अगर मैं गलती नहीं कर रहा हूं तो ऐसा क्यों होता है कि जो बहुत कुछ कर सकते हैं केवल कलम चलाते हैं... अब कीबोर्ड चलाने लगे हैं... मैं भी और आप भी... हम उत्तेजना पैदा कर देते हैं. मॉनीटर के सामने बैठकर पोस्ट पर शानदार, बहुत अच्छा और पता नहीं कितने ही झूठी-सच्ची उपाधि दे देते हैं लेकिन इससे होगा क्या....
समस्या जस की तस बनी रहेगी. कुछ ऐसा काम करना होगा जो समाज में भद्र भी कहलाए और लोग वाह वाह भी कहें....तो पोस्ट ही लिख लो....
यह कमेंट मैं पोस्ट पर नहीं कमेंट्स को पढ़ कर दे रहा हूं....
सब बकवास है...काम करने की बारी आएगी तो तिनका नहीं हिलेगा और वाह-वाह की तो लाईन लगा दी जाएगी....
सचिन आउट हो गया तो उसे ऐसा खेलना चाहिए था, उसे वैसा खेलना चाहिए था. खुद टीवी पर नजर गड़ा कर सीख दी जाती है...नेता ने कुछ किया तो हमारे देश के नेता ऐसे ही हैं...
भाई लोग हमलोग क्यों नहीं बन जाते हैं सचिन या फिर नेता और खेले अच्छा भारत के लिए....हो पाएगा क्या.... किसी के पास जवाब हो तो जरूर दीजिएगा..
यह पढ़कर मुझे अपने होस्टल के दिन याद आ गये.. मैं तॄतीय सेमेस्टर में था.. उस समय हमारे राष्ट्रपति अब्दुल कलाम जी हुआ करते थे.. किसी काम से उनका वेल्लोर आना हुआ था और उसी बहाने वो हमारे कालेज कि तफरी भी कर आये.. अनका भाषण बेहद प्रेरणाजनक और उत्साह से भर देने वाला था.. उस भाषण में उन्होंने विजन 2020 कि भी बात दोहराई थी..उनकी स्पीच खत्म होने के बाद सवाल जवाब चलने लगा था.. छात्र-छात्रायें उनसे सवाल पूछते थे और कलाम जी उसका उचित उत्तर देते थे.. किसी एक छात्र ने उनसे एक प्रश्न पूछा था जिसका सार कुछ ऐसा था, "हम साधारण छात्र-छात्रायें विजन 2020 के लक्ष्य को पाने के लिये अपने स्तर पर क्या कर सकते हैं?"
उसका उत्तर उन्होंने दिया था कि, "उसके लिये हमें साधारण मानव से ऊपर उठकर माहामानव बनने कि जरूरत नहीं है.. हम अपने आम जीवन में ही जो काम करते हैं उसी को पूरी ईमानदारी से करें.." अब चूंकि उस समय हम कॉलेज में थे सो उसी प्रकार से समझाते हुये उन्होंने उदाहरण दिया था कि, "अभी तुम सभी विद्यार्थी जीवन में हो और तुम्हें पता है कि तुममें से हर एक को अपने जीवन के लक्ष्य को पाने के लिये कितनी मेहनत कि जरूरत है.. मगर अधिकांश समय हम अपने आपको धोखा देते हैं.. सोचते हैं कि इस काम को बाद में करेंगे और वो बाद कभी नहीं आता है.. जीवन में सबसे जरूरी ईमानदारी है, अगर यही ईमानदारी हम सभी में हो तो एकल स्तर पर हम आगे बढते जायेंगे और जब सभी एकल अच्छे होंगे तो प्रगतिशील और स्वस्थ समाज खुद तैयार हो जायेगा.."
उनकी यह बात बहुत सही लगी थी और जेहन में बैठ सी गई है.. ये सच है कि किसी और को धोखा देने से पहले हम सभी अपने आप को धोखा देते हैं.. अब जैसा कि राजेश रौशन जी ने कहा है, "सब बकवास है...काम करने की बारी आएगी तो तिनका नहीं हिलेगा.." उम्मीद है कि इन सबका उत्तर उन्हें कलाम जी के उक्त कथन से मिल गया होगा..
अपनी बातों को आपने बहुत अच्छी तरह समझाया। अच्छे विचारों के लिए शुक्रिया।
ReplyDeleteसही उद्धरण पेश किया आपने-
ReplyDeleteसाधारण मानव से ऊपर उठकर माहामानव बनने कि जरूरत नहीं है
जीवन में कुछ लोग फोकट यथार्थवाद ढूंढ़ते हैं ! प्रसंशा की एक सैनिक को भी आवश्यकता होती है ! भले फोकट ही हो बिना प्रसंशा के आदमी में कुछ करने का जज्बा ही नही आसकता ! इन मर्यादावादियो की बातो में आगये तो ये सिर्फ़ म्यामार बना सकते हैं और कुछ नही ! हर विधा साहित्य सहित अपना एक स्थान रखती है ! अभी कुछ दिन पहले व्यंग को लेकर यही बात उठी थी की सीरियस कुछ नही लिखा जारहा है ! इनको कहने दीजिये ! आप मस्त रहिये ! डाक्टर साहब भी काफी मैच्योर हैं , और वो इन छोटे मोटे आब्स्ट्रक्शन्स से विचलित होने वाले नही हैं ! हम भी जाकर देखते हैं क्या माजरा है ?
ReplyDeletekoshis kar rahen hain hum insan banae ki ..dekhen safal khan tak hote hain
ReplyDeleteबहुत सारे अच्छे मनुष्यों से ही एक अच्छा समाज बनता है तो यदि हम सब सही बनने का यत्न करे तो सब सही हो ही जाएगा ।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
क्रान्ति के लिए परेशान होने की जरूरत नहीं है बस हम अपना काम इमानदारी से करते रहें , हाँ उसमें लिखना भी एक काम है, क्रान्ति ख़ुद-बी-ख़ुद हो जायेगी । अच्छी पोस्ट के लिए शुक्रिया।
ReplyDeleteसही है। राजेश के वक्तव्य में कुछ हडबड़ी, जल्दबाजी के निष्कर्ष हैं,मगर गलत नहीं। तुमने सही संदर्भ दिया। अच्छा लगा। अपने प्रति ईमानदारी ज़रूरी है। किन्हीं मूल्यों के प्रति समर्पण भी होना चाहिए।
ReplyDeleteवैसे राजेश की बात ग़लत नहीं है !
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ReplyDeleteहम अपने आम जीवन में ही जो काम करते हैं उसी को पूरी ईमानदारी से करें.."
ReplyDeleteyahi sach hai..
Rajesh ji khud bahut achcha likhtey hain aur apni jagah kahin sahi bhi ho saktey hain magar 'काम करने की बारी आएगी तो तिनका नहीं हिलेगा और वाह-वाह की तो लाईन लगा दी जाएगी....kuchh jaldi mein kaha gaya vaktvya hai-
-main ne apni raay dr.Anuraag ki post ke comments mein de di hai-
कमाल जी के सलाह अच्छी लगी.
ReplyDeleteप्रिय प्रशांत
ReplyDeleteआपकी इस सदाशयता के लिए आभारी हूँ पर शायद कही न कही @राजेश रोशन के मर्म को समझने की भूल हुई है ..वे शायद इस समाज की असवेदंशीलता से त्रस्त है .....हमारे ब्लॉग में टिपियाने के तरीके को लेकर असहमत है......शायद वक़्त की कमी या शब्दों का सही चुनाव न होना ...कुछ भ्रम पैदा कर गया है...
इन साठ सालो की आज़ादी के बाद भी इस देश का केवल एक तबका " हाईटेक " हुआ है ....ये देश का दुर्भाग्य ही है ..यही अब्दुल कलाम जिनको पुरा देश नवाजता है जब राष्टपति पड़ के लिए दुबारा नामांकित होते है .तो राजनैतिक गलियों के गठजोड़ में उनकी सारी योग्यता अचानक गायब हो जाती है..आख़िर में चलते चलते कभी एक चिन्तक ओर विचारक रामचंद्र ओझा जी का एक लेख मैंने कही पढ़ा था जिसमे उन्होंने कहा था
"हम संवेदना से परहेज नही कर सकते क्यूंकि संवेदना हमारा मूल है ,हमारे सारे मूल्य ओर यहाँ तक की "लोजिक "की जननी भी संवेदना ही है ...बुद्दि-विवेक के साथ उत्तरदायित्व होना भी मनुष्य के लिए जरूरी है
अच्छी चर्चा हो गयी मित्र। शुक्रिया।
ReplyDeleteइस कमेन्ट से मैं उद्वेलित हुयी थी, और मैंने भी सोचा था कुछ लिखूंगी. कुछ नहीं करने की बात किन्हें कही जा रही है, आप किसी को भी नहीं कह देंगे न की आप समाज के लिए कुछ नहीं कर रहे. मैंने उस दिन भी लिखा था...एक लेखक या कवि का सबसे महत्वपूर्ण रोल होता है समाज में एक तरह की संवेदनशीलता लाना, और ये काम डॉक्टर अनुराग की हर पोस्ट में होता है. कुछ करना हमेशा बन्दूक उठा कर सरहद पर जाना नहीं होता, समाज में रहकर अपने अपनर कर्तव्यों को करना भी उतना ही जरूरी है.
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