विकास ने मुझसे पूछा, "ये सनराईज देखने का आईडिया किसका था?"
मैंने मुस्कुरा कर कहा, "I was the culprit.." वो कुछ बोला नहीं.. बस मुस्कुरा कर रह गया.. फिर खाना खा कर सभी सोने चले गये..
अगली सुबह 3.40 मे अलार्म से मेरी नींद खुली.. मैंने प्रियंका को फोन करके जगाया और नित्यक्रिया करने के लिये चला गया.. लौट कर पहले शिव को और फिर विकास को जगाया.. प्रियंका के आते-आते 4.40 हो गये और हमे निकलते-निकलते 5.20.. मेरे मित्र अमित के भाई कि बाईक हमारे अपार्टमेंट में ही पार्क थी और वो बैंगलोर गया हुआ था.. सो उसके बाईक का भरपूर इस्तेमाल हुआ.. प्रियंका कि गाड़ी पर विकास बैठा और मेरे साथ बाईक पर शिव और हम निकल परे मैरिना बीच कि ओर.. प्रियंका ने ही बताया था कि मैरिना बीच का सूर्योदय ज्यादा प्रसिद्ध है..
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सुबह का समय था और पहली बार चेन्नई में ठंढक का अहसास भी हुआ.. शिवेंद्र मेरे पीछे सिमट कर बैठा हुआ था.. ठंढ मुझे भी लग रही थी मगर बाईक चलाने का मेरा जुनून और उसका लुत्फ़ लेने कि मेरी आदत उस ठंढ को पीछे छोड़ बस हवा से बाते कर रहा था.. सुबह ट्रैफिक बस नाम मात्र का ही था.. जो लोग भी दिख रहे थे वो सुबह के जौगिंग के लिये ही जा रहे थे.. हमलोग 6 बजने से पहले ही वहां पहूंच गये थे.. अभी तक हल्की लालिमा आकाश में दिखने लगी थी.. मैरिना बीच हमेशा कि तरह ही गंदा था..
"शायद यहां भी छठ पूजा हुआ लगता है.. कुछ ऐसा ही लग रहा है.." किसी ने मजाक किया..
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"सुनामी... $%^&#@ सुनामी..." कोई चिल्लाया जब मैं पानी में था.. मैं पलट कर देखा कि एक और आदमी हमारे बीच वहां था.. बाद में समझ में आया कि वो मानसिक रूप से विक्षिप्त था..(यहां $%^&#@ को आप तमिल माने जो मुझे समझ में नहीं आया)
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मुझे लग रहा था कि जैसे एक बार पांडिचेरी में हमलोग सूर्योदय का इंतजार करते रह गये थे और बाद में पता चला था कि बादलों के भीतर सूर्योदय हो भी चुआ है और हमें दिखा भी नहीं, कहीं वही बात यहां भी तो नहीं होने वाली है? कुछ-कुछ ऐसा ही लग भी रहा था.. ठीक जहां से सूर्योदय होना था वहीं बादल लगे हुये थे.. सूर्योदय तो नहीं ही दिखा मगर सूर्योदय के बाद वाला दृष्य नजर आ गया.. सभी खुश.. चलो आना सफल रहा.. इस मस्ती के पल में थोड़ी देर के लिये मैं थौटिंग मोड में भी पहूंच गया और पानी के बीच खड़ा होकर सोचने लगा कि ना जाने कितने शहरों में कितनी ही इमारतें सूर्योदय को निगल जाती है.. सोचा कि पिछली बार मैंने सूर्योदय कब देखा था तो मुझे महीना भी याद नहीं आया.. एक बात और भी पता चली, वो यह कि सूर्योदय से ठीक पहले जो समुद्र शांत दिख रहा था उसकी लहरें अचानक से ही सूर्योदय होने बाद तेज हो गयी..
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फिर वापसी.. आते समय कैथेड्रल रोड पर एक फ्लाई ओवर था, जिस पर चढते समय ना जाने क्यों मुझे स्पीड बढाने का मन किया.. जो पहले 40 के औसत से चल रहा था वो अचानक 60-70-80-90 से होते हुये 98 पर पहूंचा मगर उससे ज्यादा नहीं बढाया क्योंकि ये भी ख्याल आया कि हम शहर के बीच चल रहे हैं, ना कि किसी हाईवे पर.. वैसे स्पीड बढाते समय शिवेन्द्र कि गालियां खाने का भी अलग ही लुत्फ़ है.. :)
सारे फोटो प्रियंका के N-96 से लिये हुये.. उसने मुझे कहा था कि कैमरा चार्ज कर लेना, मैंने चार्ज भी किया.. मगर मेरे कैमरे में ही कुछ दिक्कत आ गयी जिसके कारण मैं फोटो नहीं ले पाया.. मगर उसके मोबाईल कैमरे से भी अच्छी तस्वीरें आई.. :)
फोटो तो ठीक आ गये हैं..अच्छा रहा पढ़ना.
ReplyDeleteफोटो बढिया है और विवरण भी!
ReplyDeleteये नीचे वाला मुंह में सूरज को रखते हुए , बहुत बढिया लगा ! शानदार है ! शुभकामनाएं !
ReplyDeleteएक बात मैं ईमानदारी से कहूं? मैंने अच्छा नहीं लिखा है ये मुझे भी पता है.. :)
ReplyDeleteइससे पहले का पोस्ट मैंने मन से लिखा था और ये पोस्ट दोस्तों के कहने पर बिना मन के लिखा है.. :)
अरे नहीं भाई हमें तो अच्छा लगा
ReplyDeleteबढ़िया आत्मीयतापूर्ण विवरण
साधुवाद
विवरण अच्छा है, लेकिन सूचनात्मक, मन के उद्गार छूट गए।
ReplyDelete2nd aur last snap bahut hi achha hai, per mujhe 2nd wala bhaut hi achha laga...tum sab ki yaad aa gayi...missing my friends:-(
ReplyDeleteसूरज को पकड़ने वाला फोटो बहुत बढ़िया है... अगर आप सर पर रुमाल नही बाँधते तो सूरज और चाँद को एक साथ देखना काफ़ी रोमांचक होता :)
ReplyDelete1985 मे मरीना बीच गया था,उसके बाद आप के जरिये मरीना बीच के दर्शन हुये। अच्छा लिखा आपने और तस्वीरें तो बेहतरीन खींची खासकर चुट्की और मुहं मे सुर्य वाली।वैसे एक कडुवा सच भी सामने लाया आपने कितने शहरों मे इमारतें सूर्योदय को निगल जाती है।बहुत बढिया।
ReplyDeleteयह पढ़े पर मरीना बीच की शामें याद आ रही हैं। बढ़िया लिखा/प्रस्तुत किया है जी।
ReplyDeleteसमुद्र तट से सूर्योदय/सूर्यास्त का दृश्य सचमुच बड़ा विहंगम और मनोहारी होता है.
ReplyDeleteमुझे जो कहना था कुश ने कह दिया :-) ..वैसे तस्वीर काफी बढ़िया है ..मतलब समय संयोजन अच्छा था .
ReplyDeleteबढ़िया है :-) वैसे साफ़-सफाई के मामले में ये बीच कैसा है?
ReplyDeleteबढ़िया लिखा है भाई ..सैर हो गई अपनी भी साथ साथ फोटो सुंदर है
ReplyDeleteसूर्योदय के फोटो शानदार है N-९६ के रिजल्ट धाँसू है यार .....हाय कित्ती मौज ले रहे हो तुम ......
ReplyDelete@ योगेन्द्र जी - आपका मन ही ऐसा है कि आप बुरे को भी बुरा नहीं कहेंगे.. :) टिपियाने के लिये धन्यवाद..
ReplyDelete@ दिनेश जी - आपने बिलकुल सही पहचाना..
@ कुश और लवली - आप दोनो से तो ऐसा दोस्ताना रिश्ता हो गया है कि आप कुछ भी चुटकी ले सकते हैं.. मगर मैं ये बता दूं कि सर पर बाल थो थे मगर रूमाल से बांध रखा था कि कहीं ठंढ़ी हवायें उसे उड़ा ले ना जायें.. :D
@ अनिल जी, ज्ञान जी, रंजना जी और रंजूं दीदी - आप लोगों का बहुत बहुत धन्यवाद इसे पढ़ने और पसंद करने के लिये..
@ अभिषेक जी - मैरिना बीच तो बहुत ही गंदा है मगर बेसंत नगर बीच ठीक ठाक है.. कभी चेन्नई आईये तो सैर सपाटा हो जाये..
@ डा. अनुराग जी - अजी वो कहते हैं ना "एवरी डॉग हैज अ डे".. कल का दिन आपका था और आज का दिन अपना है.. आज से 10 साल बाद मुझे भी आप जैसा अच्छा लेखक जो बनना है सो यादों कि पोटली को लम्बा किये जा रहा हूं..
समीर जी, नितिन जी और ताऊ को पहले ही लिख चुका हूं.. सो अब चलना चाहिये.. अब आप लोग और टिपियाइये जिससे मैं फिर से उनको धन्यवाद दूं.. हा हा हा.. :)
@ वाणी - अगर तुम इसे पढ रही हो तो मेरा अगला पोस्ट पढ़ लो.. तुम्हारे लिये तो मैंने पूरा पोस्ट ही दे मारा है.. :D
ReplyDeletebadhiya foto....badhiya likha bhi hai.
ReplyDelete@ पल्लवी जी - धन्यवाद सराहने के लिये.. :)
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