Tuesday, November 18, 2008

क्या आवाज में भी नमी होती है

कल शाम एक चिट्ठा बनाया, उसे चारों तरफ से सुरक्षित करके सुकून से बैठ गया.. उसे बनाने का मकसद बस अपने मन कि बातों को, जिसे मैं किसी से कह नहीं सकता.. किसी से बांट नहीं सकता.. बिलकुल एक निजी डायरी कि तरह.. कोई उसे पढ़ नहीं सके.. उसमें बस मैं रहूं और मेरी बातें रहे..

अभी मम्मी का फोन आया.. पूछी कहां हो? घर पहूंच गये क्या? मैं तुरत घर पहूंच कर, कपड़े बदल कर कंप्यूटर चालू करके नेट चलाया ही था.. मम्मी बतायी कि कैसे आजकल मेरी बिटिया(भगीनी) बातें करती है.. मम्मी का फोन आते ही दौड़कर फोन उठाती है और कहती है, "आपको अपनी बेटी से बात करनी है क्या?" और मम्मी के हां कहते ही जोर से चिल्लाती है, "मम्मी! तेरी मम्मी का फोन आया है.."

"तुम्हारे पाहुनजी आज भिवाड़ी ज्वाईन कर लिये हैं.." मम्मी यह खबर सुनायी.. साथ ही यह भी जोड़ दी कि भिवाड़ी में क्या-क्या है घूमने के लिये.. हमारे यहां जीजाजी को पाहुनजी कहने का रिवाज है और हम जीजाजी को पाहुनजी ही बुलाते हैं.. यह फैसला मैं और मेरे भैया, हम दोनों का लिया हुआ है..

बातों ही बातों में मैंने उन्हें अपने इस चिट्ठे के बारे में बताया.. कुछ तकनिकी बातें भी बतायी कि मैंने इसे कैसे सुरक्षित किया है.. मुझे पता है कि उन्हें कुछ समझ में नहीं आ रहा है फिर भी.. फीड को बंद किया, परमिशन हटाया और भी ना जाने क्या-क्या.. मैंने बताया कि मैंने इसे क्यों बनाया? इसे अपनी निजी डायरी कि तरह प्रयोग में लाना चाहता हूं.. मम्मी ने कुछ भी इंटेरेस्ट नहीं दिखाया उसे पढ़ने के लिये..

आगे मैंने कहा कि कोई कुछ भी और कितना भी निजी क्यों ना हो मगर पापा-मम्मी के सामने मेरे लिये कुछ भी निजी नहीं है.. क्या आप सुनना चाहेंगी कि मैंने क्या लिखा है? मम्मी को शायद पता था कि मैं क्या लिख सकता हूं.. उधर से कोई आवाज नहीं आयी.. मैंने सुनाना शुरू किया.. पहला पोस्ट पढ़कर खत्म हुआ.. मम्मी बोली कि अब इस सबसे बाहर निकलो.. भूल जाओ इन सबको.. तब तक मैंने दूसरा पोस्ट पढ़ना शुरू कर दिया..

उसके खत्म होते-होते मम्मी बोली अब नींद आ रही है.. सोने जा रही हूं.. मगर उनके आवाज से एक नमी सी झलक कर मेरे सामने गिर सी गई और मैं उसे बटोरने कि कोशिश करता रह गया..

देखा है कई बार आंखों कि नमी को..
पोछा है उसे इन हाथों से..
मगर मां के आवाज कि नमी का क्या करूं?
इसे तो बस दिल से महसूस किया जा सकता है..

13 comments:

  1. blogging main bas yun hi hotaa hai ...aapke blog main sab kuch traditional hai achchaa lagtaa hai aksar padhkar

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  2. हां आवाज मै भी नमी होती है..... यह सिर्फ़ भावनायो से ही व्यक्त हो सकती है.
    धन्यवाद

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  3. मां के पास सहारा की शुष्कता नहीं, हरियाले वन की नमी पाई जाती है।

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  4. बड़ा ही सुंदर लिखा ! बहुत शुभकामनाएं !

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  5. "देखा है कई बार आंखों कि नमी को..
    पोछा है उसे इन हाथों से..
    मगर मां के आवाज कि नमी का क्या करूं?
    इसे तो बस दिल से महसूस किया जा सकता है.."

    कहां से ढूढ कर लाये यें पंक्तियां -- दिल एकदम नम हो गया इसे पढ कर!

    सस्नेह -- शास्त्री

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  6. कल इसे पढ़ा था, टिप्पणी भी की लेकिन ब्लागर ने नहीं ली।
    बहुत ही सुंदर लिखा है। माँ की आवाज की नमी यहाँ तक पहुँच गई। दोनों बच्चे बाहर हैं, मैं रोज फोन लगाता हूँ। मेरे बाद आप की आंटी उन से बात करती है तो उस नमी को रोज ही महसूस करता हूँ।

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  7. अब इस पर कोई क्या टिप्पणी कर सकता है... बहुत अच्छे प्रशांत भाई

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  8. सच्ची भावनायें अपनी आवाज़ दे ही देती हैं ...अच्छा लगा यह पढ़ना

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  9. खाली मां भी लिख दोगे तो भी कागज नम हो जायेगा भाई .....माँ चीज़ ही ऐसी होती है

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  10. sahi likha hai bhai...maa aisi hi hoti hai.

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  11. अनुराग जी ने कह दिया जो शायद मैं नहीं कह पाता पर भावना वही है.

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  12. अच्छा लगा आपकी आप बीती को पढ़ना

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  13. बहुत संवेदनशील..

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