Monday, March 30, 2009

यादों के काफिले में जुड़ा एक और कारवां

थोड़ी देर के लिये मैं अपनी यादों के फ्लैश बैक में चला गया था.. लगभग 13-14 साल पहले.. चक्रधरपुर के मेले में पापा के साथ घूम रहा हूं और पापा से जिद कर रहा हूं..

"पापा मुझे बैलून फोड़ना है.."
"बैलून से खेलते हैं, उसे फोड़ते थोड़े ही हैं.." पापा जी अक्सर हमें ऐसे ही बहलाते थे..
"नहीं मुझे बंदूक चला कर बैलून फोड़ना है.."
"अरे बंदूक तो चोर-डाकू चलाते हैं.."
"नहीं मुझे निशाना लगाना है.."

बहुत देर तक परेशान करने के बाद पापा जी अंततः हमें वहां ले जाकर निशाना लगवा ही देते थे और साथ में हौशला भी बढ़ाते जाते थे कि और अच्छा निशाना लगाओ..

कुछ ऐसा ही नजारा था जब मैं विवेक जी से यहां चेन्नई में मिला.. उनका बड़ा बेटा अंतु यहां के मैरीना बीच पर घूमते हुये हर चीज के लिये ऐसे ही जिद कर रहा था और विवेक जी भी उसकी जिदों को पूरा किये जा रहे थे, उसे बहलाने की कोशिश भी कर रहे थे मगर वो भी मेरी ही तरह ना बहलने की जैसे कसम खा रखा था..

शनिवार की बात है.. घर से कुछ ही दिन पहले नेट कनेक्शन कटवाने की वजह से दोपहर में मैं किसी काम से मैं साईबर कैफे गया था और वहां अपने मेल बाक्स में विवेक जी का मेल देखा.. जिसमे उन्होंने शाम में मैरीना बीच पर मिलने की बात कही थी और साथ में अपना नंबर भी दे रखे थे.. मैंने तुरत उन्हें फोन घुमाया और मिलने का समय तय कर लिया.. शाम पांच बजे मैरीना बीच पर.. मैं ठीक 5 बजकर 10 मिनट पर वहां था.. फिर एक दुसरे को ढ़ूंढ़ने का काम चालू हुआ.. बाद में पता चला की विवेक जी अपने पूरे परिवार के साथ दक्षिण भारत भ्रमण पर निकले हुये हैं और वह जहां वह अपने परिवार को छोड़कर मुझे ढ़ूंढ़ने निकले थे वहां मैं खड़ा था और विवेक जी कहीं और मुझे ढ़ूंढ़ रहे थे.. :)


विवेक जी और मैं
दिल की बात कहूं तो मुझे उनका छोटा बेटा संतु बहुत, बहुत, बहुत प्यारा लगा.. उनके साथ उनके दोनों बेटे अंतु, संतु, उनकी पत्नी, और उनके माताजी-पिताजी भी थे.. मैं सिर्फ विवेक जी को ही जानता था मगर जब रात में मैंने उन्हें विदा किया तब मैं उनके साथ-साथ उनके दोनों बेटों से भी अच्छी दोस्ती कर ली..

दिल के साफ और खुले विचार वाले विवेक जी में दिखावा बिलकुल भी नहीं था.. लगभग 3-4 घंटे में मैंने उनसे कई बातों पर बात किया जिसमें ब्लौगिंग से लेकर चेन्नई तक और पानीपत से लेकर पटना तक की बातें भी शामिल थी.. वहां उनके तीन मित्रों से भी मुलाकात हुयी.. राजेश जी, गुप्ता जी और मनोहर जी.. जिसमें से राकेश जी और गुप्ता जी उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं और मनोहर जी खालिश चेन्नई के.. यह तीनों ही विवेक जी के साथ तब थे जब विवेक जी चेन्नई में रहते थे..


विवेक जी और उनके मित्र राजेश जी
उनसे अचानक मिलना बहुत ही अच्छा अनुभव रहा.. और वो भी एक साथ उनके पूरे परिवार से मिलने की बात तो उम्मीद के परे थी.. उनके और उनके बच्चों के सात मैंने कई पल जी लिये जो मेरे लिये अनमोल है और हमेशा के लिये यादगार हो गये हैं..


कुछ अन्य चित्र..

विवेक जी


मैरीना बीच पर बिकते शंख और समुद्री शीपों के चित्र



मैरीना बीच पर बिकते शंख और समुद्री शीपों के चित्र

18 comments:

  1. इस मुलाकात के बारे में जानकर अच्छा लगा।

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  2. पढकर अच्छा लगा ! चित्र देखकर तो और भी अच्छा लगा !

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  3. Bhaiyya ye post padh kar meri bhi purani yaadein taaza ho gayin.. marina beach ki baat hi laga hai!!

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  4. जला रहे हो डियर.. !

    ब्लॉगर मिलन पर एक किताब लिख ही दो.. इतने लोगो से बतिया लिए हो कितनो से तो मिल चुके हो.. रिकॉर्ड सिकोर्ड बना दिए इत्ते वड्डे वड्डे.. पता नही टूटेंगे भी कि नही..

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  5. जान कर अच्छा लगा कि ब्लागरों से प्रत्यक्ष मिल रहे हो।

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  6. खूब मजे ले रहे हैं आप ... हमलोगों को इसी बात से संतोष है कि ... कम से कम रिपोर्ट तो मिल जाती है सबों की ... अच्‍छा लगा इस मुलाकात के बारे में जानकर।

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  7. मजेदार विवरण। अब विवेक की पोस्ट का इंतजार है। लेकिन एक बात समझ नहीं आई कि तुम विवेक की तारीफ़ कर रहे हो, विवेक तुम्हारी तारीफ़ कर रहे थे फ़ोन पर! माजरा क्या है?

    वह भी तब विवेक से मिलने के बाद अपनी वही टांग दुबारा तुड़वा लिये जिस पर पहले जुल्म हुआ था। पूजा ने पता नहीं तुमको अब तक कोई मेल लिखी कि नहीं इस नयी पुख्ता चोट का कैसा उपयोग किया जाये के बारे में? लिखे तो अनुमति लेकर पोस्ट में डालना। :)

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  8. यह तो आपने लिखा नही मिल कर आते वक्त टांग दुबारा टूटने की प्रसन्नता प्राप्त हुई ..इसे भी लिख डालिए लगे हाँथ

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  9. फिर से चोट लगी :(
    विवेक मिले :)
    परस्पर तारीफ़ें :p

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  10. वह क्या बात है समुद्र के किनारे दो ब्लॉगर का मिलन जैसे राम का भरत से .

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  11. अनूप जी, मेल तो लिखी है पर साथ में धमकी भी दी है...इसलिए पीडी इस बार तो नहीं ही पोस्ट करेगा :D पर ये टांग का चक्कर क्या है...पूरा मामला बयान करने के बजाये विवेक जी से मिलने की बात कह रहा है...भाई टांग क्या विवेक जी ने तोड़ी है? यही इशारा है :P

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  12. अरे ओये पीडी.
    यार ये वही विवेक है जो स्वप्नलोक के नाम से लिखते हैं. विश्वास नहीं होता.
    और यार टांग फिर से तुड़वा ली?

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  13. भाई ये तुम्हारी टांग है कि खूंटा? क्यों बार बार टूटती है? अटल जी भाषा मे...ये अच्छी बात नही है.:)

    विवेकजी के साथ २ अंतू संतु और परिवार के फ़ोटो भी दिखाने थे ना. बहुत अच्छा लगा.

    रामराम.

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  14. वाह क्या मिलन हुआ। मजा आ गया फोटो और विवरण पढकर।

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  15. फ़िर एक बार मरीना बीच आना पड़ेगा लगता है आपसे मिलने के लिये।सच मे अच्छा लगता है इस दुनिया के लोगो से मिलकर उनसे बाते कर के।

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  16. पता चला PD कहां पाये जाते हैं... मरिना बीच पर... अच्छा लगता है एसे किसी ्दोस्त से मिलना..

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  17. chitra dekhkar maza aa gaya
    ...aish hai beta ji

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