आज मैं यह पोस्ट यह बताने के लिये नहीं लिख रहा हूं की मैं अनुभव के साथ कितना स्मार्ट(हिंदी का परिपक्व शब्द मुझे यहां नहीं जंच रहा है) हो रहा हूं.. सोच रहा हूं कि कुछ नये-पुराने किस्से सुनाता चलूं..
आज से लगभग सवा साल पहले मैं अपनी ट्रेनिंग खत्म करके एक तरह से बेंच पर बैठा हुआ था, और कहने को छोटे-मोटे असाईन्मेंट पर काम कर रहा था जिसे आप कहीं से भी किसी साफ्टवेयर प्रोजेक्ट पर होने वाले काम से तुलना नहीं कर सकते हैं.. काम लगभग ना के बराबर होने के कारण एक तरह से मैं डिप्रेशन का शिकार होने लगा था.. तभी मुझे उस प्रोजेक्ट का ऑफर आया जिस पर मैं अभी काम कर रहा हूं.. छोटी सी टीम.. सिर्फ पांच लोगों की.. जिसमें चार डेवेलपर थे और एक प्रोजेक्ट लीडर.. मुझमें प्रोफेशनल लाईफ की कोई समझ-बुद्धी नहीं थी तो वहीं बाकी तीनों(प्रोजेक्ट लीडर को छोड़कर) के पास 4 साल से लेकर 7 साल तक साफ्टवेयर इंडस्ट्री में काम करने का अनुभव.. हमारी टीम पूरी तरह से नयी भाषा पर काम करना सीख रही थी, और मैं स्वीकार करता हूं की मेरे सीखने की गति बाकी लोगों से धीमी थी.. कारण भी सुस्पष्ट था, मेरे और बाकी तीनों के बीच अनुभव का अंतर.. मेरे लिये यह पूरी इंडस्ट्री नयी थी तो वहीं वे तीनों इस इंडस्ट्री में काम कर करके पक चुके थे.. तीनों हमेशा साथ रहते थे, और उनके बीच क्या चल रहा है और वे क्या कर रहे हैं इसका पता मुझे टीम में रहते हुये भी नहीं होता था.. कहीं से कुछ भी मदद नहीं मिल रही थी, सिर्फ मेरे प्रोजेक्ट लीड ही थे जो समय-समय पर मेरी मदद करते थे.. यहां मैं उनकी तारीफ करना चाहूंगा की वह अपने मैनेजर होने का पूरा धर्म अच्छे से निभा रहे थे.. इसी बीच मेरे लीड को ऑन-साईट जाना पर गया, जो लगभग 15 दिनों का ट्रिप था.. उनके जाने के बाद अब एक तरफ से मुझे ना तो कुछ सीखने को मिल रहा था और ऊपर से काम का बोझ बढ़ता ही चला जा रहा था..
पिछले मार्च में मेरी एक मित्र की शादी में मुझे घर जाना था, जिसके लिये मैंने अपनी अर्जी अपने लीड के अमेरीका जाने से पहले ही दे रखी थी और वो अप्रूव भी हो चुका था.. मेरे लिये एक तरह से यह बहुत अच्छा हुआ की जब ऑफिस का वातावरण मेरे लिये असहनीय हो गया था उसी समय मैं 10 दिनों की लम्बी छुट्टियों पर चला गया और जब वापस लौटा तब मेरे लीड वापस आ चुके थे.. उसके लगभग 10 दिनों बाद मेरी टीम में एक नये डेवेलपर का आगमन हुआ.. मेरा आज का यह पोस्ट उन्हीं के नाम समर्पित है..
आज मैं इस इंडस्ट्री में रहते हुये जो कुछ भी सीखा हूं, चाहे वह टीम के भीतर की राजनीति हो या फिर काम करना, उसमें से अस्सी फिसदी भागिदारी उन्हीं का है.. बाकी बचे बीस फिसदी कईयों के बीच बंटा हुआ है.. उनका पूरा नाम है फनिन्द्र कुमार पोलावरूपू.. विसाखापतनम के रहने वाले हैं और हिंदी पर पकड़ किसी उत्तर भारतीय जैसा ही है.. इसके पीछे सबसे बड़ा कारण उनका कुछ साल खाड़ी देशों में काम करना भी रहा है और कुछ कारण कई उत्तर भारतियों से दोस्ती भी..
आगे भी है बहुत कुछ बताने को, जिस कारण यह एक ही पोस्ट में पूरा नहीं हो पा रहा है.. इसका अगला भाग आप कल पढ़ लें..
चलो भाई आप प्रोफेशनल तो होने लगे ...अच्छा है ...वैसे भी सब कहते ही हैं बी प्रैक्टिकल .....पर हम तुम जैसे ही लोग भले मानुष बने रहते हैं .....लेकिन चलो अच्छा है शुरुआत कर दी आपने
ReplyDeleteप्रशांत भाई 6 साल से हमारी मैडम यही कहती रहती है कि प्रोफेशनल बनो प्रोफेशनल बनो सबकी तरह। आप हमारे गुरु बन जाओ इस काम के लिए बस। अगली पोस्ट का इंतजार है। वैसे मैं मजाक नही कर रहा हूँ।
ReplyDeleteप्रोफेशनल होना अच्छी बात है। बहुत सी बातें है जो कर के सीखनी पड़ती हैं, बताने से भी नहीं आती हैं। फिर भी कोई बताने वाला सहृदयी वरिष्ठ मिल जाए तो कहना ही क्या।
ReplyDeleteअच्छे सज्जन के बारे में बताया। तेलुगू भाषी के हिन्दी में दक्ष होने की बात सुन कर अच्छा लगता है।
ReplyDeleteभाई प्रोफ़ेशनल होना आज की तारीख मे जरुरी है बल्कि समय की मांग है. और तेलगू भाषी की हिंदी पर पकड सुनकर मन आल्हादित हुआ जारहा है.
ReplyDeleteरामराम.
यह सब सिर्फ़ तुम्हारे संग नही हुआ,सब के संग ज्यादा तर होता है, बस हिम्मत से लगे रहो, अच्छे बुरे दोनो तरह के लोग मिलेगे, लेकिन तुम अपने आने वालो को अच्छे लोगो वाला व्यवहार करना, वो चाहे कोई भी हो.... बस लगे रहो ओर कभी हिम्मत ना हरो, कभी उदास ना हो कामयाबी खुद बा खुद तुमहरे कदम चुमेगी.
ReplyDeleteइसी लिये एक बार मेने पहले भी एक टिपण्णी मे कहा था यह दुनिया तुम्हे सब कुछ सीखा देगी...
अभी तो यह पहली ही सीडी है.
खुश रहो.
बढ़िया लगा पोस्ट पढ़कर.. प्रोफेशनलिज़्म ज़रूरी है.. तेलुगू भाषी हिन्दी बोले तो बढ़िया लगता है..
ReplyDeleteहम अगले भाग की इंतजार कर रहे हैं जी!
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