूँ तो मुझे उनकी भी पूरी गलती लगती है जिन्होने उस समय कुछ नही कहा,या जो लोग अभी उनके बर्ताव को जायज़ बोल रहे है...
ReplyDeleteगलती तो है...चाहे कितने भी बड़े हो वो..
Well you want to hang Rajendra Yadav for smoking in a country where, hard core criminals and murders are siting in parliament and making laws.
ReplyDelete'' नववर्ष मंगलमय हो ''
ReplyDeleteजी नही आप की नज़र कमजोर नही , ऐसा आप के दुश्मनों के साथ हो | असल में मैं ''मोज़िला फायरफ़ॉक्स '' का प्रयोग करता हूँ ,उसमें फ़ॉन्ट सही दिख रहा था ,आप की टिप्पणी से शंका होने पर गूगल क्रोंम में चेक किया ,फ़ॉन्ट छोटे दिखे पर्याप्त सुधार कर दिया है , पुनः फीडबैक देने का अनुरोध है, आप को हुए कष्ट के लिए खेद है | '' नववर्ष मंगलमय हो ''|\
रही ब्लॉग पाठक जैसे टिप्पणी कारों की तो लगता ही शायद वे 'साद्त हसन मंटो ' के नये अवतार हैं \ऐसे की टिप्पणी पर कभी भी कोई प्रतिक्रिया देने से बचें तो उचित होगा||
और रही राजेंद्र यादव की बात तो इन सब बातों पर इतना पाजेसिवे ना हुआ करो राजेंद्र यादव के हिन्दी को योगदान को देखें बस | अक्सर आप ऐसे लोग चुरुट मुह में लगाए रहते हैं जलते नही |
शुभाकांक्षी अन्योनस्ति
आप की [आ] च्यूतिया नंदन कथा पढ़ी बधाई हो इसी सन्दर्भ कबीरा पर देखें.... संवेदनाएँ
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