Monday, March 23, 2009

प्रोफेशनल लाईफ के (अन)प्रोफेशनल लोग (अंतिम भाग)

जैसा कि मैं अपने पिछले पोस्ट में बता चुका हूं की मैं अभी जिस प्रोजेक्ट में काम कर रहा हूं उसमें शुरूवात में अनेकानेक परेशानियों का सामना करना पड़ा था.. कुछ लोग ने मेरी परेशानियों को बढ़ाने का भी काम किया तो कुछ ने उसे सुलझाने में भी मदद की.. मुझे सबसे ज्यादा मदद मिली फनिन्द्र नामक अपने सहकर्मी से..

वह जब हमारे प्रोजेक्ट में आये तब शुरूवात में कुछ दिनों तक मेरे साथ बैठकर काम किये थे.. मुझे यह भी याद है कि मैं किस कदर किसी जगह अटक जाता था और वहां से निकलने का कोई तरीका नहीं सूझता था.. और जब फनिन्द्र साथ बैठने लगे तो वह उसे सुलझाकर मुझे देते भी थे और मेरे प्रोजेक्ट लीड के सामने भी मेरी ही तारीफ करते थे कि इसी ने इस समस्या को सुलझाया है.. जबकी मेरी नजर में सारा श्रेय उन्हें ही जाता था.. कहीं ना कहीं से मेरा आत्मविश्वास भी उन छोटी-छोटी वजहों से बढ़ा, जिसका श्रेय वह आज भी लेना नहीं चाहते हैं..

आज कई बार ऐसा भी होता है कि मुझे वो किसी काम के लिये पूछते हैं तो भले ही मेरा कुछ जरूरी काम छूट रहा हो, मगर मैं उनका काम करना ज्यादा जरूरी समझता हूं.. मेरे कुछ अन्य सहकर्मी कई बार मुझसे वैसा ही उम्मीद रखते हैं जैसा मैं फनिन्द्र के लिये हूं.. मेरा सोचना यह है कि अगर शुरूवाती दिनों में मेरी मदद करने का मौका उन दूसरे लोगों को ज्यादा मिला था और उन्होंने उसके ठीक विपरीत व्यवहार करके मेरी परेशानियों को बढ़ाने का काम किया था..

फनिन्द्र उम्र में मुझसे बहुत बड़े हैं, मगर ऑफिस के नियमानुसार मुझे उनका नाम लेकर ही बुलाना पड़ता है.. जो मेरे प्रदेश के संस्कृति के अनुरूप बिलकुल नहीं है.. ऐसे में अगर मैं किसी ऑफिसियल मिटिंग में होता हूं तो ऑफिस कल्चर के मुताबिक उनका नाम लेकर बुलाता हूं, और अगर सिर्फ हम दोनों ही बातें करते हैं तो उन्हें बड़े भाई या भैया ही कहता हूं.. सर कहकर बुलाने का नियम बिलकुल ही नहीं है और उसमें मुझे औपचारिकता भी बहुत झलकता है..

इतना कुछ कह दिया मगर अभी भी कहने को बहुत कुछ है.. एक वाक्य में कहूं तो ऑफिस में मैं जो भी परफार्म करता हूं उसमें से अधिकांश का श्रेय मैं उन्हें ही देता हूं.. सारा कुछ उन्हीं से तो सीखा हुआ है.. इनकी सबसे बड़ी खूबी मुझे यह लगती है कि उनकी अपनी पसंद-नापसंद दूसरी ओर होती है, निजी तौर पर वह आपको किसी भी हद तक मदद कर सकते हैं मगर जहां प्रोफेशनलिस्म की बात आती है तो पूरी तरह प्रोफेशनल हो जाते हैं..

प्रोफेशनल लाईफ के (अन)प्रोफेशनल लोग भाग एक

8 comments:

  1. हमें अपने आस-पास अच्छे लोग मिल ही जाते हैं, बशर्ते हमारी निगाहें उन्हें ढूँढ पायें और वही अच्छाई हमारे भीतर भी हो तो क्या कहने..!

    प्यारी मीठी पोस्ट :)

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  2. आप खुशकिस्मत हैं, आप को ऐसे अच्छे सहकर्मी मिले।

    निजी तौर पर वह आपको किसी भी हद तक मदद कर सकते हैं मगर जहां प्रोफेशनलिस्म की बात आती है तो पूरी तरह प्रोफेशनल हो जाते हैं..

    उन का यह गुण सीखने का है।

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  3. बेहतरीन संस्मरण! मुझे पूरा भरोसा है कि तुम अब इस कड़ी को आगे बढ़ाओगे और कोई तुम्हारे बारे में ऐसे ही लिखेगा जैसे तुमने फ़णीन्द्र के लिये लिखा।

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  4. दोस्त जैसा कुछ सीखा है ...तुम भी ऐसा ही किसी एक के साथ कर दोगे तो उनका किया हुआ उतर जायेगा ये समझ लेना ........वैसे कम ही लोग ऐसे होते हैं जो इस कदर मदद करें

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  5. दफ़्तरो के बहुत से नियम हमे अपने प्रिय व्यक्ति को मनचाहे सम्बोधन से रोक देते हैं,मगर दफ़्तर के बाहर तो वो हमारा भैया अपने आप हो जाता है।बहुत सही लिखा पीडी। आज ही आपने काल किया आज ही आपसे लम्बी बात हुई और आज न चाहते हुये भी इधर आ गया,शायद आपकी पोस्ट मेरा इंतज़ार कर रही थी।

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  6. दफ़्तरो के बहुत से नियम हमे अपने प्रिय व्यक्ति को मनचाहे सम्बोधन से रोक देते हैं,मगर दफ़्तर के बाहर तो वो हमारा भैया अपने आप हो जाता है।बहुत सही लिखा पीडी। आज ही आपने काल किया आज ही आपसे लम्बी बात हुई और आज न चाहते हुये भी इधर आ गया,शायद आपकी पोस्ट मेरा इंतज़ार कर रही थी।

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  7. फनिन्द्र जी जैसे लोगों के कारण ही ये संसार चल रहा है वरना तो लोग ऐसे मतलबी है की काम निकल जाने पर देखते और पहचानते भी भी नहीं ,

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  8. जिंदगी को बहुत नजदीक से महससू किया है आपने।

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