Tuesday, November 25, 2008

क्रिकेट कि दिवानगी, बरसात और बैंगलोर/बैंगलूरू

रविवार का दिन, सुबह आसमान साफ था.. मैं बैंगलोर में बेलांदुर नामक जगह पर अपने कालेज के मित्रों के घर पर रुका हुआ था.. वहां से चंदन के घर जाना था.. चंदन भी साथ में ही था.. रात काफी देर से सोये थे, रात भर गप्पों और ताश का दौर चलता रहा था.. छोटे से रूम में ही क्रिकेट भी चला था.. शनिवार शाम जब मैं और चंदन वहां पहुंचे थे तब बत्ती गुल थी और फ्लड लाईट में ही क्रिकेट चल रहा था.. टेनिस कि गेंद और बल्ला, साथ में शू स्टैंड विकेट.. दो तरफ से इमरजेंसी लाईट जल रही थी.. अब सामने कंप्यूटर का मानिटर रखा हो या कुछ भी, उससे कोई फर्क नहीं परने वाला था.. बस दे दनादन क्रिकेट चालू..

सच कहूं तो बहुत दिनों से भूल सा गया था कि क्रिकेट में दिवानगी भी होती है.. बहुत दिनों बाद इसे महसूस किया.. जब तक क्रिकेट के मतवालों का झुंड ना मिले तब तक इसे महसूस नहीं किया जा सकता है.. पुराने दिन याद आ गये जब मैं पटना में रहता था और पढ़ाई के लिये घर से बाहर नहीं निकला था.. भारत का मैच आने पर चाहता था कि आज बरसात ना हो और अगर भारत हार रहा हो तो तुरत पलटी मार कर मनाने लगता था कि इतनी बरसात हो कि डकवर्थ लुईस रूल भी काम में ना आ सके..

बैंगलोर में भी मेरे दोस्तों के बीच स्थिती कुछ वैसी ही थी.. चंदन को 10 बजे कहीं जाना था सो सुबह 8.30 में बेलांदुर से निकला और उसके घर 9 बजे के लगभग पहूंच गया.. फिर चंदन निकल गया बोल कर कि 2 बजे तक आता हूं.. अब घर में बस मैं और विशाल थे जो कि मेरे कालेज का ही सहपाठी है.. वो हर आधे घंटे पर बाहर आसमान को झांक आता था और मना रहा था कि आज बरसात ना हो और मुझे गालियां दे रहा था कि शनिवार से पहले बरसात नहीं हो रही थी, तुम चेन्नई से बादल भी साथ लेते आये.. इसी बीच पार्थो भी घर पर आ गया जो कि मेरे ग्रैजुएशन और पोस्ट ग्रैजुएशन दोनो ही का मित्र है..

खैर मैच अपने नियत समय पर शुरू हुआ.. सहवाग और सचिन खेलना चालू किये, सचिन आऊट भी हो गया.. तभी हमारे घर के तरफ(जहां मैं ठहरा हुआ था) जोरदार बरसात शुरू हो गई.. और लगे सभी बरसात को कोसने कि अभी थोड़ी देर बाद स्टेडियम में भी बरसात होगी और जितने वेग से बरसात हो रही थी उसे देखकर लग रहा था कि मैच कहीं धुल ना जाये.. ठीक 10-15 मिनट बाद स्टेडियम में भी बरसात शुरू हो गई..

मैच शुरू होने के थोड़ी देर पहले चंदन के ऑफिस का एक मित्र भी घर पर आया था, खासतौर से मैच देखने.. अब सभी निराश.. लगभग 1 घंटे के बाद इधर बरसात रूकी और फिर सभी जुट गये कि मैच कब शुरू होता है? बीच-बीच में स्टेडियम में बैठे कुछ मित्रों से मैदान कि भी खबर ली जा रही थी.. उधर मैदान को सुखा कर मैच के लिये तैयार किया गया और इधर हमारे घर तरफ फिर से बरसात चालू हो गई.. हमलोग फिर से इंतजार करने लगे कि कब वहां फिर से बरसात शुरू होती है..

लोग इधर बरसात के थमने का इंतजार मैच के लिये कर रहे थे और मैं इंतजार कर रहा था कि बरसात रूके तो मैं चेन्नई के लिये बस पकड़ने के लिये निकलूं.. थोड़ी चिंता यह भी थी कि चेन्नई जाने के लिये बस स्टैंड बदल गया है और शांतिनगर नामक बस टर्मिनल से चेन्नई के लिये बस खुलने लगी है.. अब वो जगह भी ढूंढना था.. बरसात के रूकते ही मैं और चंदन चल परे.. एम.जी.रोड के सामने से गुजरते हुये स्टेडियम का फ्लड लाईट भी दिखा, पता नहीं क्यों जब कभी भी फ्लड लाईट का नाम सुनता हूं तो स्कड मिसाईल का नाम दिमाग में घूमने लगता है.. शायद दोनो का उच्चारण एक समान है इसलिये.. :)

कुछ दूर आगे जाने पर हम लोग अनजाने में वन वे में घुस गये और ट्रैफिक पुलिश ने हमें पकर भी लिया.. खैर वहां से निकले तो मुझे रास्ता जाना पहचाना सा लगा, फिर याद आया कि ये सड़क विल्सन गार्डेन कि ओर जाता है.. बी.एम.टी.सी. बस स्टैंड पहूंचने के बाद हम दोनों को समझ में आया कि यही शांतिनगर बस टर्मिनल है.. कुछ यादें जुड़ी है इस जगह से, इसे कैसे भूल जाता..

अब हमारा लक्ष्य था कि चेन्नई जाने वाली कोई सी भी बस में बैठ कर निकल लो.. जो पहली बस में टिकट मिला उसी में बैठकर मैं चल पड़ा और चंदन भी अपने घर चला गया.. रात भर ना जाने किन ख्यालों में डूबा रहा और नींद नहीं आयी.. सुबह घर ठीक 5.30 में पहूंच गया और टी.वी.खोलकर समाचार देखा तो पता चला मैच बरसात से धुला नहीं और भारत ने वो मैच डकवर्थ लुईस नियम से जीत लिया.. खैर क्या फर्क परता है, फिर से ऑफिस कि भागदौर में जिंदगी कटने वाली है सोचकर सोने कि कोशिश करने लगा.. सोमवार कि सुबह हो चुकी थी..

7 comments:

  1. अफसोस, बैंगलुरू गए और मैंच पूरा भी न देख पाए। इधर हम स्क्रीन पर नजरें गड़ाए रहे, मैंच दिखाया गया पर दर्शक नहीं दिखाए। चाहते थे मैच देखते हुए दिख जाओ। पर मेरा मानना है क्रिकेट का मजा टीवी पर अधिक आता है। मैच खत्म कर के ही सोए थे उस रात।

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  2. आहा,
    भारतीय विज्ञान संस्थान के E-ब्लाक का कामन रूम । वर्ल्ड कप के सभी मैच वहीं देखे, कभी टी.वी. के आगे अगरबत्ती जलाई तो कभी आरती उतारी । गिल्क्रिस्ट और पोंटिंग को चप्पल दिखा कर डराया भी तो कभी सचिन के खेलते समय आंख बन्द करके प्रार्थना भी की ।

    बहुत यादें उभर आयी इस पोस्ट को पढकर ....

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  3. भाई आप की बाते पढ कर अपना समय याद आ जाता है, हमेशा यु ही लिखते रहो, बहुत अच्छा.
    धन्यवाद

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  4. बैंग्लोर सालो पहले गया था और चेन्नई भी।वहां तब मैने भारत और वेस्ट इंडीज के बीच चल रहा टेस्ट देखा था। मज़ा तो आता है क्रिकेट मे,इसमे कोई शक नही।

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  5. क्या संस्मरण हैं। बन्धु, हमने मानो प्रत्यक्ष देखने का मजा ले लिया (हम ने तो टीवी पर भी नहीं देखा था)। :)

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  6. आहा उस दिन थका हुआ था .इन्दोर से आया था इसलिए सो गया था .सुबह अखबार में पढ़ा की डकवर्थ जिंदाबाद हो गये है....बंगलौर जनवरी में एक हफ्ते के लिए आना है......कांफ्रेंस के सिलसिले में .वैसे इस वक़्त का ताजा स्कोर .....भारत के 46 रन 7 ओवर में है....सहवाग ओर सचिन क्रीज पर है

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  7. main to cricket premi nahi bhaiyya.. isliye no comments on this

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