Friday, November 07, 2008

आज मेरा चिट्ठा तर गया!! :)

मेरी एक बहुत अच्छी मित्र है, मगर उसे मेरे अपने चिट्ठे पर कुछ निजी बातों को लिखना अच्छा नहीं लगता है सो शायद ही मैं कभी अपने चिट्ठे पर उसकी चर्चा किया हूं.. उसकी बातों का जिक्र मेरे चिट्ठे पर कुछ-एक बार हुआ है, मगर वो मेरी कलम से नहीं बल्की मेरे मित्र विकास कि कलम से.. अभी वो यू.एस.ए. में है, अपने ऑफिस के काम के चलते.. ढ़ाई महीने के लिये गयी हुई थी जो अब पूरा होने को आ रहा है.. आज सुबह उसने मेरे चिट्ठे पर पहली बार एक कमेंट किया.. सबसे पहले तो वो कमेंट देखकर बहुत खुशी हुई, मगर जल्द ही वो खुशी आश्चर्य में बदल गया.. मुझे तो कभी लगता भी नहीं था कि वो मेरे चिट्ठे को पढ़ती भी होगी.. वैसे ये भरोसा उसका कमेंट पढ़ने के बाद भी नहीं है :).. क्योंकि यह भी हो सकता है कि चूंकि मैंने पिछले दो पोस्ट दोस्तों के साथ बिताये पलों पर लिखा था सो उसे पढ़ने आयी हो.. वैसे उसे उसकी जरूरत नहीं थी क्योंकि मैंने अपने लगभग सभी मित्रों को वो लेख ब्लौग पर पोस्ट करने से पहले ही मेल कर दिया था.. सो अब वो पहले कि खुशी और बाद का आश्चर्य, दोनों मिलकर आश्चर्यमिश्रित खुशी में बदल गयी..

वैसे मुझे उसे जो भी लिखना था वो मैंने उसे और अपने दोस्तों को मेल करके लिख दिया है, मगर फिर भी मैं उसके कमेंट का उल्लेख अपने चिट्ठे पर करना चाहता था सो यह पोस्ट भी ठेल दिया.. :)

उसने कमेंट किया था -
Vani said...
2nd aur last snap bahut hi achha hai, per mujhe 2nd wala bhaut hi achha laga...tum sab ki yaad aa gayi...missing my friends:-(

मेरा उसे कहना है - अरे वाणी, टेंशन काहे को लेती हो.. एक हफ्ते में तुम फिर से चेन्नई में रहोगी.. फिर कभी हो आयेंगे.. :)

यहां वाणी ने अपने कमेंट में इस चित्र के बारे में लिखा था..

इसमें सबसे आगे विकास है उसके पीछे प्रियंका और उसके पीछे मैं हूं.. चित्र उतारने का काम शिवेन्द्र का था..

सन् 2006 नवम्बर में मैंने अपना चिट्ठा शुरू किया था.. उस समय बस मैं अपनी कवितायें ही लिखा करता था जो महीने-दो महीने में एक बार कुछ लिख देता था.. अपने ब्लौग पर अहसान कर देता था.. :) दिसम्बर की छुट्टियों में वाणी ने मेरा चिट्ठा अपने भैया को दिखाई, और उन्होंने मेरी कविताओं कि काफी तारीफ भी की.. वो तारीफ उस समय मेरे ब्लौग के लिये बहुत जरूरी था.. और जाने अनजाने में वाणी ने मुझे और लिखने के लिये प्रेरित भी किया.. आज भैया से संपर्क हुये बहुत दिन हो गये हैं.. इस बीच मुझे यह भी पता नहीं कि अब वो मेरा चिट्ठा पढ़ते भी हैं या नहीं.. खैर वाणी आये तो पूछता हूं..

हो सकता है कि वाणी को मेरा उसके बारे में यह सब लिखना अच्छा ना लगे.. मगर मेरे मन में जो भावनायें थी उसे तो मैंने लिख दिया.. अब चलता हूं.. :)

7 comments:

  1. जो भी था मन में
    कह दिया है
    सब के बीच,
    कोई बुरा कहे या
    भला कहे।
    बोझा मन का
    उतरा मन से,
    आज बहुत
    खुला खुला है मन
    कोई बुरा कहे या
    भला कहे।

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  2. बहुत साफगोई से लिखा है भाई आपने ! ऎसी सादगी पर कौन बुरा मानेगा ? शुभकामनाएं !

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  3. जी शुक्रिया.. :)

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  4. ये चित्र तो मुझे भी बढ़िया लगा.. सॅंजो कर रखने वाली चीज़ है

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  5. बहुत सही कहा, भाई.

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  6. आपको खुस जानकर अच्छा लगा.

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  7. @ कुश - अजी इस तरह के अनगिनत फोटो हम दोस्तों सारे दोस्तों के रखे हुये हैं.. कई तो इससे भी बढिया है.. सो मुझे पक्का यकीन है कि समय् बीतने के साथ इस फोटो कि याद धुंधली हो जाती.. मगर अब नहीं होगी.. चिट्ठे पर अपना स्थान जो पा गई है..

    @ लवली - Thanks बाबु.. :)

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