Tuesday, March 10, 2009

यादों के रंग के साथ एक होली अलग सी

सुबह उठा और अपने पांचवे तल्ले वाले घर की बाल्कनी नीचे झांका.. बेतरतीबी से गाड़ियां भागी जा रही थी, जैसे सभी फारमूला वन में भाग ले रहे हों.. धीरे धीरे गाड़ियों का शोर थमता चला गया और फिर बिलकुल बंद हो गया.. नीचे देखा तो पाया कि चार भाई-बहन आपस में ही होली खेल रहे हैं.. उनके साथ होली खेलने वाला कोई और जो नहीं था या फिर यह भी कह सकते हैं कि उन्हें होली खेलने के लिये किसी और की जरूरत ही नहीं थी.. थोड़ी देर बाद सबसे छोटा लड़का जो तीन-चार साल का था वो 'मम्मी-मम्मी' करके रोता हुआ घर में घुसने लगा, मगर मम्मी के पास ना जाकर पापा के पास चला गया.. मम्मी से डरता जो था.. उसके पापा ने उसे गोद में उठा कर पूछा कि
"क्या हुआ?"
"बाउ भैया रंग लगा दिये.."
"रंग लगा दिया? अभी उसको मारते हैं.. कहां रंग लगा दिया?"
"गाल पर.."
"इस गाल पर?" बोलते हुये उसके पापा भी इसी बहाने उसे और रंग लगा दिये..



फिर से सब कुछ धुंधला सा होने लगा था.. फिर से उसी लड़के को देखा.. वो अब कुछ बड़ा हो गया था.. लगभग आठ-नौ साल का.. रहने का जगह भी बदल चुका था.. किसी क्वार्टर जैसा लग रहा था.. हां! याद आया, यह तो सीतामढ़ी का आफिसर्स फ्लैट है.. यहां सिर्फ वही चार बच्चे नहीं थे, यहां तो बच्चों का झुंड था.. सभी लाल-हरे रंगों से पुते हुये.. बड़े अंकलों से बचते हुये, क्योंकि वे कपड़ा फाड़ होली खेल रहे थे.. मैं फिर उस बच्चे को देखने लगा.. अपने भैया और कुछ हम उम्र दोस्तों के साथ मिलकर एक गड्ढ़ा बना कर उसमें रंग भर रहा था.. गड्ढ़ा भी इतना बड़ा की किसी के घुटने तक भी रंग नहीं पहूंच पाये, मगर वे सभी पूरे जोश में गड्ढ़ा बनाये भी और उसमें रंग भरकर उसे जाने किस किस चीज से ढ़ंकने की कोशिश नहीं कर रहे थे.. जिससे शायद कोई अनजाने में वहां से गुजरे और रंग में गिर जाये.. मगर यह कभी संभव ही ना हो सका.. एक बकरी का बच्चा भी कभी उसमें नहीं फंसा..


अब फिर से एक लड़के ने मेरा ध्यान अपनी ओर खींच लिया.. अपने घर की चारदिवारी पर चढ़कर वहां से जाने वालों की राह तक रहा था.. उसके साथ तीन और भी लड़के हैं.. एक तो उसका बड़ा भाई है, बाकी दो उसके मकान मालिक के बेटे हैं.. बीच-बीच में उन चारों लड़कों को घर के अंदर से नसीहते भी मिल रही हैं.. कार को गंदा मत कर देना.. सड़क सुनसान हो चुका है.. जिधर देखो उधर बस होली के हुड़दंग में डूबी लोगों की टोली ही दिख रही है.. अगर कोई छोटी टोली है तो वे चारों भी उसमें मिल कर रंग लगा रहे हैं और अगर बड़ी टोली है तो बस भाग कर घर के अंदर..


फिर से अचानक वाहनों का शोर बढ़ता चला गया.. फिर से वही भाग दौड़ दिखने लगी.. लोगों का एफ वन ड्राईवर होने का अहसास फिर से मानो जाग गया था.. या शायद मैं ही कहीं खो गया था.. बहुत साल के बाद होली से पहले मन में उत्साह आ रहा है, मगर जितना उत्साह आ रहा है उतनी ही अकुलाहट भी बढ़ती जा रही है.. एक छटपटाहट भी हो रही है.. हम तो यादों के रंग से सराबोर हैं.. शायद होली भी इसी से खेल लेंगे.. आप अपनी सुनाईये? जीवन के किन रंगों से होली खेलने का इरादा है?

16 comments:

  1. होली पर्व की हार्दिक ढेरो शुभकामना

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  2. आपको व आपके परिवार को होली की घणी रामराम.

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  3. खूब यादें परोसीं। होली पर बहुत बहुत शुभकामनाएँ।

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  4. होली पर बहुत बहुत शुभकामनाएँ।

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  5. होली की ढेरों शुभकामनायें.

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  6. रंगो से भरी होली की बहुत बहुत शुभकामनायें.

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  7. होली की हार्दिक शुभकामनाएं !

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  8. मुबारक! ऐसे ही खेलो भैये! यादों में पैसे बचते हैं!

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  9. belated happy holi...sorry for being late :(

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  10. सबकी एक सी ही कहानी है दोस्त!.. बहरहाल होली क़ी शुभकामनाए..

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  11. होली की हार्दिक शुभकामनाऍं।

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  12. मीठी रही यादों वाली ये होली :) यहाँ और कुछ तो खेल नहीं सकते, यादों में ही गोता लगा लो और क्या.

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  13. Bahut achha likhe ho :-)

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