अभी मम्मी का फोन आया.. पूछी कहां हो? घर पहूंच गये क्या? मैं तुरत घर पहूंच कर, कपड़े बदल कर कंप्यूटर चालू करके नेट चलाया ही था.. मम्मी बतायी कि कैसे आजकल मेरी बिटिया(भगीनी) बातें करती है.. मम्मी का फोन आते ही दौड़कर फोन उठाती है और कहती है, "आपको अपनी बेटी से बात करनी है क्या?" और मम्मी के हां कहते ही जोर से चिल्लाती है, "मम्मी! तेरी मम्मी का फोन आया है.."
"तुम्हारे पाहुनजी आज भिवाड़ी ज्वाईन कर लिये हैं.." मम्मी यह खबर सुनायी.. साथ ही यह भी जोड़ दी कि भिवाड़ी में क्या-क्या है घूमने के लिये.. हमारे यहां जीजाजी को पाहुनजी कहने का रिवाज है और हम जीजाजी को पाहुनजी ही बुलाते हैं.. यह फैसला मैं और मेरे भैया, हम दोनों का लिया हुआ है..
बातों ही बातों में मैंने उन्हें अपने इस चिट्ठे के बारे में बताया.. कुछ तकनिकी बातें भी बतायी कि मैंने इसे कैसे सुरक्षित किया है.. मुझे पता है कि उन्हें कुछ समझ में नहीं आ रहा है फिर भी.. फीड को बंद किया, परमिशन हटाया और भी ना जाने क्या-क्या.. मैंने बताया कि मैंने इसे क्यों बनाया? इसे अपनी निजी डायरी कि तरह प्रयोग में लाना चाहता हूं.. मम्मी ने कुछ भी इंटेरेस्ट नहीं दिखाया उसे पढ़ने के लिये..
आगे मैंने कहा कि कोई कुछ भी और कितना भी निजी क्यों ना हो मगर पापा-मम्मी के सामने मेरे लिये कुछ भी निजी नहीं है.. क्या आप सुनना चाहेंगी कि मैंने क्या लिखा है? मम्मी को शायद पता था कि मैं क्या लिख सकता हूं.. उधर से कोई आवाज नहीं आयी.. मैंने सुनाना शुरू किया.. पहला पोस्ट पढ़कर खत्म हुआ.. मम्मी बोली कि अब इस सबसे बाहर निकलो.. भूल जाओ इन सबको.. तब तक मैंने दूसरा पोस्ट पढ़ना शुरू कर दिया..
उसके खत्म होते-होते मम्मी बोली अब नींद आ रही है.. सोने जा रही हूं.. मगर उनके आवाज से एक नमी सी झलक कर मेरे सामने गिर सी गई और मैं उसे बटोरने कि कोशिश करता रह गया..
देखा है कई बार आंखों कि नमी को..
पोछा है उसे इन हाथों से..
मगर मां के आवाज कि नमी का क्या करूं?
इसे तो बस दिल से महसूस किया जा सकता है..
blogging main bas yun hi hotaa hai ...aapke blog main sab kuch traditional hai achchaa lagtaa hai aksar padhkar
ReplyDeleteहां आवाज मै भी नमी होती है..... यह सिर्फ़ भावनायो से ही व्यक्त हो सकती है.
ReplyDeleteधन्यवाद
मां के पास सहारा की शुष्कता नहीं, हरियाले वन की नमी पाई जाती है।
ReplyDeleteबड़ा ही सुंदर लिखा ! बहुत शुभकामनाएं !
ReplyDelete"देखा है कई बार आंखों कि नमी को..
ReplyDeleteपोछा है उसे इन हाथों से..
मगर मां के आवाज कि नमी का क्या करूं?
इसे तो बस दिल से महसूस किया जा सकता है.."
कहां से ढूढ कर लाये यें पंक्तियां -- दिल एकदम नम हो गया इसे पढ कर!
सस्नेह -- शास्त्री
कल इसे पढ़ा था, टिप्पणी भी की लेकिन ब्लागर ने नहीं ली।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर लिखा है। माँ की आवाज की नमी यहाँ तक पहुँच गई। दोनों बच्चे बाहर हैं, मैं रोज फोन लगाता हूँ। मेरे बाद आप की आंटी उन से बात करती है तो उस नमी को रोज ही महसूस करता हूँ।
अब इस पर कोई क्या टिप्पणी कर सकता है... बहुत अच्छे प्रशांत भाई
ReplyDeleteसच्ची भावनायें अपनी आवाज़ दे ही देती हैं ...अच्छा लगा यह पढ़ना
ReplyDeleteखाली मां भी लिख दोगे तो भी कागज नम हो जायेगा भाई .....माँ चीज़ ही ऐसी होती है
ReplyDeletesahi likha hai bhai...maa aisi hi hoti hai.
ReplyDeleteअनुराग जी ने कह दिया जो शायद मैं नहीं कह पाता पर भावना वही है.
ReplyDeleteअच्छा लगा आपकी आप बीती को पढ़ना
ReplyDeleteबहुत संवेदनशील..
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