जब हमने अपनी-अपनी कॉपी देखना शुरू किया तब पता चला कि कॉपी चेक करने वाली मैम को हूबहू किताबी भाषा चाहिये थी और जिसने भी किताबी भाषा का प्रयोग बखूबी किया था बस वही पास हुआ था.. अब जबकी समझ में आ ही गया था तो हम सभी खुद को भरोसा दिला रहे थे, "बेटा तू भी रट्टा मार सकता है.. जो कभी नहीं किया उसे आज कर ही डालो.. मतलब रट्टा मारो.." विकास ने तो यहां तक एलान कर दिया कि दूसरे इंटरनल में जो भी 45 से ज्यादा नंबर ले आयेगा वो साला रट्टू तोता होगा.. वैसे हमने बाद में अपने बीच एक रट्टू तोता को भी पाया, जिसके बारे में मैं बाद में बताता हूं..
जिंदगी में पहली बार मुझे अपने भीतर छुपी इस कला का भी पता चला कि मैं भी रट्टा मार सकता हूं.. दूसरों का तो पता नहीं मगर मैं और विकास दूसरे इंटरनल के 15-20 दिन पहले से ही रट्टा मारना शुरू कर दिये.. हर दिन और कुछ पढ़े चाहे ना पढ़ें मगर एक-दो पन्ने की साफ्टवेयर इंजिनियरिंग जरूर हो जाया करती थी..
यूं ही करते-कराते दूसरा इंटरनल वाला दिन भी आ गया.. उस रात सभी की हालत पहले से भी खराब हो रही थी.. खासतौर पर शिवेन्द्र, रूपेश और संजीव की.. क्योंकि हम सभी रट्टा मारने में सबसे बड़े फिसड्डी थे सो जहां रट्टा मारने की बात आई वहां हालत खराब होनी ही थी.. कुल मिलाकर सबसे अच्छे हालत में विकास था और उसके बाद मैं.. अगली सुबह शिवेन्द्र ने परिक्षा हॉल जाने से मना कर दिया कि नहीं मैं नहीं जा रहा हूं, अगले सेमेस्टर में फिर से यह पेपर दे दूंगा.. उसकी हालत लगभग नर्वस सिस्टम फेल होने जैसी हो चुकी थी.. हम लोग किसी तरह समझा-बुझा कर उसे ले गये कि कुछ भी नंबर आये, मगर चलो और परिक्षा दे ही दो..
परिक्षा देते समय जितना कुछ पढ़ा था, लगा जैसे सब भूल गया हूं.. खैर कुछ दिन बाद नंबर भी आये और हममे सबसे ज्यादा विकास को ही आये.. पूरे 46, पचास में.. उसी ने कहा था कि जिसका 45 से ज्यादा आयेगा वो होगा पक्का रट्टू तोता और उसने खुद को रट्टू तोता साबित कर ही दिया.. मेरे आये थे 28 या 29.. रूपेश का याद नहीं है मगर शिवेन्द्र और संजीव फिर से पास नहीं कर पाये थे.. पास मार्क 25 था..
फिर सेमेस्टर परिक्षा ने भी दस्तक दे ही दिया.. साफ्टवेयर इंजिनियरिंग शायद अंतिम पेपर था.. जब मैं परिक्षा भवन से बाहर निकला तब मुझे पूरा भरोसा था कि मैं पास तो हो ही जाऊंगा, विकास को सोचना ही नहीं था कि पास होगा या नहीं.. उसे तो अच्छे नंबर की चिंता थी.. शिवेन्द्र और संजीव सोच रहे थे कि अगले सेमेस्टर में फिर से देने कि तैयारी करनी परेगी..
क्लास रूम कि एक तस्वीर, क्लास खत्म होने के बाद का
जब मैं परिक्षा दे कर बाहर आया था तब मुझे पूरा भरोसा था की मैं पास हो जाऊंगा मगर जैसे-जैसे मैं होस्टल की ओर बढ़ रहा था वैसे-वैसे मुझे पता चल रहा था कि मैंने इसका उत्तर गलत लिखा है, तो उसका उत्तर गलत लिखा है.. फिर जोड़-घटाव करके देखा तो पाया जितना मैंने सही लिखा है उसमें अगर पूरे नंबर मिल गये तभी पास होऊंगा, नहीं तो मुझे भी तैयारी शुरू करनी ही चाहिये..
अगले सेमेस्टर की नई सुबह.. रिजल्ट आने से पहले एक दिन मैं और विकास कालेज कैंपस में घूम रहे थे और आने वाले रिजल्ट के बारे में बात कर रहे थे.. ऐसे ही जोड़कर देखा तो पाया कि विकास को अगर पूरे सौ नंबर आते हैं तो उसका 'A' ग्रेड बनेगा और 'S' ग्रेड आने के लिये उसे 108 नंबर चाहिये.. और संयोग ऐसा कि उसी शाम रिजल्ट आया.. नेट पर हमने चेक किया तो पता चला कि विकास के 'S' ग्रेड हैं.. और जिसके पास होने की कोई उम्मीद नहीं थी वह भी पास कर गया है.. कुल मिलाकर हमने यही निष्कर्स निकाला की सभी को ग्रेस नंबर मिले हैं इसी कारण सिर्फ विकास ही नहीं और भी कुछ विद्यार्थियों के सौ से ज्यादा नंबर आये थे.. ऐसा ही कुछ सेकेण्ड सेमेस्टर में माईक्रोप्रोसेसर के पेपर में भी हुआ था..
क्लास के बाहर का गैलरी
तो ऐसे हमे सौ में सौ से ज्यादा नंबर भी मिलते थे.. मगर मुझे कभी नहीं मिला.. ;) जब विकास का नंबर देखा था तब मुझे बचपन में कही पापा की बाता याद हो आयी.. वो परिक्षा के समय आशीर्वाद देते थे कि ऐसा लिखना कि मास्टर बोले बेटा कमाल लिखा है सो इसे सौ में एक सौ आठ दे दूं.. :D
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मेरे पिछले पोस्ट पर मेरे कालेज के छोटे भाई क्षितिज ने कमेंट किया था और पूछा था की भैया आपको भी कहां से इस साफ्टवेयर इंजिनियरिंग कि याद आ गयी? उसका जवाब है, "क्या बताऊं भाई, कालेज में पीछा तो छूटा मगर उस दिन मुझे एक ट्रेनिंग लेने के लिये रिस्क एनालिसिस पढ़कर डाक्यूमेंट बनाना पर रहा था.. सो बरबस ही उसकी याद हो आयी.. अब समझ में आ गया है कि इससे जीवन भर पीछा नहीं छूटने वाला है..":)
आप कभी क्षितिज के ब्लौग पर जाईये और उसकी नज्में पढ़िये.. बहुत शानदार लिखता है.. मगर उसे ज्यादा पाठक कभी नहीं मिलते हैं.. सच कहूं तो इतना बढिया नज्म मैं लगातार कभी नहीं लिख सकता हूं..
........... मगर मुझे कभी नहीं मिला!!!!!
ReplyDeleteबहुत खूब भाई, नम्बर का क्या आज कल ज्यादातर मास्टर जी की अनुकम्पा पर निर्भर करता है।जिसमें डर होता है फेल हो जायेगे उसमें अर्धशतक लग जाता है और जिसमें गोल्डेन जुबली की चांस होती है उसमें फेल हो जाते है। :)
ReplyDeleteकिसी चीज को हूबहू याद कर लेना भी एक सद्गुण है। जो जीवन भर लोगों को आगे बढ़ाता है।
ReplyDeleteमैं इस ब्लोग में प्रायः आते रहता हूँ क्योंकि यहाँ आने पर कुछ समय के लिये अपने कॉलेज के दिनों की याद आ जाती है।
ReplyDeleteमैंने अभी-अभी दो तस्वीरें लगाई हैं जिसे कल रात लगाना भूल गया था, उसे देखने आप फिर से आ सकते हैं..
ReplyDelete@ अवधिया जी - मुझे पता ही नहीं है कि आप भी हमारे चिट्ठे पर आते हैं.. धन्यवाद..
@ महाशक्ति - क्या बात है भाई, आप भी बहुत दिनों बाद दिखे हैं?
@ दिनेश जी और प्राईमरी के मास्सब जी - बहुत-बहुत धन्यवाद.. अपना आशीर्वाद बनाये रखें..
तस्वीरें देख कर तो हमको भी अपना क्लास रूम याद आगया !
ReplyDeleteराम राम !
सुबह पढ़ा था.. सोचा बाद में तस्सली से दुबारा पढ़ कमेंट करेंगे.. अच्छा हुआ न.. दुबारा आये तो तस्विरें भी मिली..
ReplyDeleteवैसे रटंत विध्दया(? सही नहीं टाईप कर पा रहा) में मैं तो बहुत कमजोर था.. रात तो रटा और सुबह को सफा वाली बात..
आज पोस्ट पढकर तो हमें बीते दिनों की याद आ गई।
ReplyDeleteआगे पाठ,पिछे सपाट,
ReplyDeleteगुरूजी बोले सोलह दूनी आठ्।
कालेज के दिनो को याद,सुनहरे सपने सी लगती है। अच्छा लिखा ,बधाई।
mast likha hai yaar. ratne me to meri bhi halat enough kharab thi, IIMC me ek paper hota tha,typography...kisi din batayenge ki kaise bhagwan-bhagwaan kar ke paas huye the.
ReplyDeleteबढ़िया .कालेज की बातें याद दिला देते हैं आपके लेख
ReplyDeleteअच्छा है, परीक्षा में नम्बर रटने को याद रखे हुये हैं आप। हमारी स्मृति में तो वह आर्काइव्स में भी नहीं बचा! :)
ReplyDeleteमेरी तो यही दुआ है कि आपको भी सौ में एक सौ आठ मिलें।
ReplyDeleteआईला .....एक्साम का जिक्र होते ही हम तो सरक लिया करते थे भाई.....तुम सौ की बात कर रहे हो.....यहाँ ५० लाना मुश्किल होता था
ReplyDeleteभाई, आप तो जानते है कि बिल्ली को शेर की मौसी कहा जाता है क्योंकि बिल्ली ने शेर को शिकार के सब गुण बताए - एक को छोडकर, और वह था पॆड पर चढना। उसी तरह आपको विकास ने रट्टा का गुर सिखाया पर उसका असली गुर नहीं बताया। पलीते कैसे छुपाएं और कापी कैसे मारें! :)
ReplyDeleteकालेज के दिनों की याद दिलाने वाली सारी पोस्टें मुझे अत्यधिक रुचिकर लगती हैं लेकिन जिनमें परीक्षा की बातें होती हैं उन्हें डीलिट करने की इच्छा होती है । ऐसा लगता है मानो मेरी हकीकत उजागर करने के लिए ही परक्षा की बातें लिखी जा रही हों । आज भी जब आपने नम्बरों वाला सिलसिला पेश किया तो मैं डरता रहा कि कहीं मेरी, गणित में साढे सात परसेण्ट मार्क्स वरली बात सामने न आ जाए ।
ReplyDeleteअच्छी पोस्ट । कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन वाली पोस्ट ।
humaare number kahaan milte hai kabhi ye pata nahi chalta..kabhi kahaan kat jaate hai ye maloom nahi hota...Engineering ki yehi khoobsoorati hai
ReplyDeletegrace number is maar Computer waalo ko ek paper mein mila...1.5 ghante ke paper ki jagah aisa papaer aaya tha jo 4 ghante emin bhi na bane,par baad mein itne number aaye ki jashn ka maahol tha :)
Software Engineering Ka itna Darr :)
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