Sunday, March 01, 2009

घर जाने की छटपटाहट

शुक्रवार को ऑफिस पहूंचा.. मेरा बांया पैर पूरी तरह से सूज कर फुला हुआ था, काफी दर्द भी था.. ऑफिस में सभी मुझसे बोल रहे थे कि आज ऑफिस आने की क्या जरूरत थी? आज छुट्टी ले लेते और घर पर ही आराम करते.. दोस्तों ने पूछा तो मैंने कहा की ऑफिस में कुछ जरूरी काम था, आज वीकली स्टेटस रीपोर्ट बनाने को लेकर कुछ काम था.. और ऑफिस में किसी ने पूछा तो उन्हें कहा की घर में अकेले रह कर क्या करता सो ऑफिस आ गया..

आज ऐसे सलाह देने वालों में मेरे बॉस भी थे जो मेरी छुट्टी मंजूर करते हैं.. मगर मुझे पता है कि आज भले ही बॉस कह रहे थे की छुट्टी ले लेते, लेकिन अगर मैं छुट्टी ले लेता तो अप्रैल के अंत में होने वाले अप्रैजल में वही मुझसे यह प्रश्न पूछते की इतना छुट्टी क्यों लिये हो? पहले ही दो बार मुझसे एच.आर. के लोग यह प्रश्न पूछ चुके हैं.. उनका कहना था की तुम अपनी टीम में(जो 35 लोगों की है) अब तक सबसे जुआदा छुट्टी ले चुके हो और कोई भी तुम्हारे आस-पास भी नहीं है.. कारण भी मैंने उन्हें बताया है कि साल में अगर दो बार भी घर जाता हूं तो ऐसे ही 10-12 छुट्टियां हो ही जाती है.. उनका कहना था की यहां और लोग भी तो घर जाते हैं, मगर वे तो इतनी छुट्टियां नहीं लेते हैं.. उन्हें मैंने इसका कारण भी बताया है, कि यहां सारे लोग यहीं तमिलनाडु या आंध्र प्रदेश के हैं.. ऐसे में वो साल में चाहे जितनी बार भी घर जायें, उन्हें छुट्टियों की कोई जरूरत नहीं होती है.. साप्ताहांत कि दो छुट्टियां बहुत होती है उनके लिये.. मगर यह जवाब उन्हें पता नहीं क्यों संतुष्ट नहीं कर पाता है और ना ही मेरी इस बात को वह काट पाते हैं..

गुरूवार कि सुबह मैं ऑफिस जा रहा था, मेरे घर से कुछ दूरी पर वडापलानी सिग्नल है और उससे आगे लगभग 300 मीटर तक वन वे शुरू हो जाता है.. जैसा की चित्र में दिखाया गया है.. चित्र में जिस जगह लाल बिंदू है उस जगह एक बाईक वाले ने गलत दिशा से पूरे स्पीड में आकर मेरे पैर में ठोक दिया.. मैं गिरा तो नहीं मगर मेरे बायें पैर में कुछ चोट आयी जो उस समय कुछ पता नहीं चला कि कितना है.. मैं सीधा ऑफिस पहूंच गया और जूता खोल कर बैठ गया.. किसी तरह उस रात वापस घर भी आ गया.. मगर अब तक दर्द बहुत बढ़ चुका था.. पैर को सेंक कर और कुछ मालिश वगैरह करके सो गया.. अगली सुबहा उठकर देखा तो पैर बुरी तरह सूज चुका है और मैं हवाई चप्पल भी नहीं पहन पा रहा हूं..

घर की बहुत याद आ रही है.. घर में होता तो मम्मी पैर को सेकने के लिये पता नहीं क्या-क्या प्रयोजन करती.. कभी तेल में हल्दी मिलाती तो कभी नमक पानी से सेंकती और साथ में आयोडेक्स से भी मालिश कर देती.. मेरी गलती ना होते हुये भी पापाजी मुझे अच्छी खासी नसीहतें देते.. "कैसे गाड़ी चलाते हो? देख कर नहीं चल सकते हो? जरूर गलती तुम्हारी ही होगी.." और भी ना जाने क्या-क्या.. मगर यहां रह कर उन्हें यह बताया भी नहीं है.. बेकार का वहां बैठकर टेंशन में आते.. जितनी चोट नहीं लगी है उससे कहीं ज्यादे की कल्पना करके खूब चिंता करते.. मुझे पता है कि वे मेरा पोस्ट पढ़ते हैं और यह पढ़कर उन्हें पता भी चल जायेगा.. मगर साथ में मुझे यह भी पता है कि 3-4 दिनों तक वे यह नहीं पढ़ने वाले हैं.. किसी काम से बाहर गये हुये हैं.. और जब तक वापस लौटेंगे तब तक यह सूजन और दर्द भी या तो खत्म हो चुका होगा या फिर बहुत कम हो चुका होगा..

24 comments:

  1. घर से दूर यह महसूसना बहुत स्वभाविक है, मित्र. आयोडेक्स मलो और काम पर चलो..ही आखिरी रास्ता है.

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  2. परदेस में खुद हर माता, खुद ही पिता।
    अपनी देखभाल आप कीजिए।
    फिलहाल हमारी सहानुभूति कबूल कीजिए।
    आप जल्‍दी पूर्ण स्‍वस्‍थ हों-इतने और ऐसे कि लोगों के कामों में टांग अडा सकें।

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  3. bhaiya aap abhi tak doctor se nahi mile..? kyon? :-(

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  4. भाई, चोट को गंभीरता से लो। दवा करो, लापरवाही बिलकुल नहीं। वरना काम को प्रभावित करेगी।

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  5. घर से दूर रहने पर बिलकुल ऐसा ही महसूस होता है! डॉक्टर को दिखाइए और ठीक हो जाइए !

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  6. मुन्ना पुछरू, मैं तो यह देख रहा हूँ, कि तुम चोट खा कर भी, चैन से नहीं बैठते ।
    कुछ नहीं तो, बैठे पोस्ट ही लिख रहे हो..
    ज़ाहिर है.. या तो पैर गलत तरह से मोड़ कर या पैर लटका कर, जो कि दोनों ही गलत हैं ।
    सबसे पहले टाइट करके क्रैप बैन्डेज़ बाँधें,
    बाइक लेने से पहले मैंने कुछ कहा था ?

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  7. घर में होता तो मम्मी पैर को सेकने के लिये पता नहीं क्या-क्या प्रयोजन करती.. कभी तेल में हल्दी मिलाती तो कभी नमक पानी से सेंकती और साथ में आयोडेक्स से भी मालिश कर देती.. मेरी गलती ना होते हुये भी पापाजी मुझे अच्छी खासी नसीहतें देते.. "कैसे गाड़ी चलाते हो? देख कर नहीं चल सकते हो? जरूर गलती तुम्हारी ही होगी.." और भी ना जाने क्या-क्या

    भाई यही तो फ़र्क है मां और बाप के प्यार मे. मां का प्यार बिल्कुल मिश्री जैसा, जितना भी खाओ मन नही भरता और बाप का प्यार दिखता नही है पर उसमे कितनी चिंता है ? बाप का प्यार नीम की पत्ती जैसा लगता है पर बहुत गुणकारी होता है.

    अब आगे से गाडी ठीक से और देख कर चलाना..समझे की नही? :)

    रामराम.

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  8. सूजन दूर करने के लिए तो बर्फ से सेंक कर लो.. बाकी बाते सही कही है.. हालाँकि सिर्फ़ अपने को दुख पहुँचे तब घर की याद नही आनी चाहिए.. सुख में भी छटपटाहट ऐसी ही होनी चाहिए.. जैसी अभी मुझे है.. होली पर जाने का सोच रहा हू.. लास्ट दीवाली पर गया था..

    गुरुवर अमर कुमार जी की बात मान लो अभी भी देर नही हुई है.. बाकी गेट वेल सुन तो कहेंगे ही हम...

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  9. अब कैसे हैं भाई शाब आप .बहुत चोट लगा के बैठ गए ..अपना ध्यान तो आपको घर से दूर हैं तो खुद ही रखना होगा जी .

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  10. ओहो, पैर का ध्यान रखिए, बेहतर होगा एक बार डॉक्टर को दिखा दें। परदेस में बच्चों को चोट लगती है, तबियत खराब होती हैं और माँ छटपटा भरकर रह जाती है। खैर, जल्दी ठीक होकर ठीक हो गया की भी पोस्ट लिख दीजिएगा।
    घुघूती बासूती

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  11. koi update? weekend par to dikhaya hoga doctor ko?

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  12. भैया सलाह तो हम भी यही देंगे कि डॉक्टर को जरूर दिखा लें। हम भी चेन्नई में रहते हैं। घर से दूर रहने का दर्द जानते हैं। फुर्सत मिले तो कभी हमारे घर पधारिये। आपके घर से ज्यादा दूर नहीं रहते।

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  13. भाई साहब , अगर आप यह सोचते है कि केवल दवा से ठीक हो जायें गे तो गलत सोच रहे है । आपको ज्यादा से ज्यादा समय पैर को उपर रखना पड़ेगा जिससे खून नीचे से उपर की तरफ़ जाये । सूजन उतारने के लिये चूना व शहद मिलाकर लगाये । तीन चार घंटे मे सूजन उतर जायेगी । किसी भी चीज कि मालिस ना करे । सोते समय गरम पानी मे गुड ,नमक या फिटकरी मिलाकर सेक कर गरम पट्टी बांधे । ज्यादा दर्द का अनुभव हो तो दर्द निवारक गोली ले । आपके जल्द स्वस्थ होने कि कामना के साथ नरेश सिंह राठौङ

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  14. अपना घर तो सबसे अच्छा और परिवार साथ होता है तो किसी भी परेशानी में भी परेशानी नहीं होती है । ख्याल रखियेगा अपना ।

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  15. जल्‍दीबाजी में अक्‍सर ऐसा हो ही जाता है। खैर, फिलहाल आराम कीजिए, चोट तो धीरे धीरे भर ही जाएगी।

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  16. अपना घर किसे नही प्यारा होता है चाहे वह घर फटेहाल क्यो न हो लेकिन वह किसी आशियाने से कम नही होता है । बाहर में रहने का ददॆ तो किसी घटना के बाद ही पता चलता है कि घर मे रहने के बाद हर तरह की सुविधा के साथ पूछने वाले लोग भी होते है । मां-बाप को अपने बच्चे का जितना ख्याल रहता है उतना कौन कर सकता है । यहां तो कोई पूछने वाला भी नही होता है । अपने सहारे जीना होता है इसी का नाम तो शहर है । बढ़िया पोस्ट आभार

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  17. यादों का क्या करें। घर पास में है तो अतीत याद आता है - स्टूडेण्टी के दिन!

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  18. प्रशांत भाई आयोडेक्स मलो और काम पर चलो ...... :) :)
    देख भाल कर चला करो यार :) :)
    हाँ घर की याद तो आ ही जाती है

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  19. अरे भाई, ऊपर वाले ने एकाध हाथ दिया है कि नहीं?
    मां होती तो आयोडेक्स लगातीं, सिकाई करतीं; ये काम आप खुद भी तो कर सकते हो।
    खैर, मां तो मां होती है। उसकी बराबरी हो ही नहीं सकती। अगर वह हाथ भी फेर दे तो आधा दर्द खत्म।

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  20. नमक डाल कर गरम पानी से सेक ले ,पेन रीलिप स्प्रे करें, तब तक घर को याद कर थोड़ा और छटपटाहट महसूस करें.मै घर से ही आप की दीदी लिख रही हूँ:)

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  21. नीरज जी और आभा दीदी - यह बहुत पुरानी पोस्ट है.. अब तो यह ठीक भी हो चुका है.. :)

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  22. oh... यहाँ पहुँचते पहुँचते दो साल लग गए ....
    अब तक तो पैर को पर भी लग आये होंगे....:P

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  23. @ शेखर - पर लगे हैं? वो भी ऐसे वैसे नहीं, सुरखाव के पर लग गए हैं.. इस पोस्ट के कुछ दिन के बाद तो पैर टूट भी गया था एक दूसरी दुर्घटना में.. उस पर भी पोस्ट होगा, पढ़ लेना.. :)

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