Tuesday, November 11, 2008

मेरे हिस्से का चांद



कभी देखा है उस चांद को तुमने?
ये वही चांद है,
जिसे बांटा था तुमने कभी आधा-आधा..
कभी तेज भागती सड़कों पर,
हाथों में हाथे डाले..
तो कभी उस पहाड़ी वाले शहर कि,
लम्बी सुनसान सड़क पर..
तुमने तो रेल कि,
खिड़की से झांकते चांद को भी..
बांट लिया था आधा..
मेरे आंगन में आज,
चांद चमक रहा है आधा..
शायद तुम्हारे हिस्से का है!
मेरे हिस्से वाला चांद,
तुम्हारे आंगन में होगा..
उसे लौटा दो..
मेरे हिस्से का चांद मुझे लौटा दो..



18 comments:

  1. सुंदर ! कुछ याद दिलाता हुआ.

    ReplyDelete
  2. कविता झिलायी, अब हमें भी झेलो :-)

    कालेज में वोदका मार के तुम
    डिपार्टमेंट की पानी की टंकी पर
    सीढी से चढ तो गये थे,

    लेकिन उतरने के लिये
    दारू उतरने के इंतजार में,
    बडी देर तक चांद को निहारा था ।

    एक दम अठन्नी की माफ़िक चमक रहा था चांद।

    ReplyDelete
  3. @ नीरज जी - वाह नीरज जी.. क्या कविता सुनाई है.. :)
    मैंने तो कभी इस नजरिये से सोचा ही नही था.. आगे से ऐसे भी सोचूंगा.. मेरे विचारों को नया आयाम देने के लिए धन्यवाद.. :D

    @ मीत जी - बहुत बहुत धन्यवाद..

    ReplyDelete
  4. इत्ते साल बाद कौन लौटायेगा? वैसे बांटा काहे था भाई?

    ReplyDelete
  5. बहुत सुंदर कविता ! पढ़कर मन प्रसन्न हो गया । चाँद वापिस मत मांगिए ।
    घुघूती बासूती

    ReplyDelete
  6. सुंदर ,मगर आपका आधा चांद है किधर्। दिल खुश हो गया आज दिन तो अच्छा गुज़रेगा।

    ReplyDelete
  7. चांद तो सबका है
    उसे बांटने का अधिकार किसने दिया
    क्या इतने बड़े "दादा" हो कि
    खुद को मालिक समझ लिया?

    ReplyDelete
  8. भाई जो चीज एक बार बाँट दी सो बाँट दी ! भूलो यार उसको ! फ़िर नया चाँद ढूंढ़ लो ! कौन सी कमी है चांदों की ! :)

    ReplyDelete
  9. bahut khu sundar ehsaas

    ReplyDelete
  10. waah ,kya baat hai..aapki kavita pehli baar padhi

    ReplyDelete
  11. वाह क्या बात है? आजकल बहुत बाँट-बटौव्व्ल हो रही है :-)

    ReplyDelete
  12. आदमी में यही दिक्कत है - बंटवारा चाहता है पूरी चीज का।

    ReplyDelete
  13. आजकल लगता है चाँद बांटने का माहौल बना हुआ है....अनुराग जी कि पोस्ट पर भी उनके हिस्से का आधा चाँद चमक रहा है! बहरहाल ....बहुत सुंदर कविता...

    ReplyDelete
  14. बहुत ही अपीलिंग है। संवेदनाएँ शेष हों तो कोई भी भावुक हो उठेगा। लेकिन यथार्थ संभवतः भावनाओं से बहुत अलग होता है।

    ReplyDelete
  15. वाह भई वाह!! क्या खूब..बहुत उम्दा!

    ReplyDelete
  16. बहुत सुंदर रचना प्रशांत जी. लेकिन ये सब इस चाँद को बाँटने से पहले सोचना चाहिए था, अब दी हुई चीज़ कोई क्यो वापस करेगा?

    ReplyDelete